इलाहाबाद हाईकोर्ट की आज की बड़ी ख़बरें

हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षा सत्र बदलने और नए सत्र में पढ़ाने के कारण अध्यापकों को पूरे सत्र तक सेवा देने का अधिकार है। इसके बाद सरकार ने अक्टूबर माह में पुनः ज्वाइन कराया किन्तु जुलाई से सितम्बर माह तक का वेतन नहीं दिया। बकाया वेतन की मांग में याचिका दायर की गई थी।

Update:2019-10-30 22:45 IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट

बीएसए व लेखा अधिकारी आदेश का पालन करें या कोर्ट में हो हाजिर

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोरखपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी भूपेंद्र नारायण सिंह एवं लेखा अधिकारी मोहनलाल गुप्ता को प्राइमरी अध्यापकों के बकाया वेतन सहित अन्य परिलाभांे का भुगतान करने का निर्देश दिया है और कहा है कि यदि भुगतान नहीं किया जाता तो दोनों अधिकारी 29 नवंबर को कोर्ट में हाजिर हो। यह आदेश न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी ने प्राइमरी स्कूल खुथन खास, चरगवां ब्लाक गोरखपुर के प्रधानाचार्य महातम प्रसाद, लालमन व अन्य की अवमानना याचिका पर दिया है।

याचिका पर अधिवक्ता अनुराग शुक्ला ने बहस किया। मालूम हो कि 2015 में प्राइमरी स्कूल के शिक्षा सत्र में बदलाव किया गया। जुलाई से शिक्षा सत्र शुरू करने के बजाय अप्रैल से सत्र शुरू करने का निर्णय लिया गया। अप्रैल से लेकर जून के बीच सत्र लाभ लेकर सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापकों को नये सत्रांत का लाभ नहीं दिया गया। उन्हंे 30 जून को सेवानिवृत्त कर दिया गया। जिसे चुनौती दी गई थी।

हाईकोर्ट ने कहा कि शिक्षा सत्र बदलने और नए सत्र में पढ़ाने के कारण अध्यापकों को पूरे सत्र तक सेवा देने का अधिकार है। इसके बाद सरकार ने अक्टूबर माह में पुनः ज्वाइन कराया किन्तु जुलाई से सितम्बर माह तक का वेतन नहीं दिया। बकाया वेतन की मांग में याचिका दायर की गई थी।

हाईकोर्ट ने सरकार के शासन आदेश को रद्द करते हुए अध्यापकों को सत्र लाभ देते हुए बकाया वेतन दिये जाने का निर्देश दिया था। इस आदेश का पालन नहीं किया गया। जिस पर यह अवमानना याचिका दाखिल की गई है। अब कोर्ट ने कहा है कि बेसिक शिक्षा अधिकारी और लेखा अधिकारी गोरखपुर 29 नवंबर तक बकाया वेतन देने के आदेश का पालन करें अथवा अगली सुनवाई की तिथि 29 कोर्ट में हाजिर हो।

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पुलिस भर्ती के खिलाफ याचिका पर भर्ती बोर्ड को निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल पुलिस व पीएसी कांसटेबल भर्ती 2018 में सफल अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण के लिए न बुलाए जाने के मामले में राज्य सरकार व पुलिस भर्ती बोर्ड से 31 अक्टूबर तक जानकारी मांगी है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने बलिया के अजय कुमार यादव व दो अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता का कहना है कि याचियों ने लिखित, शारीरिक परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की।

दस्तावेज सत्यापित किय गया और मेडिकल परीक्षण कराया गया। सफल भी घोषित हुए। कट आफ मेरिट से अधिक अंक पाने के बावजूद उन्हें नियुक्ति देकर प्रशिक्षण पर नहीं भेजा जा रहा है। इसी मामले में दाखिल याचिका पर पारित आदेश का भी उन्होंने हवाला दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार व पुलिस भर्ती बोर्ड से याचिका में उठाए गए मुद्दों पर जानकारी मांगी है। याचिका की सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी

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स्वामी चिन्मयानन्द की जमानत अर्जी पर जवाब तलब, सुनवाई 8 नवम्बर को

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एलएलएम छात्रा से दुराचार के आरोपी स्वामी चिन्मयानन्द की जमानत अर्जी पर राज्य सरकार व पीड़िता से जवाब मांगा है। अर्जी की सुनवाई 8 नवम्बर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने दिया है। स्वामी चिन्मयानन्द उर्फ कृष्ण पाल सिंह की अर्जी पर वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार ने बहस की ।इनका कहना है कि स्वामी पर दुराचार का आरोप ही नहीं है। जिन धाराओं में आरोप है उनमें 3 से 5 साल तक की सजा हो सकती है। दूसरी तरफ पीड़िता के पिता स्वयं अपराधी है। कभी टीटीई बनकर अवैध वसूली की तो कभी बिजली अभियंता बन लोगांे से मीटर लगाने के नाम पर अवैध वसूली की।

दोनों मामलो में आरोप पत्र दाखिल है। पीड़िता ने स्वामी को ब्लैकमेल करने की योजना 8 माह पहले तैयार की थी। चश्मे में कैमरा लगाया और मालिश करने की वीडियो बनायी। 5 करोड़ की रंगदारी की मांग की। जिस मामले की भी एसआईटी जांच कर रही है। पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में रेप का आरोप नही लगाया और पिता से मिलने के बाद सोच विचार कर दिल्ली के लोधी कालोनी थाने में रेप के आरोप में शिकायत की है, जिसकी जांच जारी है।

वाट्सएप पर धमकी देना व रंगदारी मांगने का आईटी एक्ट के तहत अपराध को स्वीकार भी किया है। जो भी साक्ष्य है मूल कैमरा न मिल पाने के कारण अपराध साबित करने के लिए स्वीकार्य नहीं है। पीड़िता चश्मे पर लगा कैमरा नहीं दे रही है। स्वामी पर दुराचार का केस नहीं बनता। ऐसे में उन्हें जमानत पर रिहा किया जाय।

पीड़िता के वरिष्ठ अधिवक्ता रवि किरण जैन ने याची अधिवक्ता के तर्क को मनगढ़ंत कहा है तथा कोर्ट से कहा कि जमानत अर्जी के साथ कोई दस्तावेज नहीं लगाये है। शासकीय अधिवक्ता एस.के. पाल का कहना था कि दोनों ने ही गड़बड़ की है। ब्लैकमेल की आरोपी पीड़िता की जमानत अर्जी की सुनवाई 6 नवंबर को होगी। कोर्ट ने सरकार व पीड़िता के वकीलों से 4 नवम्बर तक जवाब दाखिल करने तथा याची को 7 नवम्बर तक प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने का समय दिया। अर्जी की सुनवाई 8 नवम्बर को होगी।

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आयोग को सहायक प्रोसेसरों के भर्ती की चयन सूची जारी होने से पूर्व शिकायत निस्तारण का दिया निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग प्रयागराज के सचिव को सहायक प्रोफेसरों की भर्ती की चयन सूची जारी होने से पहले याची की शिकायत का निस्तारण करने का निर्देश दिया है। याची का कहना है कि वह वेटिंग लिस्ट में है और कई ऐसे लोग कामर्स विषय के लिये सहायक अध्यापक चयनित हो गए है जो उस पद की योग्यता ही नही रखते। इस पर कोर्ट ने कहा कि याची सचिव को प्रत्यावेदन दे और वह इस मामले में निर्णय ले। यह आदेश न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय ने ओमप्रकाश व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

याचिका पर अधिवक्ता प्रशांत कुमार त्रिपाठी ने बहस की। इनका कहना है कि 17 अगस्त 19 को चयन सूची जारी की गई। मोहम्मद आरिफ व पूजा सिंह के पास कामर्स में पीजी डिग्री नही है।ऐसे में चयनित होने के बावजूद ये ज्वाइन नही कर सकते। आयोग ने योग्य लोगो को प्रतीक्षा सूची में रखा है और जो न्यूनतम अर्हता नही रखते उन्हें चयनित किया है। इस आधार पर दो लोगों के नाम हटने से याची का चयन हो जायेगा। कोर्ट ने आयोग के सचिव को निर्णय लेने का आदेश दिया है।

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मृत टीचर की पत्नी को ब्याज समेत ग्रेच्युटी भुगतान का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेवा काल में मृत अध्यापक की पत्नी को उसकी पूरी ग्रेच्युटी का भुगतान 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने बरेली मंडल के सम्बंधित अधिकारी के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमे इस आधार पर ग्रेच्युटी का भुगतान यह कहकर रोक दिया था कि याची के पति ने 60 वर्ष की आयु में रिटायरमेन्ट का विकल्प नहीं भरा था।

बरेली की रेनू की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने दिया।याची के अधिवक्ता का कहना था कि याची के पति प्राइमरी स्कूल अग्रास बदायंू में अध्यापक थे।

एक जुलाई 2017 को उनकी मौत हो गई। याची को पति की सेवा के अन्य परिलाभ तो मिल गए मगर ग्रेच्युटी नहीं दी गई। 16 सितंबर 2019 के शासनादेश के मुताबिक याची के पति ने यदि 60 वर्ष में रिटायर होने का विकल्प नहीं दिया है तब भी उनके अधिकार कम नहीं होंगे। कोर्ट ने याची को 3 माह में ग्रेच्युटी का लाभ देने का निर्देश दिया है।

 

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