उत्तराखंड हादसे की भविष्यवाणीः प्रलय आना था तय, आज मौत बनकर टूटे ग्लेशियर
केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार, सेना से लेकर ITBP और NDRF तक राहत बचाव कार्य में जुटे हुए हैं। कम से कम नुकसान में लोगों को बचाया जा सकें इसके लिए पूरी ताकत झोंक दी गयी है लेकिन इस जल प्रलय की भविष्यवाणी आठ महीने पहले ही कर दी गयी थी।
देहरादून: उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने के बाद आई बाढ़ के बाद हजारों जिंदगियां खतरे में हैं। सैंकड़ो लोग लापता है, तो कई मजदूर फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार, सेना से लेकर ITBP और NDRF तक राहत बचाव कार्य में जुटे हुए हैं। कम से कम नुकसान में लोगों को बचाया जा सकें इसके लिए पूरी ताकत झोंक दी गयी है लेकिन इस जल प्रलय की भविष्यवाणी आठ महीने पहले ही कर दी गयी थी।
8 महीने पहले ही वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड में आपदा की चेतावनी दी थी
दरअसल, भू-वैज्ञानिकों ने करीब 8 महीने पहले ही उत्तराखंड में ऐसी आपदा आने को लेकर आगाह किया था। हालांकि वैज्ञानिकों की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया और उसका खामियाजा आज पूरा देश अपनी नजरों से देख रहा है। अगर भू वैज्ञानिकों की चेतावनी पर उस समय ही कार्रवाई कर ली जाती ती तो शायद आज की घटना से उत्तराखंड वासियों को बचाया जा सकता था।
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बता दें कि देहरादून में स्थित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले साल जून-जुलाई 2020 में एक स्टडी के मुताबिक़ चेतावनी दी थी कि जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदियों के प्रवाह को रोकने और उससे बनने वाली झील से खतरा मंडरा रहा है।
ग्लेशियर से नदियों के प्रवाह को रोकने से जुड़े स्टडी की रिपोर्ट से किया आगाह
इसके पहले साल 2019 में ग्लेशियर से नदियों के प्रवाह को रोकने से जुड़े शोध आइस डैम, आउटबस्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनिटी ऑफ ग्लेशियर में सेटेलाइट इमेजरी, डिजीटल मॉडल, ब्रिटिशकालीन दस्तावेज, क्षेत्रीय अध्ययन की एक रिपोर्ट वैज्ञानिकों ने जारी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक़, इस इलाके में कुल 146 लेक आउटबस्ट की घटनाओं का पता लगाकर उसकी विवेचना की गई थी। शोध में पाया गया कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
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हालांकि पीओके के काराकोरम क्षेत्र में कुछ ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है। इस वजह से ग्लेशियर एक समय के बाद आगे बढ़कर नदियों का मार्ग रोक रहे हैं। ऐसे में ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की बर्फ तेजी से ग्लेशियर के निचले हिस्से की ओर आती है। वहीं झीलों के टूटने का खतरा बढ़ता है।
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