चीन ने की जबरदस्त घेराबंदी, सिल्क रोड पर लगाये 8 अरब डॉलर

China Silk Road: चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में पिछले साल की तुलना में इस साल के पहले 5 महीनों में 13.8 फीसदी ज्यादा निवेश किया है। आंकड़े बताते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग और इन्फॉर्मेशन ट्रांसमिशन सेक्टरों में चीन का निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shivani
Update:2021-06-19 16:07 IST

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China Silk Road: चीन ने अपने पैर दूर देशों तक फैला दिए हैं। उसने कई महाद्वीपों में फैले अपने 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' के तहत 7.43 अरब डॉलर का सीधा निवेश कई देशों में कर दिया है। चीन का निवेश साल दर साल बढ़ता जा रहा है और इस तरह उन देशों में चीन की उपस्थिति और मजबूत होती जा रही है। दक्षिण एशिया में चीन का आर्थिक साम्राज्य बाकी भारत समेत दुनिया के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है।

बढ़ता जा रहा निवेश

चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में पिछले साल की तुलना में इस साल के पहले 5 महीनों में 13.8 फीसदी ज्यादा निवेश किया है। आंकड़े बताते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग और इन्फॉर्मेशन ट्रांसमिशन सेक्टरों में चीन का निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है। इस साल मई तक चीन ने अन्य देशों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 7.2 बिलियन का निवेश किया था जो पिछले साल इसी अवधि की तुलना में 11.8 फीसदी ज्यादा है। चीन के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन के लोकल उद्यमों का निवेश बढ़ कर 32.75 बिलियन डॉलर का हो गया है। ये पिछले साल से 3.8 फीसदी ज्यादा है।

जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना

चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव कई ट्रिलियन डालर का प्रोजेक्ट है जिसे प्रेसिडेंट शी जिनपिंग ने 2013 में लांच किया था। जिनपिंग का इरादा इस परियोजना के जरिये पूर्वी एशिया, यूरोप और पूर्वी अफ्रीका में कनेक्टिविटी और सहयोग को बढ़ाना है। इस परियोजना को नई सिल्क रोड भी कहा जाता है जो प्राचीन व्यापारिक रास्ते की तर्ज पर है। चीन को उम्मीद है कि इस परियोजना से ग्लोबल ट्रेड जबरदस्त ढंग से बढ़ेगा और विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक लागत आधी रह जाएगी।

चीन ने भारत से भी इस परियोजना में शामिल होने को कहा था लेकिन भारत इसमें शामिल नहीं हुआ है। चीन की इस परियोजना में जो भी देश शामिल हुए हैं वहां सड़क संपर्क, रेल लाइन और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जा रहा है और चीन इसमें जम कर फंडिंग कर रहा है। ये परियोजना दरअसल माओ के विचार से प्रभावित है जिसमें उन्होंने चीन के दक्षिण की ओर विस्तार की बात कही थी।

माओ की रणनीति

माओ की 'तीन विश्व' थ्योरी के तहत अमेरिका और सोवियत संघ से परे चीन को मिडिल ईस्ट, एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के निर्गुट देशों का अगुवा बनाने का काम किया जाना है। सन साठ के दशक में शुरू हुई माओ की थ्योरी थी कि चीन उन देशों का नेता बने जिनको हाल में आज़ादी मिली है। इसी थ्योरी के तहत चीन और ऐसे देशों के बीच संबंधों की नींव पड़ी और जिनपिंग ने इसे आगे बढाने का काम किया। आज तंज़ानिया, इथोपिया, सूडान से लेकर पकिस्तान, थाईलैंड और बहरीन तक चीन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में लगा हुआ है।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा इस परियोजना का सबसे बड़ा उदहारण है जिसके तहत पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बदल देने की योजना है। लेकिन इसमें कर्जदारी का बहुत बड़ा ख़तरा भी शामिल है। चीन का मकसद इस परियोजना में शामिल देशों को अपने गुट में शामिल करना और वहां अपनी मौजूदगी को ठोस आधार देना है। वैसे चीन पर ये आरोप भी लगता आया है कि वह अपनी इस परियोजना के जरिये गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसा रहा है। इस क्रम में श्रीलंका और पाकिस्तान का हवाला दिया जाता है।

जी-7 ने बनाई मुकाबले की योजना

चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से अमेरिका व अन्य पश्चिमी देश चिंतित हैं और अब इसके मुकाबले के लिए जी-7 देशों ने एक रणनीति का खुलासा हाल की बैठक में किया है। जी-7 देशों की बैठक में चीन का मसला बहुत प्रमुखता से उभरा। इसकी वजह सभी देशों को चीन से लग रहा ख़तरा है। अब पश्चिम के अमीर देशों ने ठीक चीन की तर्ज पर वैश्विक इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश का प्रस्ताव रखा है।

'बिल्ड बेक बेटर' नामक इस प्रोजेक्ट को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प कहा गया है। जी-7 के नेताओं ने साफ़ कहा है कि चीन पर लगाम कसने के लिए विकासशील देशों की इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरतों को पूरा किया जाएगा। इस योजना को प्राइवेट सेक्टर के पैसे से पूरा करने का प्रस्ताव दिया गया है। दूसरी ओर चीन ने जी-7 की योजना को धिक्कारते हुए कहा है कि चंद देशों का छोटा सा समूह वैश्विक नीति तय नहीं कर सकता। अब देखना है कि दुनिया पर प्रभुत्व जमाने की चीन की योजना कहाँ तक सफल होती है।
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