Afghanistan News: भंवर में फंसा अफगानिस्तान, देश पर शासन करेगी 12 सदस्यीय कमेटी!

Afghanistan News: अफगानिस्तान एक अजीब से भंवर में फंसा हुआ है। तालिबान के कंट्रोल के बावजूद अभी तक देश में औपचारिक सरकार का गठन नहीं हो पाया है।;

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update:2021-08-25 18:25 IST

12 सदस्यीय कमेटी के सदस्य (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Afghanistan News: अफगानिस्तान एक अजीब से भंवर में फंसा हुआ है। तालिबान (Taliban) के कंट्रोल के बावजूद अभी तक देश में औपचारिक सरकार का गठन नहीं हो पाया है, अफगानिस्तान (Afghanistan) से बाहर निकलना चाहने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और हजारों लोग कैसे निकाले जायेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।

अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बिडेन (Joe Biden) अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी 31 अगस्त तक पूरी कर लेने पर अड़े हुए हैं जबकि तालिबान भी इस बात पर अड़ा हुआ है कि 31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान में एक भी अमेरिकी सैनिक मौजूद नहीं होना चाहिए। लेकिन अमेरिका (America) पर ग्लोबल दबाव (Global Pressure) है कि वह अफगानिस्तान में अपनी सैन्य मौजूदगी 31 अगस्त के बाद भी बनाये रखे।

अमेरिकी प्रेसिडेंट जो बिडेन अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी की समय सीमा 31 अगस्त से आगे नही बढ़ाने पर अडिग हैं। समय सीमा बढ़ाने के जी- 7 देशों के नेताओं के दबाव और आग्रह को बिडेन ने ठुकराते हुए कहा है अमेरिका और उसके निकटतम सहयोगियों को अफगानिस्तान और तालिबान में आगे की किसी भी कार्रवाई के लिए कंधे से कंधा मिला कर तैयार रहना चाहिए। जी-7 की वर्चुअल बैठक में ब्रिटेन ने विशेषरूप से अमेरिका पर बहुत दबाव डाला लेकिन बिडेन टस से मस नहीं हुए और उन्होंने कहा कि अमेरिका की जितनी जल्दी वापसी हो जाये उतना ही बेहतर है।

बोरिस जॉनसन (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

ब्रिटेन की तालिबान को नकद मदद की पेशकश

जो बिडेन के रुख को देखते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री (British Prime Minister) बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) ने तालिबान को नकद रकम देने का प्रस्ताव कर डाला है। 31 अगस्त की समयसीमा के बाद भी लोगों को अफगानिस्तान (Afghanistan) से सुरक्षित बाहर निकल जाने के एवज में जॉनसन ने अफगानिस्तान के नए नेताओं को रकम देने का ऑफर दिया है। जी-7 की बैठक के बाद जॉनसन ने कहा कि तालिबान (Taliban) के साथ बातचीत के एक रोडमैप पर सहमति बनी है।

अफगानी लोगों के भलाई और देश के निर्माण के लिए और अफगानिस्तान को आतंकी गतिविधियों का अपनाहगाह बनने से रोकने के लिए फंड्स रिलीज करने होंगे। जॉनसन उन फंड्स की बात कर रहे थे जो पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान को देने का कमिटमेंट किया था लेकिन वर्तमान स्थितियों में जिनको फ्रीज़ कर दिया गया है। इसी महीने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अफगानिस्तान को मिलने वाले 710 मिलियन डालर के आपात रिज़र्व पर रोक लगा दी थी। वर्ल्ड बैंक ने भी अपनी सहायता पर रोक लगा दी है।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अफगानिस्तान पर शासन करेगी कमेटी

वैसे तो तालिबान ने इसकी अधिकारिक घोषणा नहीं की है लेकिन सूत्रों का कहना है कि अफगानिस्तान में नयी सरकार के गठन की दिशा में आगे बढ़ते हुए 12 सदस्यीय कमेटी बनाई जायेगी जो शासन का काम करेगी। इस कमेटी में पूर्व प्रेसिडेंट हामिद करज़ई, राष्ट्रीय एकीकरण के प्रमुख अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह और तालिबान के नेता अब्दुल गनी बरादर, मुल्ला याकूब और खलील उर रहमान हक्कानी, हनीफ अत्मर और गुलबुद्दीन हिकमतयार शामिल होंगे। इस कमेटी के ऊपर सर्वेसर्वा हैबतुल्लाह अखुन्द्जादा होंगे।

पिछली बार जब अफगानिस्तान में 1996 से 2001 के बीच तालिबान का शासन रहा था तब भी ऐसी ही बनाई गयी थी। उस दौरान तालिबान का सुप्रीम लीडर मूल उमर परदे के पीछे से सब कुछ कंट्रोल करता था जबकि रोजमर्रा का शासन काउंसिल चलाती थी।

प्रस्तावित कमेटी में अलग अलग विचारधारा के नेता शामिल हैं और वे सब मिल कर कैसे काम करेंगे ये बहुत जटिल मसला है। मिसाल के तौर पर हामिद करजई अमेरिका समर्थित सरकार में प्रेसिडेंट रह चुके हैं और तालिबान तथा अन्य अतिवादी गुटों ने उनकी ह्त्या की भी कोशिशें की हुईं हैं। दूसरी ओर हक्कानी गुट अति चरमपंथी है और अपनी बर्बरता के लिए कुख्यात है। 

गुलबुद्दीन हिकमतयार (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गुलबुद्दीन हिकमतयार 15 साल तक अमेरिकी सेनाओं के खिलाफ लड़ता रहा और 2016 में शांति समझौता करके निर्वासन में चला गया था। कम्युनिस्ट समर्थित नजीबुल्लाह सरकार के पतन के बाद हिकमतयार ने नई सरकार में शामिल होने से मना कर दिया था और गृह युद्ध में जम कर हिस्सा लिया था। काबुल पर कब्जे की लड़ाई में हिकमतयार के गुट ने निर्दोष लोगों पर राकेटों से जबर्दस्त हमले किये थे। दूसरी तरफ अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह तो अशरफ गनी सरकार में ही शामिल थे और अमेरिका के साथ मिल कर काम करते रहे थे।

चूँकि सर्वेसर्वा अखुन्द्जादा होंगे सो ऐसा माना जा सकता है कि तालिबान के कट्टर और चरमपंथी गुटों की ही ज्यादा चलेगी। करजई जैसे नरमपंथी नेता अपनी नीतियां शायद ही चला पायें। इनको सिर्फ तालिबान शासन का नरमपंथी चेहरा बना कर पेश किया जाएगा। तालिबान के पिछली शासन काल में भी एक कमेटी बनी थे लेकिन तालिबान ने चरमपंथी और अति कट्टरपंथी नीतियां ही लागू की थीं और लोगों का जीना मुहाल कर दिया था। 

पाक प्रधानमंत्री इमरान खान (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पाकिस्तान ने दी कश्मीर में तालिबान की धमकी

पाकिस्तान तालिबान के साथ अपने ताल्लुक को बढ़ चढ़ कर बता रहा है और अब सत्तारूढ़ तहरीक-ए-इन्साफ पार्टी के एक नेता ने कहा है कि कश्मीर में भारत के खिलाफ तालिबान की मदद ली जायेगी। एक टीवी शो में तहरीक के एनेता नीलम इरशाद ने कहा कि तालिबान ने घोषणा की है कि वह कश्मीर में पाकिस्तान की मदद करेगा। भारत को पहले से ही आशंका है कि तालिबान और पाकिस्तान मिलकर कश्मीर में कुछ खुराफात कर सकते हैं। इसी के चलते भारत ने रूस से आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त रूप से लड़ने की पेशकश की है।

भारत ने अफगानिस्तान में पिछली बार के तालिबान शासन को देखा है। उसी दौरान 1999 में कंधार विमान हाईजैकिंग की घटना हुई थी और देश के भीतर कश्मीर और अन्य जगहों पर आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई थी। आतंकी गतिविधियों के अंदेशे के अलावा भारत को अफगानिस्तान में किये अपने 3 अरब डालर के निवेश को भी देखना है।

इसके अलावा पाकिस्तान से निपटना भी भारत के लिए अब चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि अफगानिस्तान के इस्लामिक गुटों से पाकिस्तान के बहुत करीबी रिश्ते 70 के दशक से चले आ रहे हैं। तालिबान के टॉप नेताओं में से ज्यादातर अपने परिवारों के साथ पाकिस्तान में ही रहते हैं और वहीं से अपनी गतिविधियाँ संचालित करते हैं। ऐसे में पाकिस्तान तालिबान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने में कोई कसार नहीं छोड़ेगा।   

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