UP Nikay Chunav 2023: चुनावी रण में केवल उड़ रहे बीजेपी के उड़नखटौले, क्या विपक्ष ने पहले ही छोड़ दिया मैदान ?

UP Nikay Chunav 2023: प्रदेश की चार अहम पार्टियां बीजेपी, एसपी, बीएसपी और कांग्रेस कहने को तो सभी 17 नगर निगमों पर चुनाव लड़ रही हैं। सभी के मेयर उम्मदीवारों ने नामांकन तक दाखिल कर दिया है। लेकिन बीजेपी को छोड़ अन्य पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव – प्रचार में मात खाते नजर आ रहे हैं क्योंकि उनके पार्टी के बड़े नेताओं की जमीन पर सक्रियता नजर नहीं आ रही।

Update:2023-04-29 00:17 IST
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UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर इन दिनों काफी सियासी गहमागहमी है। लोकसभा चुनाव से एक साल पहले हो रहे इस चुनाव को प्रदेश में ताल ठोंक रही सियासी पार्टियों के लिए काफी अहम माना जा रहा है। इन चुनावों के परिणाम काफी हद तक जनता की मूड को जाहिर कर देंगे। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि विपक्षी पार्टियां बेमन से चुनाव लड़ रही हैं। उनके बयान पर मीडिया और सोशल मीडिया में तो खूब तैर रहे हैं, मगर धरातल पर हलचल नजर नहीं आ रही है।

प्रदेश की चार अहम पार्टियां बीजेपी, एसपी, बीएसपी और कांग्रेस कहने को तो सभी 17 नगर निगमों पर चुनाव लड़ रही हैं। सभी के मेयर उम्मदीवारों ने नामांकन तक दाखिल कर दिया है। लेकिन बीजेपी को छोड़ अन्य पार्टियों के उम्मीदवार चुनाव – प्रचार में मात खाते नजर आ रहे हैं क्योंकि उनके पार्टी के बड़े नेताओं की जमीन पर सक्रियता नजर नहीं आ रही। जिसके कारण कार्यकर्ताओं में अपने पार्टी के कैंडिडेट के लिए वो उत्साह नजर नहीं आ रहा, जो कि एकसाल पहले विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान था। तो आइए एक नजर चारों पार्टी की वर्तमान स्थिति पर डालते हैं।

बीजेपी

भारतीय जनता पार्टी को देश में सियासी जानकार इलेक्शन मशीन कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये पार्टी एक चुनाव के निपटते ही दूसरे चुनाव की तैयारियों में जुट जाती है। कई बार तो कई चुनावों की तैयारी वो एक साथ कर रही होती है। बीजेपी के बारे में कहा जाता है कि वह जितना मजबूती से संसद का चुनाव लड़ती है, उतनी ही गंभीरता से स्थानीय निकाय के चुनाव को भी लेती है। इसके कई उदाहरण हैं। यूपी में भी यही नजर आ रहा है। बीजेपी चुनाव प्रचार और इससे जुड़ी तैयारियों में अपने प्रतिद्वंदियों से काफी आगे चल रही है।

टिकटों के बंटवारे के बाद पार्टी ने अपनी पूरी स्टेट यूनिट को चुनावी अखाड़े में उतार दिया है। खुद प्रदेश के मुखिया एक दिन में कई जिलों में जाकर बीजेपी उम्मीदावरों के पक्ष में रैलियां कर रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ उनके दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक भी धुंआधार प्रचार कर रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष, संगठन मंत्री समेत अन्य नेता तो हैं ही। इसके अलावा पार्टी अन्य दलों के प्रभावी नेताओं को तोड़ भी रहे है। पिछले कुछ दिनों में बसपा, सपा और कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों के कई मंझले स्तर के नेता जिनका अपने इलाके में प्रभाव है, उन्हें बीजेपी में शामिल कराया गया है।

सपा

उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा जिस तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर दंभ भर रही है। वैसा जोश निकाय चुनाव को लेकर नजर नहीं आ रहा है। पार्टी सुप्रीमो और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बयान महज मीडिया की सुर्खियों और ट्वीट्स तक सीमित रह गए हैं। अभी तक जमीन पर कोई बड़ा जलसा निकाय चुनाव को लेकर नहीं हुआ है।
ऊपर से एक-एक कर सपा नेता बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं। इन सबकी वजह से पार्टी के कार्यकर्ताओं के अंदर वो जोश और उत्साह नजर नहीं आ रहा, जो विधानसभा चुनाव के दौरान था। बीजेपी ने सपा के मेयर उम्मीदवार को अपने पाले में कर लिया लेकिन पार्टी को इसकी भनक तब तक नहीं लगी, जब तक अर्चना वर्मा ने भगवा चोला न ओढ़ लिया।
1 मई से प्रचार में उतरेंगे अखिलेश

लखनऊ में 4 मई को निकाय चुनाव के लिए मतदान होंगे। ऐसे में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव वोटिंग से तीन दिन पहले चुनाव प्रचार के लिए निकलेंगे। 1 मई को वे लखनऊ मेट्रो में सफर कर अपने उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने की अपील करेंगे। वहीं, अगले दिन यानी 2 मई को शहर में एक रोड शो करेंगे।

बसपा

बहुजन समाज पार्टी 2012 से लगातार शिकस्त पे शिकस्त झेल रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव में तो पार्टी की दुर्गति हो गई। लेकिन फिर भी पार्टी ने निकाय चुनाव की सभी 17 मेयर सीटों पर ताल ठोंक रही है। विशेषकर सपा ने जिस तरह 11 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट को उतारा है, उसकी काफी चर्चा हो रही है। लेकिन सपा की तरह दिक्कत यहां भी यही है कि पार्टी का कोई ब़ड़ा नेता चुनाव प्रचार के लिए मैदान में नहीं उतरा है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती के बारे में पहले ही कह दिया गया है कि वे चुनाव प्रचार के लिए नहीं आएंगी। ऐसे चुनाव लड़वाने से लेकर जीतवाने तक का सारा दारोमदार रीजनल कॉर्डिनेटरों के कंधे पर है। जमीन पर बसपा के कैडर में भी चुनाव को लेकर उत्साह नजर नहीं आ रहा।

कांग्रेस

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की हालत भी पतली हो रखी है। कांग्रेस ने सभी नगर निगमों, नगरपालिका और पंचायत अध्यक्षों पर अपने उम्मीदवार उतार रखे हैं। लेकिन इनमें से कितने उम्मीदवार असली लड़ाई में हैं, इस बात से पार्टी भी भलीभांति परिचित होगी। कांग्रेस केवल बयान जारी कर मीडिया में खुद को जिंदा रख रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान जोर लगाने वाली प्रियंका गांधी इस बार चुनाव मैदान से नदारद दिख रही हैं। कहा जा रहा है कि एक रैली के लिए वो वाराणसी आ सकती हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस के कैडर का भी उत्साह ठंडा पड़ा हुआ है।

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