UP Election 2022: पहले चरण के चुनाव को लेकर योगी सरकार के नौ मंत्रियों की परेशानी पर बल
UP Election 2022: अन्य मंत्रियों में छत्ता से लक्ष्मीनारायण चौधरी, शिकारपुर से अनिल शर्मा, आगरा कैंट से जी.एस. धर्मेश और हस्तिनापुर से दिनेश खटीक शामिल हैं।
UP Election 2022: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण में उत्तर प्रदेश विधानसभा की जिन 58 विधानसभा सीटों पर कल चुनाव हैं, वहां योगी आदित्यनाथ सरकार के नौ मंत्रियों समेत कई भाजपा नेताओं कि किस्मत का फैसला होगा। इन मंत्रियों मथुरा से श्रीकांत शर्मा, गाजियाबाद से अतुल गर्ग, थाना भवन से सुरेश राणा, मुजफ्फर नगर से कपिलदेव अग्रवाल और अतरौली से संदीप सिंह की किस्मत का फैसला मतदाता करेंगे।
अन्य मंत्रियों में छत्ता से लक्ष्मीनारायण चौधरी, शिकारपुर से अनिल शर्मा, आगरा कैंट से जी.एस. धर्मेश और हस्तिनापुर से दिनेश खटीक शामिल हैं। अन्य प्रमुख नाम आगरा ग्रामीण से उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, नोएडा से उत्तर प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष पंकज सिंह और कैराना से मृगांका सिंह हैं। चुनावी मैदान में उतरे इन मंत्रियों और नेताओं की पेशानी पर बल हैं। कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बदली राजनीतिक परिस्थितियां तो है ही सत्ता विरोधी रूझान भी है।
बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिन 58 विधानसभा सीटों पर कल चुनाव हैं, वहां 2017 में भाजपा ने 53 विधानसभा सीटें जीतकर सपा, बसपा,कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल का एक तरह से सफाया ही कर दिया था, लेकिन इस बार स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बदली राजनीतिक परिस्थितियों में सत्ता विरोधी रूझान के कारण भाजपा के लिए 2017 का इतिहास दोहराना आसान नही लग रहा है।
पश्चिमी उत्तरप्रदेश की इस हरित पट्टी में इस बार बडी चुनावी उलटफेर होने की आंशका जताई जा रही है। दरअसल, सियासी हालात और सामाजिक समीकरण बदले हुए है। किसानों खासकर जाटों पर असर रखने वाली भारतीय किसान यूनियन और इस्लाममिक शिक्षण संस्था दारूल उलूम देवबंद का साझा असर भी दिखलाई दे रहा है।
भाजपा की 2017 की चुनावी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जाट इस बार रालोद के पाले में दिख रहे हैं। जाटों को मनाने की अमित शाह,योगी आदित्यनाथ की तमाम कोशिशें उम्मीदों के मुताबिक परवान नही चढ़ सकी है। दरअसल,भाजपा ने इस क्षेत्र के जाट मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाने के लिए संजीव बालियान,भूपेन्द्र चौधरी समेत कुछ जाट नेताओं को संगठन और सरकार में पद तो दिया है।
लेकिन,एक तो इन नेताओं का जाटों में कोई खास प्रभाव नही है,दूसरा इन्हें संगठन अथवा सरकार में कोई महत्वपूर्ण पद नही दिया गया है। तीसरा कारण केन्द्रीय सेवाओं में जाट आरक्षण का वादा पूरा न कर पाना है। रही सही कसर किसान आंदोलन ने ग्रामीण इलाकों में हिंदू-मुसलमान भाईचारे की इबारत लिखकर कर दी है।
कुल मिलाकर माहौल और चुनावी समीकरण ऐसा है,जिसमें सरकार के इन मंत्रियों के लिए अपनी जीत दोहराने के लिए सर्दी के इस मौसम में भी पसीना बहाना पड़ रहा है। सरकार में शामिल इन नेताओं को अपनी विधायकी जाने का डर सता रहा है। जाहिर है कि विधायकी गई तो समझो लालबत्ती भी गई।
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