UP Vidhan Parishad: केंद्र की तर्ज पर अब यूपी विधान परिषद में नहीं होगा नेता प्रतिपक्ष
UP Vidhan Parishad: विधान परिषद के इतिहास मे यह पहला मौका होगा जब यह सदन नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस विहीन दोनों हो जायेगा।
UP Vidhan Parishad: 2014 के बाद जिस तरह से भाजपा (BJP) का देश की राजनीति में तेजी से उभार हुआ और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष विहीन राजनीति का दौर शुरू हुआ उसकी हवा अब यूपी तक पहुंचने वाली है। अब उच्च सदन यानी विधान परिषद (UP Vidhan Parishad) में विपक्ष के कमजोर होने और भाजपा के अत्यधिक ताकतवर होने से नेता प्रतिपक्ष के पद को शोभायमान करने वाले राजनीतिक दलों की ताकत खत्म होने जा रही है। विधानपरिषद के इतिहास मे यह पहला मौका होगा जब यह सदन नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस विहीन दोनों हो जायेगा।
नियमानुसार संख्याबल के अनुसार सदन के कुल सदस्यों की संख्या के दस प्रतिशत सदस्य होने पर नेता प्रतिपक्ष का पद विपक्षी दल को मिलता है। जिस हिसाब से सदन में समाजवादी पार्टी का संख्याबल तेजी से घट रहा है उसके बाद से अब विधानपरिषद मे सपा नेता प्रतिपक्ष का ओहदा खो बैठेगी। अगले महीने विधानपरिषद का परिदृश्य बिलकुल बदल जायेगा।
विधानसभा में बहुमत की जादुई संख्या से काफी दूर रहने और विधानपरिषद के निकाय क्षेत्र से परिषद के चुनाव में जिस सपा का सूपड़ा साफ हुआ उसके बाद से अब सपा को एक और बड़ा झटका यह लगने जा रहा है कि उसके सदस्यों की संख्या आने वाले दिनों में जहां दस से कम हो जायेगी वहीं सत्तारूढ़ भाजपा विधानसभा के बाद इस सदन में भी प्रचंड बहुमत पा जायेगी। निकाय क्षेत्र से हुए परिषद के चुनाव में 36 सीटों पर हुए एमएलसी चुनाव में भाजपा ने 33 सीटें जीती हैं। 2 सीट निर्दलीय प्रत्याशियों के खाते में आई है। एक सीट जनसत्ता दल को मिली है।
भाजपा ने विधान परिषद में बहुमत हासिल किया
यूपी की राजनीति में भाजपा ने पहली बार विधान परिषद में बहुमत हासिल किया है। विधानपरिषद के मौजूदा संख्याबल की बात करे तो इस समय सपा के सत्रह सदस्य है इनमें से बारह सदस्यों का कार्यकाल छह जुलाई तक समाप्त हो जायेगा। छह जुलाई के बाद बाद सदन में सपा सदस्यो की संख्या महज पांच रह जायेगी। इस समय विधानसभा में सपा का जो संख्याबल है उसके अनुसार सपा के चार सदस्य ही सदन जा सकेंगे ।
अप्रैल में सपा के नामित सदस्यों में बलवंत सिंह रामूवालिया, वसीम बरेलवी और मधुकर जेटली का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इसके बाद 26 मई को भी 3 एमएलसी राजपाल कश्यप अरविन्द कुमार और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष संजय लाठर का कार्यकाल खत्म हो चुका है। अहमद हसन के निधन के बाद ही संजय लाठर को विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था।
सपा के 6 सदस्यों जगजीवन प्रसाद, कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, शतरुद्र प्रकाश, बलराम यादव और राम सुंदर दास निषाद का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। हालांकि शतरुद्र प्रकाश विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 6 जुलाई के बाद विधान परिषद में सपा के सिर्फ 5 सदस्य बचेंगे। और अब निर्वाचित होकर जाने वाले चार सदस्यों को मिलाकर उसका संख्याबल नौ हो जायेगा। यानि दस प्रतिशत के सदस्यों की अर्हता रखने के मानक में एक सदस्य कम होगा जिसके चलते उसे नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी से हांथ धोना पड़ेगा। जुलाई में विधानसभा कोटे की खाली हो रही 13 सीटों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गयी है सपा और भाजपा के सदस्यों के नाम भी आ गए है और लोगों ने नामांकन भी कर दिया है। विधानपरिषद का सदस्य निर्वाचित होने के लिए उम्मीदवार को 31 विधायकों के वोट जरूरी हैं। सपा और सहयोगी दलों की विधानसभा में सदस्य संख्या 125 है। अगर संख्या बल के हिसाब से देखा जाये तो समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी दल मिलकर 4 सीटें ही जीत सकते हैं। ऐसे में सपा के सदस्यों की संख्या 9 हो जाएगी। नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी के लिए 10 सीटें जरूरी हैं। यह पहला मौका होगा जिस समाजवादी पार्टी ने तीन बार गठबंधन और एक बार पूर्णबहुमत की सरकार चलाई हो उसका यूपी के इस उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष तक का पद भी नहीं रहेगा।