UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति जिसके साथ, प्रदेश की सत्ता उसके साथ  

UP Election 2022: जब चुनाव के मद्देनजर पार्टियां उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करती है तब पता चलता है कि कौन वास्तविकता में उनके सच्चे हमदर्द हैं।

Written By :  Yogesh Mishra
Written By :  aman
Published By :  Praveen Singh
Update:2021-11-17 19:40 IST

UP Election 2022 -  उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में अगले साल शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव (up vidhan sabha chunav 2022) होने हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां जाति और धर्म के आधार पर सीटों का समीकरण बैठाने में जुटी है। राज्य की सभी प्रमुख पार्टियां भारतीय जनता पार्टी (BJP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), समाजवादी पार्टी (SP) हो या कांग्रेस पार्टी (Congress Party) सहित छोटे-बड़े राजनीतिक दल, सबकी नजर जातिगत समीकरण (up me caste percentage) और जाति (Uttar Pradesh Caste List 2021) आधारित सीटों पर ही केंद्रित है। बसपा जहां खुद को दलितों का सबसे बड़ा रहनुमा बताती है तो सपा खुद को पिछड़ों का सबसे बड़ा हितैषी। तभी तो सपा ने बाबा साहब वाहिनी का गठन किया है।लेकिन जब चुनाव के मद्देनजर पार्टियां उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करती है तब पता चलता है कि कौन वास्तविकता में उनके सच्चे हमदर्द हैं। 

यूपी विधानसभा (up election 2022 total seats) के कुल 403 सीटों में वर्तमान में 85 अनुसूचित जाति और दो अनुसूचित जनजाति (up mein anusuchit janjati) के लिए आरक्षित है। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो अब तक सभी दलों ने केवल आरक्षित सीटों पर ही दलितों (reserved seats in up vidhan sabha) को टिकट बांटा है। एक भी दलित को सामान्य सीट (general seats in up vidhan sabha) से उम्मीदवार किसी भी पार्टी ने नहीं बनाया है। इसका साफ़ मतलब है कि सभी पार्टियां दलितों (Dalit Vote Bank) की शुभचिंतक खुद को भले दिखाए मगर टिकट देते वक्त आरक्षित सीटों से वह उठ नहीं पाती है।  

उत्तर प्रदेश विधानसभा (uttar pradesh vidhan sabha chunav): एक नजर  

उत्‍तर प्रदेश विधानसभा (uttar pradesh vidhan sabha chunav 2022) द्विसदनीय विधानमंडल का निचला सदन है। यहां विधानसभा (total seats in up vidhan sabha) की कुल 404 सीटें हैं। 403 निर्वाचित सदस्य तथा एक राज्यपाल द्वारा मनोनीत आंग्ल भारतीय सदस्य होते हैं। विधानमंडल का ऊपरी सदन विधानपरिषद होता है, जिसमें कुल 100 सदस्य हैं। 1967 तक एक आंग्ल भारतीय सदस्‍य को सम्मिलित करते हुए विधानसभा की कुल सदस्य (up vidhan sabha sadasya list) संख्या 431 थी। वर्ष 1967 के बाद विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 426 हो गई। 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश राज्य के पुनर्गठन और उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद विधानसभा की सदस्य संख्या 403 निर्वाचित एवं एक आंग्‍ल भारतीय समुदाय के मनोनीत सदस्‍य को मिलाकर कुल 404 हो गई है। उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल (up vidhan sabha karyakal) पांच वर्षों का होता है। राज्य के पहले विधानसभा का गठन (up mein vidhan sabha ka gathan kab hua) 8 मार्च, 1952 को हुआ था। तब से अब तक इसका गठन 17 बार हो चुका है। वर्तमान में 17वीं विधानसभा का गठन 14 मार्च, 2017 को हुआ था।

जिसकी आरक्षित सीटें ज्यादा, वही सबसे आगे 

अनुसूचित जाति (scheduled caste seats in uttar pradesh) के लिए आरक्षित 85 सीटों का सरकार गठन में अहम योगदान होता है। इसे उदाहरण के रूप में 2007 के आंकड़ों से समझा जा सकता है। इस साल बहुजन समाज पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला था। जबकि, इस साल बसपा द्वारा जीते गए कुल 206 सीटों में 62 सीटें इन्हीं आरक्षित में से थी। इसी तरह 2012 में समाजवादी पार्टी के कुल 224 में से 58 सीट आरक्षित कोटे से थी। 

उत्तर प्रदेश की प्रथम से सत्रहवीं विधानसभा (अब तक) कुल सीटों का ब्यौरा 

                                                                                 आरक्षित                    आरक्षित 

विधानसभा                 वर्ष      कुल सीट  आरक्षित सीट    (अनुसूचित जाति)   (अनुसूचित जनजाति)

प्रथम विधान सभा       1952     430         83                83

दूसरी विधान सभा      1957     430         89                89

तीसरी विधान सभा      1962    430         89                89

चौथी विधान सभा        1967    425         89                89

पांचवीं विधान सभा      1969    425         89                89

छठी विधान सभा        1974     425         89               89

सातवीं विधान सभा     1977     425         89               89

आठवीं विधान सभा    1980     425         93                93

नवीं विधान सभा        1985     425         93                93

दसवीं विधान सभा     1989      425        93                93

ग्यारहवीं विधान सभा  1991     425         93                93

बारहवीं विधान सभा   1993     425         93                93

तेरहवीं विधान सभा    1996     425          93               93

चौदहवीं विधान सभा   2002    403         89                 89

पंद्रहवीं विधान सभा     2007   403         89                 89

सोलहवीं विधान सभा   2012   403          85                85

सत्रहवीं विधान सभा    2017    403         86                84                   2

क्या कहता है लोकप्रतिनित्धित्व कानून?

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 3 के साथ पठित, भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 में निहित प्रावधान द्वारा लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आवंटन, संबंधित राज्य में, उनकी कुल जनसंख्या के अनुपात के आधार पर किया जाता है।

यूपी में दलितों की कितनी आबादी (scheduled caste list in uttar pradesh) ? 

2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या (up mein jansankhya kitni hai) में अनुसूचित जाति (up mein daliton ki jansankhya kitni hai) एवं अनुसूचित क्रमशः 413.58 लाख एवं 11.34 लाख थी। यह कुल जनसंख्या की कमश: 20.7 प्रतिशत तथा 0.6 प्रतिशत थी। अर्थात, प्रदेश में दलितों की आबादी (dalit population in up) कुल आबादी के करीब 21 प्रतिशत है। ज्ञात हो, कि ओबीसी के बाद दलित वोट किसी भी दल की सरकार बनाने में सबसे अहम होती है। मौजूदा आंकड़ों की मानें तो उत्तर प्रदेश में जहां 42-45 प्रतिशत ओबीसी हैं,  वहीं 21 फीसदी संख्या दलितों की है। इस 21 प्रतिशत में सबसे बड़ी संख्या जाटव की है। जाटव करीब 54 प्रतिशत हैं। इसके अलावा दलितों की 66 उपजातियां हैं, जिनमें 55 ऐसी हैं, जिनकी संख्या अधिक नहीं हैं। इनमें मुसहर, बसोर, सपेरा, रंगरेज आदि शामिल हैं। दलितों की 21 प्रतिशत आबादी को अगर दो हिस्सों में बांटें, तो 14 फीसदी जाटव और शेष की संख्या 7 प्रतिशत है।

बसपा (bahujan samaj party uttar pradesh) का सोशल इंजीनियरिंग अब फीका पड़ा 

उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोटों (dalit vote percentage in up) को लेकर बड़ा प्रयोग वर्ष 2007 में मायावती ने किया था। सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को अपनाते हुए बसपा ने विधानसभा में 30.43 फीसदी वोटों के साथ 206 सीट हासिल की और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। यही फॉर्मूला बसपा ने 2009 लोकसभा चुनाव में भी अपनाया। इस चुनाव में बसपा ने 27.4 प्रतिशत वोट के साथ 21 सीटें जीतने में सफलता पायी। लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव आते-आते यह सोशल इंजीनियरिंग फीका पड़ने लगा। नतीजा 2012 में बसपा ने 25.9 प्रतिशत वोट के साथ मात्र 80 सीटें ही जीतने में सफल रही। बसपा को सबसे बड़ा झटका 2014 के लोकसभा चुनावों (bsp seats in lok sabha 2014) में लगा जब उसे 20 फीसदी वोट से ही संतोष करना पड़ा। इस साल लोकसभा में बसपा का कोई सांसद नहीं पहुंच पाया। 2017 विधानसभा चुनाव में बसपा ने 23 प्रतिशत वोट के साथ 19 सीटें हासिल की। 

क्यों बीजेपी बनी सबसे बड़ी दलित पार्टी (Why Dalits voted for the BJP) 

अगर आप आंकड़ों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी इस वक्त देश की सबसे बड़ी दलित पार्टी है। यह लड़ाई सिर्फ उत्तर प्रदेश में है। सीएसडीएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 24 प्रतिशत दलितों का वोट हासिल हुआ था। जबकि, कांग्रेस को 18.5और बसपा को 13.9 फीसदी वोट मिले थे। ये उन तीन पार्टियों के दलित वोट प्रतिशत हैं जो इन्हीं के बीच विभाजित होती है। 

2017 में कुछ ऐसा रहा हाल (up election 2017 result hindi)

संविधान में दलितों को प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षित सीटों की व्यवस्था की गई है। वर्तमान में यूपी विधानसभा की 403 में से 86 सीट आरक्षित हैं। साल 2017 में 85 आरक्षित विधानसभा सीटों में बीजेपी ने 65 गैर जाटव को पार्टी का टिकट दिया था। नतीजा, बीजेपी ने कुल 76 आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की। बसपा के खाते में मात्र दो सीट तो राजभर के सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (suheldev bhartiya samaj party mla list) के हिस्से तीन और अपना दल के खाते में दो सीटें गईं। गौरतलब है, कि दलित वोटों को साधकर साल 2017 में बीजेपी, 2012 में सपा और 2007 में बसपा ने यूपी में सरकार बनाने में सफलता पायी थी। 

UP में आरक्षित सीटों (up mein aarakshan seat list) पर कब-कब रहा किसका कब्ज़ा 

1996 में आरक्षित सीटें 93 

बीजेपी    सपा    बसपा    अन्य  

36         18        20      22 

2002 में आरक्षित सीटें 89 

35        18       24       12 

2007 में आरक्षित सीटें 89 

07       13      62       06 

2012 में आरक्षित सीटें 85 

03      58      15      09  

इन आंकड़ों के जरिए हम समझ सकते हैं कि दलित वोट और आरक्षित सीटों पर प्रदेश की किसी एक पार्टी का कब्जा नहीं रहा है। समय के हिसाब से और राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से दलित राजनीति बदलती रही है। एक समय था जब बहुजन समाज पार्टी ये दंभ रखती थी कि दलित वोट पर उसका आधिपत्य है, मगर समय के साथ उनका ये भ्रम भी जाता रहा। एक समय यह छिटककर सपा के साथ जुड़ा तो आज बीजेपी के साथ मजबूती से है।  

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