जानिए क्यों इराक में लोग उठा रहे हैं खतना के खिलाफ आवाज

इराक के कुर्द गांव में खतने के खिलाफ अब औरतों ने अपनी आवाज बुलंद कर ली है। कुर्द गांवों में बच्चियों और महिलाऔं के खतने के खिलाफ वादी एनजीओ का ओर से अभियान चलाया जा रहा है। इस एनजीओ से जुड़ी महिला रसूल ने इस अभियान को सफल बनाने की कसम खाई है।

Update: 2019-08-12 14:13 GMT

लखनऊ: इराक के कुर्द गांव में खतने के खिलाफ अब औरतों ने अपनी आवाज बुलंद कर ली है। कुर्द गांवों में बच्चियों और महिलाऔं के खतने के खिलाफ वादी एनजीओ का ओर से अभियान चलाया जा रहा है। इस एनजीओ से जुड़ी महिला रसूल ने इस अभियान को सफल बनाने की कसम खाई है। इस एनजीओ के द्वारा बहुत सी महिलाएं खतना के खिलाफ संकल्प ले चुकीं हैं।

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रसूल भी बचपन में खतने से गुजर चुकीं हैं इसलिए वो इस अभियान से जुड़कर लोगों को इसके प्रति जागरुक करतीं हैं। इस दौरान रसूल परिवार वालों के लड़की के खतना किये जाने के डर से वो उनके घर के बाहर लगातार खड़ी हैं। उनके साथ एनजीओ की और भी औरतें मौजूद हैं। इस एनजीओ के चलते कुर्द गांव में महिलाओं के खतने की संख्या में कमी आई है।

आपको बता दें कि वैसे तो खतना पुरुषों का किया जाता है लेकिन कई देशों में महिलाओं का भी खतना कराया जाता है। 2012 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव में इसको खत्म करने का संकल्प लिया गया था।

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कुछ समय पहले कुर्द गांवों में खतना करना एक आम बात रही है और इस अभियान के बाद खतने की संख्या में कमी आई है। रसूल इस परंपरा को खत्म करने के लिए और लोगों को जागरुक करने के लिए शरबती साघिरा गांव में करीब 25 बार जा चुकीं हैं। वो लोगों को इसके प्रति जागरुक करने की कोशिश कर रहीं हैं। रसूल खतने से होने वाले नुकसान, रक्तस्त्राव और संक्रमण के खतरे से लोगों को रुबरु कराने की कोशिश कर रही हैं।

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आपको बता दें कि 2011 में खतने को घरेलू हिंसा करार दे दिया गया है। ऐसा कराने वालों के खिलाफ तीन साल की सजा और 80 हजार रुपये अमेरिकी डॉलर जुर्माने तय किया गया है।

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