दो साल तक बनाए रखें सोशल डिस्टेंसिंग, नहीं तो खतरनाक हो जाएगा कोरोना

कोरोना समय-समय पर रंग बदलने वाला बेहद खतरनाक वायरस है। इस वायरस से जंग लड़ रही दुनिया को अगले दो साल यानी 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करना होगा। ऐसा न करने पर यह वायरस खतरनाक ढंग से फिर सक्रिय हो सकता है।

Update:2020-04-16 10:20 IST

वाशिंगटन: कोरोना समय-समय पर रंग बदलने वाला बेहद खतरनाक वायरस है। इस वायरस से जंग लड़ रही दुनिया को अगले दो साल यानी 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करना होगा। ऐसा न करने पर यह वायरस खतरनाक ढंग से फिर सक्रिय हो सकता है। यह कहना है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का। वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी अपने एक नए शोध में दी है।

कड़ाई से करें नियमों का पालन

दुनिया भर में प्रसिद्ध अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का यह शोध हाल ही में एक साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के डीएचएचएन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया को सोशल डिस्टेंसिंग के महत्व को समझना होगा। अगले दो साल तक सामाजिक दूरी के मंत्र का कड़ाई से पालन करना होगा।

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फिर से सक्रिय हो सकता है वायरस

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस के खिलाफ जंग का यह पहला चरण है। अगर वायरस को कमजोर होता देखकर लॉकडाउन खुलता है और लोग नियमों की अनदेखी करते हैं तो उन्हें यह भी समझना होगा कि यह वायरस फिर से सक्रिय हो सकता है। ऐसी स्थिति में लाखों लोग फिर इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि इस मामले में लापरवाही हुई तो यह वायरस और अधिक घातक और जानलेवा रूप धारण कर लेगा।

महंगी पड़ सकती है लापरवाही

शोधकर्ताओं का कहना है कि अमेरिका इन दिनों कोरोना से बुरी तरह प्रभावित है और उसे 2022 तक सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन करना होगा। उन्होंने कहा कि वैक्सीन बनने तक किसी भी कीमत पर लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। दुनिया के अन्य देशों को भी इस बात का ध्यान रखना होगा। लोगों को समझना होगा कि अभी तक इस वायरस की वैक्सीन नहीं तैयार की जा सकी है और जिस वायरस की वैक्सीन ही ना हो, उसके प्रति लापरवाही भारी पड़ सकती है।

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बीस हफ्ते तक बेहद सावधानी जरूरी

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का मानना है कि इस वायरस को दोबारा फैलने से रोकने के लिए सामाजिक दूरी ही सबसे बड़ा मूल मंत्र है। इस तरह के परिणाम 2003 में फैले सार्स-सीओवी-1 में भी देखने को मिले थे। वायरस इनफ्लुएंजा के तौर पर दुनियाभर में फैला। ऐसी स्थिति में अगले 20 सप्ताह यानी 140 दिनों तक बेहद सावधानी बरतनी होगी।

तैयारी के लिए मिल जाएगा समय

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस वायरस से जंग में पूरी दुनिया के अस्पतालों की व्यवस्था बैठ चुकी है। यदि हम वायरस के फैलाव को रोकने में कामयाब होते हैं तो हमें अस्पतालों की व्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए वक्त मिल जाएगा। इसके साथ ही लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी बदलाव होगा। आने वाले समय में लोगों की इस वायरस से लड़ने की क्षमता भी बढ़ेगी।

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दो हफ्ते का इंतजार करना होगा

विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि प्रतिबंधों में ढील अचानक नहीं दी जानी चाहिए। पहले यह आकलन किया जाना चाहिए कि लॉकडाउन की वजह से कोरोना वायरस को रोकने में कितनी सफलता मिली है। इसका आकलन करने के लिए दो हफ्ते का इंतजार करना सही होगा। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इस महामारी की रफ्तार और व्यापकता को देखने के बाद ही प्रतिबंधों को खत्म करने के बारे में कोई फैसला किया जाना चाहिए। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि दो हफ्ते के इंतजार के दौरान हम इस वायरस के संक्रमण के नए जोखिम जानने में कामयाब हो सकेंगे।

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