Joshimath Sinking: 'जोशीमठ में भू-धसाव के पैरेनियल स्ट्रीम और कच्ची चट्टानें भी जिम्मेदार', बोले भूगर्भ शास्त्री

Joshimath Sinking: भूगर्भ शास्त्रियों का कहना है कि जोशीमठ में अनियंत्रित तरीके से हुआ निर्माण भू-धसाव के लिए जिम्मेदार है। कुछ अन्य मुख्य कारणों को भी उन्होंने चिन्हित किया है।

Written By :  aman
Update: 2023-01-11 15:08 GMT

प्रतीकात्मक चित्र (Social Media) 

Joshimath Sinking: उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धसाव के कारण सैकड़ों इमारतों में दरारें आ गई हैं। भूगर्भ शास्त्रियों (Geologists) का कहना है कि अनियंत्रित तरीके से हुआ निर्माण इसके लिए जिम्मेदार है। साथ ही, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Disaster Management Authority) एवं विशेषज्ञों ने इस त्रासदी के लिए कुछ अन्य मुख्य कारणों को भी चिन्हित किया है।

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक, जोशीमठ में भू-धसाव के लिए पेरेनियल स्ट्रीम (Perennial Stream) यानी लगातार पानी का बहाव बने रहना भी काफी हद तक जिम्मेदार बताया जा रहा है। दरअसल, जोशीमठ चारों ओर से नदियों से घिरे पहाड़ पर बसा है। यहां चारों ओर ढकानाला, कर्मनासा (karmanasa), अलकनंदा (Alaknanda) और धौलीगंगा नदियां (Dhauliganga Rivers) हैं।

जोशीमठ में क्यों पैदा हुई खतरनाक स्थिति? 

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, नदियों से घिरे होने के कारण यहां सतह के नीचे और ऊपर पानी का बहाव रहता है। इससे सतह पर नमी है। वहीं, जमीन के भीतर की चट्टानें कमजोर हैं। जो पेरेनियल स्ट्रीम से और भी कमजोर हो चुकी हैं। इस वजह से खतरनाक स्थितियां पैदा हुई हैं। गौरतलब है कि, जोशीमठ में हो रहे भू-धसाव के कारण कुल 723 इमारतों में दरारें दिखाई दी हैं। सुरक्षा के नजरिये से कुल 131 परिवारों को अस्थाई रूप से विस्थापित किया गया है। जोशीमठ नगर क्षेत्र के अंतर्गत अस्थाई रूप से 1,425 क्षमता के 344 राहत शिविर के साथ ही जोशीमठ क्षेत्र से बाहर पीपलकोटी में 2205 क्षमता के 491 कक्षों को चिन्हित किया गया है।

क्या बता रहे भूगर्भ शास्त्री?

प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री एके धामा (Geologist AK Dhama) के अनुसार, जोशीमठ से ऊपर बर्फबारी और तेज बारिश होती है। मौसम सुधरने पर यह बर्फ पिघल कर जोशीमठ के चारों ओर बहने वाली नदियों का जलस्तर बढ़ा देती है। नदियों में तेज बहाव होने के कारण भूमि का कटाव होता है। यही भूस्खलन का बड़ा कारण है। जियोलॉजिस्ट बताते हैं कि जमीन के नीचे की चट्टानों को तीन भागों में बांटा जाता है। जिसमें सबसे ऊपरी सतह को मेटामर्फिक चट्टान (Metamorphic Rock) कहते हैं। इन चट्टानों पर जब अधिक दबाव और तापमान पड़ता है, तो नीस चट्टानें बनती हैं। जोशीमठ के अधिकतर क्षेत्रों में ऐसी ही नीस चट्टानें हैं। नीस चट्टान अपक्षयी होती हैं और इन चट्टानों में टूट-फूट होती है।

जोशीमठ टूटे पहाड़ों के मलबे पर बसा है

जूलॉजिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक, 'जोशीमठ टूटे हुए पहाड़ों के जिस मलबे पर बसा है, वह तेजी धंस रहा है। जूलॉजिस्ट कहते हैं कि अब इसे रोकना संभव नहीं दिख रहा है। उत्तराखंड के डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री का मानना है कि स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है, यही कारण है कि अब यहां लोगों को स्थानांतरित करने के काम को पहली प्राथमिकता दी जा रही है। कई रिपोर्टर का भी कहना है कि जोशीमठ की स्थिति काफी विकट हो चुकी है। इन भवनों का ध्वस्त होना लगभग तय है। इस बीच जोशीमठ में चल रहे सभी निर्माण प्रोजेक्ट रोक दिए गए हैं।

इतिहास की किताबों में भी जोशीमठ का जिक्र

प्रसिद्ध इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल (Historian Shiv prasad Dabral) ने अपनी किताब में बताया है कि, सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां लैंडस्लाइड की बड़ी घटना हुई थी। इतिहासकारों के मुताबिक, तब जोशीमठ को कार्तिकेयपुर (Kartikeypur) शिफ्ट किया गया था। वहीं, 80 साल से भी पहले वर्ष 1939 में आई पुस्तक 'सेंट्रल हिमालय जूलॉजिकल ऑब्जरवेशन ऑफ द स्पेस एक्सपीडिशन' में भी जोशीमठ लैंडस्लाइड के ढेर पर बसने की बात लिखी गई थी। स्विस एक्सपर्ट इस पुस्तक के लेखक थे।

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