चीन के खिलाफ दोस्तों को एक साथ ला रहा US, लेकिन इसलिए नहीं हो रहा सफल

कोरोना वायरस महामारी के दस्तक के साथ ही चीन और अमेरिका के संबंध काफी खराब हो चुके हैं। दोनों देशों के बीच टकराव लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

Update:2020-07-27 19:29 IST
US President Donald Trump

नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी के दस्तक के साथ ही चीन और अमेरिका के संबंध काफी खराब हो चुके हैं। दोनों देशों के बीच टकराव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जहां एक ओर चीन की चुनौती से निपटने के लिए वैश्विक गुट खड़ा करने की बात कह रहे हैं तो वहीं इसमें सबसे बड़ी बाधा उनकी अपनी 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति ही बन रही है।

दुनिया को इस नए अत्याचार पर जीत पानी ही होगी

ट्रंप सरकार लगातार चीन के खिलाफ हमलावर है। वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने अपने एक बयान में कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ को कमजोर करना ही हमारे समय का सबसे आवश्यक मिशन है। उन्होंने गुरुवार को चीन की ओर इशारा करते हुए एक बयान में कहा कि दुनिया को इस नए अत्याचार पर जीत पानी ही होगी।

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अमेरिका तमाम देशों को एकजुट करने में जुटा

अमेरिकी विदेश मंत्री चीन के खिलाफ भारत, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। माना जा रहा है कि एशिया के बड़े हिस्से और प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के इस मिशन को समर्थन भी मिल सकता है। पोम्पियों ने यह भी कहा कि अमेरिका इसका नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थिति में है।

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ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति ने दिया चीन को उभरने का मौका

वहीं एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका विदेस मंत्री पोम्पियो का ये दावा शायद ही यूएस के भूले-भटके सहयोगियों के गले उतरा होगा। क्योंकि ये देश मानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप सरकार की 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति और एकपक्षीय व्यवस्था लागू करने के चलते बनी खाली जगह में ही चीन को उभरने का अवसर मिला।

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'अमेरिका फर्स्ट' की नीति की मार भारत ने भी झेला

बता दें कि ट्रंप सरकार की 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति की मार कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे कई देशों ने झेला है, जिसमें से भारत भी एक है। भारत को पहले अमेरिका से निर्यात में कई तरह की छूट मिलती थी, लेकिन ट्रंप ने इसे खत्म कर दिया। साथ ही भारत की आर्थिक नीतियों की भी आलोचना की।

विश्लेषकों के मुताबिक, अगर अमेरिका खुद हथियार नियंत्रण के तीन अहम समझौतों से बाहर ना हुआ होता तो वह ड्रैगन पर हथियार नियंत्रण और निगरानी के लिए दबाव बनाने में कामयाब होता। अमेरिका रूस के साथ न्यू स्टार्ट समझौते से भी निकलने की तरफ अग्रसर है। यह समझौता रणनीतिक परमाणु हथियारों को सीमित करने को लेकर है।

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WHO से खुद अलग होने का लिया फैसला

इसके अलावा कोरोना वायरस महामारी के समय में अमेरिका ने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन से बाहर होने का फैसला कर लिया है। अमेरिका का कहना है कि चीन ने WHO पर कब्जा कर लिया है। ये इस बात का उदाहरण है कि वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका ने खुद ही अपनी स्थिति कमजोर कर ली है।

एक वक्त ऐसा था, जब लगभग हर संगठन और तमाम गठबंधनों में अमेरिका का दबदबा हुआ करता था। लेकिन वैश्विक नेतृत्व की भूमिका से अमेरिका ने खुद ही अपनी स्थिति कमजोर कर ली है।

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वहीं अमेरिका कोरोना वायरस से भी निपटने में भी नाकाम रहा है। कोरोना हॉटस्पॉट होने की वजह से तमाम देशों ने अमेरिका के लोगों के आने पर बैन लगा दिया है। इस वजह से भी चीन के खिलाफ तमाम देशों को एकजुट करने की कोशिश में अमेरिका को झटका लगा है। अमेरिका चीन के खिलाफ तमाम देशों को खड़ा करने में जुटा है। तो वहीं दूसरी ओर चीन अकेले ही US से बेहतर तरीके से निपट रहा है।

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