इलाहाबाद हाईकोर्ट की आज की बड़ी खबरें
न्यायमूर्ति बीके नारायण और न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की खण्डपीठ ने ममता सिंह की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया। अगली सुनवाई 13 दिसम्बर को होगी। न्यायालय ने मुख्य स्वास्थ्य अधीक्षक (ब्डै) को भी प्रतिपक्षी बनाने का आदेश दिया है।
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में आधुनिक सुविधायुक्त 20 बेड वाले एक सुसज्जित अस्पताल बनाने की मांग में दाखिल जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति बीके नारायण और न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की खण्डपीठ ने ममता सिंह की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया। अगली सुनवाई 13 दिसम्बर को होगी। न्यायालय ने मुख्य स्वास्थ्य अधीक्षक (ब्डै) को भी प्रतिपक्षी बनाने का आदेश दिया है।
याचिकाकर्ता के अनुसार 7 नवम्बर 19 को अधिवक्ता अमूल्य रत्न की हाईकोर्ट के एक कोर्ट रूम में बहस के दौरान हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी थी। उन्हें कोर्ट परिसर में प्राथमिक उपचार भी नही मिल सका। इसके पूर्व दो और अधिवक्ता न्याय कक्ष में अचानक बीमारी से मर चुके हैं।
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150 वर्ष पुराने हाईकोर्ट में करीब 100 न्यायमूर्ति गण, 18000 अधिवक्ता गण, 1200 तृतीय श्रेणी कर्मचारी, करीब 5000 मुंशी, 600 से 700 सुरक्षा कर्मी प्रतिदिन रहते हैं। जबकि यहाँ एक साधारण डिस्पेंसरी भर है। जहाँ एम्बुलेंस भी जर्जर अवस्था में है। वही दिल्ली हाई कोर्ट में सात मंजिला आधुनिक हास्पिटल हैं।
देश के कुछ उच्च न्यायालयों में भी आधुनिक सुविधाओं से युक्त अस्पताल है। याचिका कर्ता ने सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार मौलिक अधिकार है। उच्च न्यायालय की तरफ से अधिवक्ता आशीष मिश्र ने बहस की।
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सिंचाई विभाग देवरिया के 1998 में नियमित नलकूप चालकों को पेंशन भुगतान पर निर्णय लेने का निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देवरिया में सिंचाई विभाग के पार्ट टाइम से नियमित हुए नलकूप चालकों को पेंशनरी बेनिफिट देने के मामले में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है याचियों को सुप्रीम कोर्ट के प्रेम सिंह केस में दिए गए फैसले के तहत 2 माह के भीतर पेंशन देने के मामले में निर्णय लिया जाए।
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यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने गुल मोहम्मद व 11 अन्य याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता राघवेन्द्र प्रसाद मिश्र ने बहस की। इनका कहना था कि याची गण 1983 से 1985 के बीच अंशकालिक नलकूप चालक पद पर नियुक्त हुए। 1998 के बाद इन्हें नियमित किया गया।
नियमितीकरण में देरी के कारण इन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन आदि का भुगतान नहीं किया गया। याची का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि नियमित कर्मचारी पेंशन पाने के हकदार हैं।
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विभाग में सुनवाई न होने के कारण हाईकोर्ट में यह याचिका दाखिल की गयी। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत सिंचाई विभाग को याचियो को पेंशन देने पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।