Beijing : चीन छोड़कर भाग रहीं अंतरराष्ट्रीय कंपनियां

Update:2019-06-07 13:07 IST

बीजिंग : ग्लोबल सुपरपावर अमेरिका और एशियाई सुपरपावर चीन के बीच २०१८ से चला आ रहा कारोबारी घमासान चरम पर है। इस युद्ध से जहां दोनों देशों का बाजार घबराया हुआ है वहीं भारत समेत एशिया के कुछ देश अब इसमें नई संभावनाएं तलाश रहे हैं क्योंकि अमेरिका-चीन के होने वाले नुकसान का फायदा किसी न किसी को तो मिलना ही चाहिए। भारत, वियतनाम, कंबोडिया और इंडोनेशिया जैसे कई देशों को उम्मीद है कि अब चीन से निकलकर बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां अपने कारखानों के लिए नई जमीन तलाशेंगी। चीन में जूते-चप्पलों से लेकर वाशिंग मशीन, मोबाइल, कंप्यूटर और घडिय़ों जैसे उत्पादों की फैक्ट्रियां लगी हुई हैं। हाल में अमेरिका ने तकरीबन 200 अरब डॉलर के चीनी आइटमों पर टैरिफ बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया है जिसके जवाब में चीन ने भी 60 अरब डॉलर के अमेरिकी आइटमों पर ड्यूटी बढ़ा दी।

सच्चाई है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव कारोबारियों को बाहर जाने के लिए मजबूर कर रहा है। इलेक्ट्रॉनिक कंपनी कैसियो ने अमेरिकी पेनल्टी से बचने के लिए अपनी घड़ी निर्माण की कुछ इकाइयों को थाईलैंड और जापान में शिफ्ट किया है। जापानी प्रिंटर कंपनी रिको ने भी अपना काफी काम चीन से थाईलैंड शिफ्ट किया है। अमेरिका की फुटवियर निर्माता कंपनी स्टीव मेडन भी अब कंबोडिया जाने पर विचार कर रही है। इसके बाद हेयर और एडिडास, प्यूमा, न्यू बैलेंस और फिला जैसे जूते के ब्रांड को बेचने वाली कंपनी जैसन अपनी नजरें वियतनाम पर लगाए हुए है। उत्पादकों के लिए चीन छोड़कर आसपास के देशों में जाना फायदे का सौदा है। सस्ता श्रम और कम टैक्स भी इनके बाहर जाने का बड़ा कारण है। कंपनियों का बाहर जाना सिर्फ ट्रेड वार का नतीजा नहीं है बल्कि वियतनाम में मौजूद अवसर भी इन्हें अपनी ओर खींच रहे हैं। अमेरिकी चेंबर ऑफ कॉमर्स इन चाइना की रिपोर्ट के मुताबिक चीन में मौजूद करीब 40 फीसदी अमेरिकी कंपनियां या तो निकल चुकी हैं या बाहर निकलने पर विचार कर रही हैं।

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वैसे, चीन से निकल कर अन्यत्र कारखाने शिफ्ट करने का एक कारण चीन में मजदूरी लागत का बढऩा और देश में पर्यावरण नियम-कानूनों का सख्त होना भी है। बड़ी कंपनियां अब ऐसे देशों का रुख कर रही हैं यहां पर्यावरण संबंधी सख्ती न हो और लेबर भी सस्ता हो। इन कारणों से चीन छोडऩे का मन बना रही कंपनियों को कारोबारी युद्ध से तगड़ा बहाना भी मिल गया है। चीन से बाहर जाने वाले कंपनियों की बढ़ती संख्या से चीन की कई लॉजिस्टिक कंपनियों को उम्दा बिजनेस भी मिल रहा है। ये लॉजिस्टिक कंपनियां कारखानों को अन्यत्र शिफ्ट करने में मदद करती हैं। गुआंगझाऊ स्थित एक अग्रणी लॉजिस्टिक कंपनी आर एंड टी ट्रांसपोर्टेशन के अनुसार उनसे २०१८ से १० बड़ी कंपनियों के समूचे प्लांट को चीन से बाहर शिफ्ट किया है। ये कंपनियां ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रिंटिंग आदि से संबंधित थीं। इसके अलावा ५०० अन्य कंपनियों को आंशिक रूप से अपना कारोबार बाहर शिफ्ट करने में मदद की है।

अमेरिका - चीन के ट्रेड वार से भले ही मल्टीनेशनल कंपनियां घबरा रही हों लेकिन चीनी कंपनियां अपने कारोबार के प्रति बिल्कुल चिंतित नहीं हैं। अमेरिका में वालमार्ट या अन्य ऐसे स्टोर्स में बिकने वाले तमाम आइटम ऐसे हैं जो चीनी कंपनियां द्वारा बनाए जाते हैं। ऐसे कंपनियों का कहना है कि दक्षिण एशिया की कंपनियों के पास सप्लाई चेन नहीं है, वे पुर्जे तक नहीं बनातीं और कम कीमत की प्रतिस्पर्धा में वे कहीं नहीं ठहरतीं तो ऐसे में अगर चीन में बना सामान थोड़ा महंगा ही क्यों मिले, अमेरिकी उपभोक्ताओं के पास दूसरी च्वाइस ही नहीं है। मिसाल के तौर पर वालमार्ट को फर्नीचर स्पलाई करने वाली चीन की डाकांग होल्डिंग्स की बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा है जबकि वालमार्ट ने उपभोक्ताओं के लिए कीमतें दस फीसदी बढ़ा भी दी हैं।

चीन - अमेरिका ट्रेड वार के बीच पिस रही चीन की टेलीकॉम कंपनी हुआवे अपनी साख बचाने और नुकसान को कम करने की कोशिश में लगी है। इसके लिए कंपनी अपने भारतीय कारोबार की ओर देख रही है। हुआवे पर अमेरिका में प्रतिबंध लग चुका है। हुआवे के अनुमान के मुताबिक 2025 तक दुनियाभर में 5जी उपयोगकर्ताओं की संख्या 2.8 अरब तक पहुंच जाएगी। अमेरिका में प्रतिबंध लगने के बाद कंपनी अब इस मोर्चे पर होने वाली नुकसान की भरपाई भारतीय बाजार से करना चाहती है। भारत 2020 तक 5जी लागू करना चाहता है, लेकिन सरकार ने अभी तक 5जी परीक्षण के लिए भी कंपनियों को 5जी स्पेक्ट्रम आवंटित नहीं किया है।

 

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