देहरादून। उत्तराखंड में इतिहास एक बार फिर दोहरा रहा है। एक टिकट पर तीन पिक्चरें देखने के आदी हो चुके यहां के लोग एक बार फिर नई पिक्चर देखने की तैयारी में जुट गए हैं। यह बात कहीं और नहीं इस बार भाजपा संगठन में दिखाई दे रही है। जहां त्रिवेंद्र रावत की संघ की लइया चना खाकर काम करने की शैली सत्ता की मलाई चाटने को आतुर बैठे लोगों के गले के नीचे नहीं उतर रही है।
दरअसल यह ऐसा राज्य है जहां काम हो या न हो राजनीति होनी चाहिए और यह बात इस राज्य के गठन से लेकर लोगों के दिमाग में बैठी हुई है। जब इस राज्य का गठन हुआ और नित्यानंद स्वामी पहले मुख्यमंत्री बने तो उस समय भी विधानसभा का गठन होने से पहले ही भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री हो गए थे। इसके बाद नारायण दत्त तिवारी ने अपने कौशल और चातुर्य से सबको मलाई बांट कर पांच साल पूरे किये।
इसके बाद हरीश दा आए फिर रमेश पोखरियाल निशंक, फिर खंडूड़ी, इसके बाद विजय बहुगुणा, हरीश रावत और फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत। यानी 17 साल में नौ मुख्यमंत्री। जहां एक मुख्यमंत्री के शपथ लेते ही चर्चा शुरू हो जाती हो कि अगला कौन उस राज्य में अब यह पता चलने पर कि आलाकमान से रिश्तों में कड़ुवाहट है एक बार फिर बगावती सुर उभरने शुरू हो गए हैं।
इस बार असंतोष की आंच कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए नेताओं की ओर से और उनके विरोध को लेकर उठी है। ये सभी सत्ता में तवज्जो न दिये जाने से बहुत परेशान हैं। दिसंबर से ही ये नेता प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के दरबार में हाजिरी लगाकर दुहाई देते घूम रहे हैं। इन विधायकों को राज्य के भाजपा के दो वरिष्ठ एवं पूर्व मुख्यमंत्रियों, एक पार्टी में ताजा ताजा आए कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री, एक संत राजनेता व एक वर्तमान मंत्री का समर्थन हासिल है।
इन विधायकों में बदरीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट, गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत, यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत, खानपुर विधायक कुंवर प्रणव चौंपियन और चमोली के जिलाध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल के नाम लिये जा रहे हैं। मजे की बात यह है कि जो नेता कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आकर मंत्री नहीं बन पाए वह तो नाराज हैं ही, साथ ही खुश वह भी नहीं हैं जो प्रदेश सरकार में मंत्री पद पा चुके हैं उन्हें महत्व न मिलने का दर्द है। इसके साथ ही नाराज वह भी हैं जिन्हें अब तक कोई पद नहीं मिला है।
जबकि कहा जा रहा है कि कैबिनेट में अभी दो पद खाली हैं। एक चीज जिससे केंद्र से लेकर राज्य सरकार व भाजपा संगठन घबड़ा रहा है वह है निकाय चुनाव व 2019, यह एक ऐसी फांस है जब सबके गले में फंसी है। इसीलिए कोई भी रेवड़ी बांटकर नाराजगी से बचना चाह रहा है। ये चिंता अजय भट्ट व त्रिवेंद्र दोनो को है।
समस्या एक एक अनार सौ बीमार की है। किच्छा विधायक राजेश शुक्ला व हरिद्वार ग्रामीण से विधायक स्वामी, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के अलावा बंशीधर भगत, हरबंस कपूर, मुन्ना सिंह चौहान, चीमा आदि अनके ऐसे नाम हैं जो खुद को मंत्री पद का दावेदार मानकर चल रहे हैं।
काशीपुर विधायक हरभजन सिंह चीमा, राजपुर विधायक व पूर्व मंत्री खजान दास, धर्मपुर विधायक व मेयर विनोद चमोली, बलवंत सिंह भौर्याल, महेंद्र भट्ट, विधायक बंशीधर भगत समेत कई विधायक असंतुष्टों की कतार में शामिल हैं। समय बीतने के साथ ये कतार लंबी होती जा रही है। मसला ये है कि त्रिवेंद्र भरोसा किस पर करें। खुद अपने ही आस्तीन के सांप बने हुए हैं। बाहर से आए बाहरियों पर वह भरोसा कर नहीं पा रहे हैं जब भी कुछ गड़बड़ होता है बाहरियों पर उनका संदेह गहरा जाता है।