UP Legislative Council: जुलाई के बाद पहली बार कांग्रेस विहीन रहेगी विधानपरिषद
UP Legislative Council: यूपी के संसदीय इतिहास में 6 जुलाई को कांग्रेस अपने खराब दौर में प्रवेश करेगी।
UP Legislative Council: उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में केवल दो विधायक आने के बाद कांग्रेस बेहद कमजोर स्थिति में आ चुकी है। हाल यह है कि विधानपरिषद चुनाव में इस बार उसका कोई उम्मीदवार नही होगा। साथ ही अब तक के अकेले विधानपरिषद सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद पहली बार विधानपरिषद में कांग्रेस का कोई सदस्य नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश के संसदीय इतिहास में 6 जुलाई को कांग्रेस अपने सबसे खराब दौर में प्रवेश करेगी। 113 साल में पहली बार ऐसा होगा जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा। उसके एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का उस दिन कार्यकाल समाप्त होगा।
दो विधायक जीते और 2.5 फीसदी से भी कम मत मिले
आजादी के बाद से लगातार विधानपरिषद में पंडित मोतीलाल नेहरू से लेकर न जाने कितने दिग्गज कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते रहे। लेकिन 1989 में मंदिर आंदोलन के बाद कांग्रेस की हालत प्रदेश की विधानसभा में पतली होती गयी, जिसका असर विधानपरिषद पर भी पडा और धीरे धीरे उसकी ताकत उच्च सदन में भी कम होती गयी।
इस बार हुए विधानसभा चुनाव में तो सदस्य संख्या के लिहाज से अपने सबसे निम्नतम स्थिति में पहुंच गई। उसके मात्र दो विधायक जीते और 2.5 फीसदी से भी कम मत मिले। इसका असर विधान परिषद में उसकी सदस्य संख्या पर पड़ना लाजिमी था।
कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह
वर्तमान में विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह बचे हैं और उनका कार्यकाल 6 जुलाई 202 को खत्म हो रहा है। इसके बाद विधानपरिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं बचेगा। कांग्रेस एक और सदस्य राकेष सिंह पहले ही विधानपरिषद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
विधानपरिषद में पहले सभापति के रूप में डा.सीतारमन का नाम इतिहास में अंकित है। उनका जन्म 12 जनवरी 1885 को मेरठ में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी और संस्कृत में उच्च श्रेणी में एमए पास करने के बाद आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद और डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की। डा. सीतारमन वर्ष 1921 में राज्य विधानमंडल के सदस्य हुए थे। 19 अगस्त 1925 को वे काउंसिल के प्रेसीडेंट निर्वाचित हुए। इसके बाद 9 मार्च 1949 तक वे लगभग 25 वर्षाे तक काउंसिल के सभापति रहे।
विधानपरिषद का गौरवमयी इतिहास रहा है। कांग्रेस के कार्यकाल में इसका अपना कोई भवन नहीं था। 27 जनवरी 1920 में एक बड़े भवन की जब आवश्यकता हुई तो लखनऊ में ही एक बड़ेे भवन के निर्माण का निर्णय लिया गया।इसके बाद 21 दिसम्बर 1922 को विधानभवन का शिलान्यास तत्कालीन गर्वनर हरकोर्ट बटलर ने किया। मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों से बने देश की खूबसूरत इमारतों में से एक यूपी विधानभवन बनने में छह वर्ष लग गए। इस भवन का निर्माण कलकत्ता की कंपनी मेसर्स मार्टिन एंड कंपनी की ओर से किया गया था। इसके मुख्य आर्किटेक्ट सर रिवनोन जैकब तथा हीरा सिंह थे।