UP Politics: चाचा-भतीजे की जोड़ी 2024 में मोदी-योगी के लिए बनेगी सबसे बड़ी चुनौती!
UP Politics: सपा ने पिछले विधानसभा एवं लोकसभा उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल कर ये बता दिया है कि बीजेपी नामक इलेक्शन मशीन को हराना संभव है।
UP Politics: लोकसभा चुनाव को लेकर सबसे सबसे अधिक राजनीतिक हलचल उत्तर प्रदेश में है। 2014 से राज्य में लगातार चुनावी सफलता के झंडे गाड़ रही सत्तारूढ़ बीजेपी के सामने पुराना परिणाम दोहराने की चुनौती है। वहीं, मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के सामने राज्य में अपनी खोई सियासी प्रतिष्ठा को वापस पाने की चुनौती है। सपा ने पिछले विधानसभा एवं लोकसभा उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल कर ये बता दिया है कि बीजेपी नामक इलेक्शन मशीन को हराना संभव है।
इस जीत ने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को बीजेपी से अपने दम पर दो-दो हाथ करने की शक्ति प्रदान की है। मैनपुरी उपचुनाव के नतीजे ने यादव परिवार में छिड़ी जंग को भी समाप्त कर दिया, जिसे राजनीतिक हलकों में अखिलेश की सबसे बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है। चाचा शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश यादव को नेता मानते हुए अपनी पार्टी प्रसपा का सपा में विलय कर दिया। दोनों साथ आकर लंबी पारी खेलने का ऐलान कर चुके हैं।
अखिलेश ने चाचा शिवपाल को दिया रिटर्न गिफ्ट
सपा में वापसी करने वाले शिवपाल यादव को अखिलेश यादव रिटर्न गिफ्ट देने जा रहे हैं। दिवंगत मुलायम सिंह यादव के जमाने में पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले शिवपाल को कद फिर से पार्टी में बढ़ाया जा रहा है। सपा सुप्रीमो ने उन्हें विधानसभा में आगे की सीट पर बैठाने का निर्णय लिया है। आने वाले बजट सत्र में शिवपाल विपक्ष की अग्रिम पंक्ति में बैठ कर योगी सरकार को घेरते नजर आएंगे।
इसके अलावा दोनों नेताओं के बीच पिछले दिनों मुलाकात भी हुई है, जिसमें प्रदेश की राजनीति को लेकर चर्चा हुई। बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि किस तरह प्रसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का सपा में समायोजन होगा। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, अखिलेश शिवपाल खेमे के नेताओं को पार्टी में अदम पद दे सकते हैं।
चाचा-भतीजे की जोड़ी मोदी-योगी के लिए बन सकती है चुनौती !
विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के रिश्ते काफी खराब हो चुके थे। चाचा-भतीजे एक दूसरे पर सार्वजनिक रूप से बयानबाजी करते थे और शिवपाल ने तो विधानसभा में सपा विधायकों के साथ बैठने से इनकार कर दिया था। चाचा-भतीजे के बीच इस लड़ाई को सत्तारूढ़ बीजेपी मंद-मंद मुस्कान के साथ देख रही थी। पार्टी इसे अपने लिए 2024 की राह आसान होने के तौर पर देख रही थी। क्योंकि सपा के कई पुराने दिग्गज अखिलेश के काम करने के तरीके से संतुष्ट नहीं थे और उनकी नाराजगी साफ झलक रही थी।
मगर मैनपुरी उपचुनाव के नतीजे ने गेम को पलट दिया। अखिलेश-शिवपाल ने आपसी मनमुटाव को पीछे छोड़ते हुए साथ आकर बीजेपी के खिलाफ लड़ने का निर्णय लिया। इस कदम ने यादवलैंड में लोगों के कन्फ्यूजन को दूर किया और पार्टी के कार्यकर्ताओं का भरोसा बढ़ाया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शिवपाल के आने से परंपरागत वोटर्स वाले इलाके में सपा को फायदा तो पहुंचेगा ही साथ ही वे नेता भी फिर से पार्टी से जुड़ने लगेंगे जो अखिलेश के तरीके से निराश होकर अलग हो गए थे।
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव और खतौली विधानसभा उपचुनाव के नतीजे को इस एकता का ट्रेलर मानें तो बीजेपी के लिए ये किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। रामचरितमानस विवाद के जरिए सपा ने जो आक्रमक ओबीसी – दलित पॉलिटिक्स शुरू की है, उसने भी सत्ताधारी खेमे में हलचल मचा दी है। चाचा – भतीजे की ये जोड़ी आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी-योगी की जोड़ी के सामने कितने ब़ड़ी चुनौती खड़ी करेगी, ये आने वाला समय बताएगा।