China-Taiwan Conflict: क्या है चीन-ताइवान विवाद की असली जड़, क्यों ड्रैगन कब्जाना चाहता है पडोसी देशों को

ताइवान पर कब्जे को लेकर लंबे समय से चीन और पश्चिमी देशों के बीच मतभेद हैं। लेकिन मंगलवार को ये मतभेद तब ज्यादा हो गया जब अमेरिका की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान की जमीन पर अपने कदम रखे

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-08-03 18:08 IST

China –Taiwan Tension | (Social Media)

China-Taiwan Conflict: रूस – यूक्रेन की तरह दुनिया में दो और देश जंग (Russia-Ukraine War) के मुहाने पर खड़े हो गए हैं। इसबार जंग का अखाड़ा एशिया का हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific region) बनता नजर आ रहा है। ताइवान पर कब्जे को लेकर लंबे समय से चीन और पश्चिमी देशों के बीच मतभेद हैं। लेकिन मंगलवार को ये मतभेद जबरदस्त कड़वाहट में तब तब्दील हो गया जब अमेरिका की स्पीकर नैंसी पेलोसी (US Speaker Nancy Pelosi) ने ताइवान (Tiwan Visit) की जमीन पर अपने कदम रखे। हालांकि, उनके दौरे से कई दिन पहले से ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भूचाल आया हुआ था।

अमेरिका को बुरा अंजाम भुगतने की धमकी दे रहा था चीन

ड्रैगन सीधे सुपरपॉवर अमेरिका को बुरा अंजाम भुगतने की धमकी दे रहा था। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) ने किसी फिल्मी डॉयलॉग की तरह प्रेसिडेंट बाइडन को आग से न खेलने की चेतावनी दी डाली थी। हालांकि, अमेरिका ने चीन की इन गीदड़भभकियों को नजरअंदाज करते हुए बाइडन सरकार (Biden Government) में नंबर तीन नैंसी पेलोसी को वहां भेजा। इसके बाद से चीन ताइवान और अमेरिका पर दवाब बनाने के लिए लगातार ताइवान खाड़ी में सैन्य अभ्यास तेज करने की बातें कर रहा है। तो आइए दुनिया में उपजे इस नए संकट की पूरी कहनी हम आपको बताते हैं।

चीन-ताइवान संकट (China-Tiwan Crisis)

चीन – ताइवान संकट को समझने के लिए हमें थोड़ा अतीत में झांकना होगा। इसी से हम ताइवान पर कब्जा करने की चीन की बेचैनी को समझ सकते हैं। अतीत में चीन और ताइवान एक ही हुआ करते थे। दोनों पर चीन के मिंग राजवंश का शासन था। लेकिन 1895 में चीन ने ताइवान जापान को सौंप दिया। द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) तक यहां पर जापान का ही कब्जा रहा। साल 1945 में जापान के हथियार डालने के बाद युद्ध खत्म हुआ और चीन जापानी अत्याचार से मुक्त हुआ। लेकिन इसके बाद ही चीन में सिविल वॉर छिड़ गया। जापान पर जीत का जश्न मनाने वाले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओत्से तुंग और कुओमितांग पार्टी के चियांग काई शेक बाद में चीन पर नियंत्रण को लेकर आपस में भिड़ गए। माओ वामपंथी थे और काई शेक राष्ट्रवादी, दोनों के विचारधार में जमीन आसमान का फर्क होने के कारण दोनों के बीच चीन पर कब्जे के लिए खूनी संघर्ष शुरू हो गया।

साल 1940 कम्युनिस्ट माओत्से तुंग कुओमितांग पार्टी (Communist Mao Zedong Kuomintang Party) के राष्ट्रवादी नेता चियांग काई शेक (Nationalist leader Chiang Kai-shek) को पराजित करने में कामयाब रहे। चियांग को भाग कर फारमोसा द्वीप जो आज ताइवान कहलाता है पर जाकर शरण लेनी पड़ी। कहते हैं कि उस दौरान माओ के पास नौसेना की ताकत न के बराबर थी, इसलिए चीनी तट से 160 किमी दूर ताइवान पर वह कब्जा नहीं जमा सके। माओ ने यहीं मेनलैंड चाइना में अपनी कम्युनिस्ट सत्ता स्थापित की। जबकि चियांग ने ताइवान में अपनी सत्ता कायम की। तब से दोनों खुद को असली चीन बताते हैं। ताइवान का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना है और चीन का आधिकारिक नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ।

विवाद की जड़ (Taiwan and China dispute)

ताइवान और चीन लंबे समय से खुद को असली मानते हैं। शुरूआत में ताइवान को कामयाबी भी मिली। उसे ही दुनिया के देशों ने मुख्य चीन माना। लेकिन साल 1971 में गेम पलट गया, संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य रहा ताइवान सुरक्षा परिषद में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People's Republic of China) यानी पीआरसी के हाथों अपनी सीट गंवा बैठा। इतना ही नहीं पीआरसी यानी मौजूदा चीन द्वारा बनाए गए वन चाइना पॉलिसी को भी यूएन समेत दुनिया के अधिकांश देशों ने मान लिया। इसके बाद यूएन में ताइवान की सदस्यता पर ग्रहण लग गया था। वन चाइना पॉलिसी का मतलब है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People's Republic of China) चीन की वैद्य सरकार है और ताइवान उसका अभिन्न अंग है। हालांकि ताइवान इसे मानने को तैयार नहीं है। 73 सालों से दोनों देशों के बीच इसी बात को लेकर टकराव चल रहा है।

ताइवान खुद को मानता है एक संप्रभु राष्ट्र

चीन के इस पॉलिसी के विपरीत ताइवान खुद को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है। चीन का दावा है कि साल 1992 में जब ताइवान में कुओमितांग पार्टी की सरकार थी तब दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें कहा गया कि दोनों देश एकीकरण के लिए काम करेंगे। हालांकि, कुओमितांग पार्टी की मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी 1992 के इस समझौते से सहमत नहीं है। ताइवान में वर्तमान में इसी पार्टी की सरकार है। शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद चीन इसे लेकर और आक्रमक हो गया है। वह साफ कर चुके हैं कि किसी भी कीमत पर ताइवान को चीन में मिलाकर रहेंगे। उन्होंने इसके लिए एक देश दो सिस्टम का फॉर्मूला भी दिया, जिसे ताइवान ने रिजेक्ट कर दिया। दरअसल चीन ताइवान को एक विश्वासघाती सूबे के तौर पर देखता है और किसी भी कीमत पर उसपर अपना नियंत्रण चाहता है।

चीन का वन चाइन पॉलिसी (one china policy of china) एक विस्तारवादी एजेंडा भी है। जिसमें वह अपने पड़ोसी देशों के उन भूभागों पर दावा करता है, जो मिग राजवंश के दौरान चीन के नियंत्रण में थे। यही वजह है कि भारत ,जापान, साउथ कोरिया, फिलिपींस समेत अधिकांश पड़ोसी देशों के साथ उसका लंबे समय से सीमा विवाद चला रहा है।

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