बेहाल कुम्हारों के लिए माटी कला बोर्ड बन के रह गया 'गूलर का फूल'?

'कोरोना ने कमर तोड़ दी है। कुम्हारी अब मुनाफे का काम नहीं रह गया है। कुम्हारी कर के दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता साब। बच्चे को पढ़ाना दूर की बात है।'

Newstrack :  Rishi Bharadwaj
Published By :  aman
Update: 2022-04-30 12:59 GMT

मटका बनाता कुम्हार (फाइल फोटो) 

ऑफिस के लिए निकल रहा था। तभी पंडित जी टकरा गए बोले भैया दो बड़े घड़ों का इंतजाम करवा देते मंदिर के लिए। राहगीरों को शीतल जल मिल जाता। पैसे देने को हुआ तो पंडित जी बोले, आसपास की सभी दुकानें बंद हो चुकी हैं। घड़े मिल नहीं रहे। आप देख लेना कहीं मिल रहे हों तो पैसा दीजियेगा हम जाकर ले आएंगे। हां में सिर हिला हम निकल लिए।

नहीं मिला घड़ा 

घर से निकले तो हरदोई रोड पर घड़े-सुराही की एक दुकान का ख्याल आया। वहां पहुंचे तो पता चला दो साल पहले दुकान बंद हो चुकी है। पता चला डालीगंज में देख लीजिये, शायद वहां मिल जाए। वहां भी दुकान लापता थी। लोगों ने बताया 1 साल हो गया बंद हुए। किसी ने बताया मरी माता मंदिर के पास दुकान है। वहां देख लीजिये। शाम को मरी माता मंदिर के पास भी दुकान बंद मिली। यहां राजाजीपुरम में घड़ा मिलने की बात पता चली तो राजाजीपुरम का रुख किया। वहां घड़ा तो मिला लेकिन साथ ही कुछ ऐसा भी पता चला जिसने हैरत में डाल दिया। 

35 सौ की एक ट्राली मिट्टी

सुरेश की दुकान में घड़ा मिला। बातचीत होने लगी कि दुकाने बंद हो गई हैं कई। सुरेश ने बताया, कोरोना ने कमर तोड़ दी है। कुम्हारी अब मुनाफे का काम नहीं रह गया है। कुम्हारी कर के दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता साब। बच्चे को पढ़ाना दूर की बात है। अब हम भी जल्द इसे बंद कर देंगे। पूछने पर बताया कि एक ट्राली मिट्टी 35 सौ की है। वो भी साफ़ नहीं होती। इसके बाद पुलिस और खनन वाले भी परेशान करते हैं। 35 सौ की ट्राली 4 हजार की पड़ती है। मिट्टी की सफाई अलग से करनी होती है। माल जब बनकर तैयार होता है तो खरीदार नहीं मिलते। मेरे घर के आसपास लगभग 50 घर हैं जो कुम्हारी किया करते थे। लेकिन अब पानी के बताशे का ठेला, खस्ते आलू का ठेला लगा रहे हैं। ई रिक्शा चला रहे हैं।


वापस कुम्हारी नहीं करनी है  

हमारी मुलाकात धर्मेंद्र से हुई। धर्मेंद्र ने बताया, दो साल पहले तक हालात कुछ सही थे। मटके, घड़े, सुराही बिका करते थे। कोरोना काल में मिट्टी मिलना बंद हुई। पास के पैसे भी खर्च हो गए तो मज़बूरी में ठेला लगाया। लेकिन, अब ये फायदेमंद लग रहा था। एक दिन में 5 से 6 सौ की बचत हो जाती है। घर आराम से चलने लगा है। कुम्हारी में इतना नहीं कमा पाते थे। हफ़्तों मेहनत के बाद कुल्हड़, सुराही, मटके तैयार होते थे और उनकी लागत भी नहीं निकल पाती थी। अभी वापस कुम्हारी नहीं करनी है।


आलू और पानी के बताशे का ठेला

हमारी मुलाकात रामऔतार से होती है। पानी के बताशे लगाते हैं। पहले कुम्हारी करते थे। बात उन्होंने इस शर्त पर की, कि पहले हम उनके बताशे खायेंगे। जब बात शुरू हुई तो पहला सवाल किया कि कुम्हारी क्यों छोड़ दी? जवाब मिला बाप्पा के साथ कुम्हारी किया करते थे लेकिन फिर मिट्टी और लागत को लेकर मुश्किलें होने लगी। सोचा कुछ और किया जाए। इसलिए पहले फेरी लगा के 'बुढ़िया के बाल' बेचे फिर 'बताशे का ठेला' लगा लिया। अभी 4 से 4.50 रु हर दिन कमा लेते हैं। घर बक्शी का तालाब में हैं। आसपास कई और कुम्हारों के घर भी हैं। लेकिन अब कुछ ही परिवार इस काम में हैं बाकी सबने काम छोड़ दिया है।

कुम्हार बेच रहे मसाला, सिगरेट, चाय  

रामफेर भी कुम्हारी करते थे। लेकिन अब पान मसाला, सिगरेट और चाय बेचते हैं। उन्होंने बताया अब कुल्हड़ बनाने की मशीन लग गई हैं। जो कम समय में ज्यदा काम करती है। माल भी सस्ता होता है। जब हम काम करते थे तो मुश्किल से 8-10 हजार कमा पाते थे। महीने में दुकान भले छोटी है लेकिन दो समय की रोटी तो दे पाते हैं परिवार को।


क्या है कुम्हारों की मांग?  

हमें इस दौरान अफजल, राधा, संजय रामबचन भी मिले जो अभी भी कुम्हारी कर रहे हैं। उन्हें बस आस है कि सरकार उनकी सुने और उनकी चाक चलती रहे। इन्हें माटी कला बोर्ड के बारे में जानकारी तो है लेकिन इसका फायदा कैसे मिलेगा? क्या फायदा मिलेगा ये नहीं पता। उन्होंने बताया, सरकार कुछ योजना चला रही हैं। लेकिन ज्यादा कुम्हारों तक इसकी जानकारी नहीं पहुंच रही है।    

- मिट्टी के लिए सरकार एक स्थान निश्चित कर दे

- पुलिस और खनन वाले परेशान न करें।

- मिट्टी के रेट कम हों।

- कुम्हारों को पट्टा मिले।

- सब्जी, फल और अनाज मंडी की तरह कुम्हारों की भी मंडी हो।

- माटी कला बोर्ड के बारे में हमारी बिरादरी को जागरूक करें।

- सिर्फ बड़े कुम्हारों को ही योजना का लाभ न मिले।

- कुम्हार कार्य के लिए प्रयोग होने वाली मिट्टी व्यावसायिक में दर्ज न हो।

- लिखा-पढ़ी कम से कम हो। एक ही अधिकारी से सभी अनुमति मिल जाए।  


माटी कला बोर्ड क्या कर रहा है?  

माटी कला बोर्ड के सीनियर मैनेजर नीरज सक्सेना ने हमें बताया, कि 'मुख्यमंत्री माटीकला रोजगार योजना प्रदेश भर में चल रही है। जिला ग्रामोद्योग कार्यालय में बोर्ड का ऑफिस है। बोर्ड द्वारा माटी कला कार्य में लगे कुम्हार को बिजली वाली चाक, उपकरण, वर्कशेड, भट्टी और कच्चे माल के लिए 10 लाख तक ऋण दिया जाता है। उन्होंने बताया, कुल लागत का 95 फीसदी ऋण बैंक स्वीकृत करता है। बाकी का 5 फीसदी आवेदक द्वारा लगाया जाता है। इसके बाद टर्म लोन का 25 फीसदी लाभार्थियों को बोर्ड द्वारा अनुदान दिया जाएगा।'

कौन कर सकता है आवेदन? 

नीरज सक्सेना ने बताया, 'इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदक की उम्र 18 से 55 वर्ष, माटी कला, माटी शिल्पकला की किसी विधा में प्रशिक्षित होना चाहिए। कला की मूलभूत जानकारी अवश्य होनी चाहिए।

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