'कोख के सौदागर' गैंग का खेल खत्म, यूपी पुलिस के सामने उगले कई राज

यूपी पुलिस ने एक बड़े गैंग के सरगना की गिरफ्तारी की तो उसने अपराध के अपने सारे काले चिट्ठे खोलने शुरू कर दिए। नवजात बच्चों को बेचने का काम करने वाले गैंग के मास्टरमाइंड को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

Update: 2020-08-21 18:09 GMT
Up police arrested Surrogacy Gang Mastermind revealed many secrets

आगरा: यूपी पुलिस ने एक बड़े गैंग के सरगना की गिरफ्तारी की तो उसने अपराध के अपने सारे काले चिट्ठे खोलने शुरू कर दिए। नवजात बच्चों को बेचने का काम करने वाले गैंग के मास्टरमाइंड को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। आज पूछताछ में उसने कई बड़े खुलासे किए।

कोख के सौदागर गैंग का मास्टरमाइंड विष्णुकांत गिरफ्तार

उत्तर प्रदेश में कोख का सौदा करने वाले अपराधी गैंग को पुलिस ने फतेहाबाद क्षेत्र में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे से दो दिन पहले 19 जून गिरफ्तार किया था। एक्सप्रेस वे पर दो गाड़ियों में सवार 5 लोगों को इस दौरान पकड़ा गया। उनके पास से तीन नवजात बच्चियां मिली थीं। गैंग के सदस्य इन बच्चियों को नेपाल बेचने के लिए ले जा रहे थे।

गैंग के अन्य सदस्यों को भेजा जेल

इन पाँचों को पुलिस ने जेल भेज दिया। इनमे नीलम नाम की महिला भी शामिल थी, जो की खरीदाबाद की रहने वाली है। उसने पूछताछ में दिल्ली के आनंद राहुल सास्वत के बारे में बताया। पुलिस ने उसे भी पकड़ लिया। गैंग के मास्टरमाइंड विष्णुकांत का नाम भी पुलिस के सामने खुल गया, जो दिल्ली में एंब्रियोलॉजिस्ट के तौर पर काम करता था।

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पुलिस ने की थीं तीन नवजात बच्चियां बरामद

विष्णुकांत की पत्नी अस्मिता नेपाल की रहने वाली है। वहीं जब पुलिस ने विष्णुकांत की तलाश शुरू की तो वह कर्नाटक भाग निकला लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और आगरा लेकर आई। विष्णुकांत से पूछताछ हुई तो पता चला कि वह साल 2005 में दिल्ली आया था। गौरी अस्पताल में 15 हजार रुपये महीने पर एंब्रियोलॉजिस्ट की नौकरी की। चिकित्सक उसे पसंद करते थे। अच्छे काम की वजह से उसे डॉक्टर के तौर पर जाना जाने लगा था।

आरोपी विष्णुकांत की पत्नी नेपाल में

दो साल बाद वह दिल्ली के बड़े-बड़े अस्पताल में सेवा देने लगा। उसे एक केस के तकरीबन पांच से सात हजार रुपये मिलते। वहीं विष्णुकांत एक महीने में 20 केस लेता था, जिससे उसकी एक लाख से सवा लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती थी।

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विष्णुकांत ने बताया कि वह नेपाल के अलावा केन्या और रवांडा में ऑन डिमांड आईवीएफ सेंटर पर जाता था। विदेश में एक केस के लिए वह 20 हजार रुपये तक लेता था, जबकि भारत में उसी काम के पांच से सात हजार रुपये मिलते थे।

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