Sonbhadra News: NTPC सिंगरौली में चिमनी से निकलने से पहले ही अलग हो जाएगी सल्फर डाइऑक्साइड, पर्यावरण के लिए जरूरी कदम
Sonbhadra News: विद्युत उत्पादक कंपनी NTPC की शक्तिनगर स्थित मदर यूनिट सिंगरौली की चिमनियां जल्द ही प्रदूषण मुक्त दिखाई देंगी।
Sonbhadra News: देश के सबसे बड़ी विद्युत उत्पादक कंपनी NTPC की शक्तिनगर स्थित मदर यूनिट सिंगरौली की चिमनियां जल्द ही प्रदूषण मुक्त दिखाई देंगी। इसके लिए बुधवार को परियोजना के 500 मेगावाट क्षमता वाली इकाइयों के लिए चिमनी सेल कंक्रीट ( एफजीडी प्लांट के लिए अलग से चिमनी एवं सिविल वर्क) का कार्य शुरू कर दिया गया।
शुभारंभ कार्यकारी निदेशक देबाशीष चट्टोपाध्याय ने भूमि पूजन एवं नारियल फोड़कर किया। बताया कि चिमनी की हाइट लगभग 200 मीटर रखी गई है। निर्माण पूर्ण होने के बाद इसे 500 मेगावाट वाली इकाइयों के लिए बनी पुरानी चिमनी से कनेक्ट किया जाएगा।
इस तकनीक से अलग होंगे प्रदूषक तत्व
इसके बाद नवीनतम तकनीक के जरिए सिवनी से निकलने वाले धुएं से सल्फर डाइऑक्साइड अलग कर लाइम रिएक्शन के जरिए जिप्सम में बदला जाएगा। चिमनी में मौजूद अन्य खतरनाक प्रदूषक तत्व भी इस तकनीक की मदद से अलग कर लिए जाएंगे। इसके बाद चिमनी से सिर्फ साफ हवा ही निकलेगी।
यह कदम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काफी कारगर साबित होगा। सिविल कार्य के लिए छह महीने और पूरी तरह कार्य पूर्ण करने की अवधि एक साल तय की गई है।
एजीएम तकनीकी विनय कुमार अवस्थी ने कहा कि चिमनी के जरिए प्लांट से दो प्रकार (ठोस और गैसीय) के प्रदूषक निकलते है। एफजीडी तकनीक से ठोस पदार्थ इलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपक की सहायता से अलग हो जाते हैं। बाकी का बचा फ्लू गैस-गैसीय प्रदूषक (सल्फर डाइऑक्साइड) को लाइम रिएक्शन के जरिए जिप्सम में बदल लेते हैं।
प्रबंधक मानव संसाधन एवं जनसंपर्क आदेश कुमार पांडेय ने बताया कि सिंगरौली विद्युत गृह हमेशा पर्यावरण संरक्षण के लिए सजग रहा है। इसके लिए कई पुरस्कार भी परियोजना को मिले हैं ।
बता दें कि एनटीपीसी ने जनपद से सटे सिंगरौली में स्थापित देश के सबसे बड़े विंध्याचल प्लांट में इसे स्थापित किया है, इसका बेहतर परिणाम सामने आने के बाद एनटीपीसी सिंगरौली में भी इसके स्थापना का काम शुरू कर दिया गया है।
पर्यावरण स्वास्थ्य दोनों पर असर डालता है सल्फर डाइऑक्साइड:
पर्यावरणविद सीमा बताती हैं कि सल्फर डाइऑक्साइड वातावरण में जाने से इसका दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य, वनस्पति एवं अन्य जीवों पर पड़ता है। इसकी अधिकता वनस्पति और जमीन दोनों की उपजाऊ क्षमता कम कर देती है । बीमारियां भी बढ़ती हैं।
राज्य सरकार को भी चाहिए कि वह अपनी परियोजनाओं में इस तरह की नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल करे और निजी क्षेत्र की परियोजनाओं में भी इसके लिए दबाव बनाया जाए।