Pm Modi Clean Chit: मोदी का बाल यदि बांका हो जाता तो, देखें गुजरात दंगे पर Y-FACTOR Yogesh Mishra के साथ

Modi Clean Chit Gujarat Riots: SIT ने दंगों की साज़िश में शामिल होने को लेकर सीएम नरेंद्र मोदी पर लगे आरोप की भी जांच की. मार्च 2010 में उन्हें अपने कार्यालय में बुलाकर लगातार 9 घंटे तक पूछताछ की.

Written By :  Yogesh Mishra
Written By :  K Vikram Rao
Update:2022-07-23 18:47 IST

Pm Modi Clean Chit Gujarat Riots: मैं अपनी बात एक हाइपोथिसिस से शुरू करता हूँ। कल्पना कीजिये कि सर्वोच्च अदालत ने अहमदाबाद के मामले में ग़लत फ़ैसला दे दिया होता। ऐसी कल्पना करना इसलिए ज़रूरी हो जाता है क्योंकि जितने दस्तावेज लगाये गये थे, जो गवाह उपस्थित कराये गये थे, जो बातें कही गयी थीं, जिस तरह अफ़सरों ने अपने अपने बयान दिये थे। उससे यह तो लगता ही था कि कोर्ट को गुमराह कर लेना बहुत मुश्किल नहीं है। लेकिन एक कहावत है कि सत्य परेशान होता है, पराजित नहीं होता है। ये जो कहावत है और जिस तरह सत्यमेव जाते हमारा ध्येय वाक्य है। उससे यह तो हमको आपको विश्वास करना ही चाहिए कि जितना भी असत्य हो , एक झूठ को सौ बार बोल कर सत्य नहीं किया जा सकता है। और असत्य जीतता नहीं है सिर्फ़ सत्य को परेशान करता है। तो नरेंद्र मोदी लंबे समय से परेशान रहे। गुजरात से लेकर दिल्ली तक ।और आज भी परेशान किये जा रहे हैं। हालाँकि यह बात दूसरी है कि उनको उनकी परेशानी के एवज़ में बहुत कुछ मिला। पद के रूप में भी, क़द के रूप में भी और लोकप्रियता के रूप में भी। वो आज की तारीख़ में देश के सबसे बड़े लोकप्रिय नेताओं में शुमार किये जाते हैं। और दूर दूर तक उनके आसपास इस क़द का नेता नहीं दिखता है।

अब उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ को देखें। मुम्बई में शिक्षित अजय मानिकराव खानविलकर, उदयपुर में जन्में न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और केरल के न्यायमूर्ति चूडियल थेवन रविकुमार ने सर्वसहमति से तीस्ता सीलवाड के मोदी के विरुद्ध याचिका को खारिज कर दिया। तीस्ता को न्यायप्र​क्रिया से खिलवाड़ करने का अपराधी माना। तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दोष से मुक्त कर तीनों न्यायमूर्तियों ने समूचा न्याय किया।

अत: भारत अब बच गया। जनतंत्र जीवित रहा। सुप्रीम कोर्ट ने अंतत: सच को खोजा, पाया और उजागर भी किया। प्रधानमंत्री दोषहीन निकले। उनकी मां हीराबा के जन्मशती वर्ष में इस मातृभक्त को दैवी रक्षा मिल गयी। मां की अनुकम्पा ने पुत्र को उबारा, वे पुत्र के लिए तारणहार बनीं।

उस दौर में उन्हीं की पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी इस युवा मुख्यमंत्री को राजधर्म पढ़ाने और पालन कराने पर आमादा थे। नेहरुछाप उदार राजनेता की अटलजी फोटोकॉपी बन जाते। तब गोवा में 2002 में भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने विचार किया और मोदी के पक्ष में निर्णय लिया। हटाया नहीं। अटलजी की चली नहीं। गांधीनगर से भाजपा सांसद 75—वर्षीय लालचन्द किशिनचंद आडवाणी इस गुजराती के त्राता बने। मोदी को तीसरी पारी खेलने का अवसर मिल गया। फिर मोदी साबरमती तट से यमुनातट पर आ पहुंचे। मगर आडवाणी तब मार्गदर्शक बना दिये गये। वानप्रस्थ अवस्था में थे। फिलहाल दुरभिसंधि से मोदी महफूज रहे। शिखर पुरुष बने रहे।

अब चर्चा उस शठत्रिया की जो इस पूरे काण्ड की खलनायिका बनीं। नाम है उसका 60—वर्षीया पत्रकार तीस्ता जावेदमियां सीतलवाड । जिनके दादा मोतीलाल चिमनलाल सीतलवड आजाद भारत में नेहरु के लगातार तेरह साल प्रथम महाधिवक्ता रहे। उनके पिता चिमनलालजी उस हंटर आयोग के सदस्य थे, जिसने जलियांवालाबाग नरसंहार के लिए जनरल डायर को में निर्दोष बता दिया था।

अरब सागरतटीय मुंबई में जुहू क्षेत्र के तारा रोड पर धन्नासेठों की कोठियां हैं। वहीं फिल्मी सितारे अमिताभ बच्चन का भी घर है। इस भीमाकाय बंगले से कई गुना प्रशस्त है तीस्ता सीतलवाड का बंगला, जिसका बगीचा चार एकड़ वाला है। यही से वंचितों, पीड़ितों, गरीबों, शोषितों, झुग्गी—झोपड़ी वालों के नाम पर विदेशों से धन संचित किया जाता है। मगर यह राशि नीचे तक पहुंचती ही नहीं।

चाहकर भी तीस्ता वकील नहीं बन पायी क्योंकि लॉ की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। मगर उसने बड़ा लाभदायक धंधा शुरु किया। पति जावेदमियां के साथ तीस्ता ने एक सबरंग नाम का न्यास बनाया। कथित रूप से मानवाधिकार रक्षा तथा सांप्रदायिकता—विरोधी इस समिति ने देश—विदेश से अनुदान की उगाही तथा खैरात की वसूली चालू की। केन्द्रीय मंत्रालय ने उनके न्यास को मिला विदेशी दान हेतु पंजीकरण रद्द कर दिया।मगर तब तक अमेरिकी संस्था फोर्ड फाउंडेशन उन्हें तीन करोड़ से अधिक राशि दे चुकी थी।

अपने 500 से अधिक पृष्ठवाले फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने तीस्ता द्वारा स्तब्ध करनेवाली बातों का जिक्र किया। तीस्ता अपनी इच्छा के मुताबिक याचिका में बातें जोड़ती और काटती थीं। नये साक्ष्यों तथा आरोपों को पेश करती रहती थीं। अपील की सुनवाई अनवरत जारी रखना चाहती थीं। हालाँकि कोर्ट ने कहा कि याचिका स्तरीय नहीं है।

जजों के लिखा कि तीस्ता ने न्यायालय के सामने झूठे आरोप लगा कर पीठ को भ्रमित करने की कोशिश की। एक अवसर पर तीस्ता चाहती थी कि अदालत उसके समर्थक भट्ट का बयान मान ले । क्योंकि वह ''सत्यवादी'' हैं। यही भट्ट आजकल पालनपुर जेल में बंद हैं । क्योंकि हिरासत में उन्होंने एक कैदी की हत्या करा दी थी।

इसी भट्ट का वक्तव्य था कि 27 फरवरी, 2002 के दिन मुख्यमंत्री मोदी ने गांधीनगर में अफसरों के बैठक में कहा था : ''मुसलमानों को सबक सिखाना है।'' जजों ने कहा कि : तीस्ता का यह बयान भी बिलकुल झूठा ही निकला।

तीस्ता ने बताया था कि साबरमती ट्रेन के जले कोच से लोगों की लाशों को सड़क पर जुलूस की शक्ल में ले ज़ाया गया। ताकि दंगे भड़कें। यह भी सरासर झूठ निकला। याद कीजिये सदन में सोनिया गांधी की सीट के बग़ल में बैठकर तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने क्या कहा था ? लालू ने कहा था कि कार सेवकों ने अपने डिब्बे को अंदर से ही जला लिया था। अर्थात अयोध्या के इन तीर्थयात्रियों ने आत्मघात किया। वाह रे चारा चोर !! मुख्य अभियुक्त रफीक हुसैन भटुक 16 फरवरी, 2021, को घटना के 19—वर्ष बाद गिरफ्तार हुआ। उसका बयान जरुरी था, मगर वह भी झूठा निकला। जजों ने कहा कि तीस्ता गुजरात को बदनाम करना चाहती थीं। उसने जाकिया जाफरी को अपने मकशद के लिये औजार बनाया। और जाकिया जाफरी को भी जैसा चाहा वैसा बयान रटवाया। सुप्रीम कोर्ट के सात दशकों के इतिहास में इतना कड़ा और मर्मस्पर्शी निर्णय आजतक नहीं दिखा। तीस्ता को केवल खुन्नस थी और इसीलिये गुजरात से प्रतिशोध चाहती थी।

बेंच ने लिखा कि तीस्ता ने फर्जीवाड़ा किया। दस्तावेजों को जाली बनाया। गवाहों से असत्य बयान दिलवाये, उन्हें मिथ्या पाठ सिखाया। पहले से ही टाइप किये बयानों पर गवाहों के दस्तखत कराये। इसी बात के 11 जुलाई, 2011 को गुजरात हाई कोर्ट ने भी लिखा था । हाईकोर्ट में दाखिल की गयी याचिका की संख्या 1692/2011 थी। तीसरा आरोप है कि उसने तथा अपने साथी फिरोजखान सैयदखान पठान ने सबरंग न्यास के नाम पर गबन और अनुदान राशि का बेजा उपयोग किया। अनुदान की राशि को निजी सुख और सुविधा पर व्यय किया गया। जजों ने कहा कि सरकारी वकील ने दर्शाया है कि किस भांति तीस्ता और उसके पति ने 420, फर्जीवाड़ा धोखा आदि के काम किये। निर्धन और असहायों के लिये जमा धनराशि को डकार गयी। खुद गुजरात हाईकोर्ट ने इन अपरा​धियों की याचिका खारिज कर दी और फैसला दिया कि सवाल जवाब के लिए इन्हें हिरासत में लिया जाये।

हाईकोर्ट ने इन दोनों को अग्रिम जमानत व अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ''तीस्ता ने झूठे याचिकाकत्री को पेश किये ताकि सुनवाई लंबी खिंचती रहे। उठाये मुद्दे, मसले और विषय बेबुनियाद तथा निरर्थक थे। कोर्ट ने कहा याचिका में न स्तर, न तथ्य है।न गुण है।

यही नहीं, सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना करते हुए तीस्ता सीतलवाड ने तमाम अदालती दस्तावेज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुँचाये। जो अनर्गल है, ग़लत है और भर्त्सना करने के लायक़ है। हालांकि तीस्ता ने ऐसा नहीं करने की वादा किया था। तो यह है किस्साये-तीस्ता की छोटा सा हिस्सा ।जिसने भारतीय गणतंत्र को फँसाने की कोशिश की। सौभाग्य है अदालत ने आँखें खोली रखीं। और देश बच गया। लोकतंत्र बच गया। सत्य जीता और झूठ पराजित हुआ। 

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