इटली की संसद को एक तिहाई छोटा करने का फैसला

अब इटली में कुल सांसदों की संख्या 945 से घटा कर 600 कर दी जायेगी। निचले सदन में सांसदों की संख्या 634 से घटा कर 400 कर दी जायेगी।

Update: 2020-09-22 08:44 GMT

रोम: इटली की जनता ने देश की संसद के आकार को एक तिहाई से ज्यादा छोटा करने पर रजामंदी जाती है। इस मसले पर देश में एक जनमत संग्रह किया गया था। जनमत संग्रह में 67 फीसदी से ज्यादा लोगों ने बदलाव के पक्ष में वोट दिया है। अब इटली में कुल सांसदों की संख्या 945 से घटा कर 600 कर दी जायेगी। निचले सदन में सांसदों की संख्या 634 से घटा कर 400 कर दी जायेगी। ऊपरी सदन यानी सीनेट के सदस्यों की संख्या 315 से 200 करने का प्रस्ताव है।

ये बदलाव 2023 के चुनावों के पहले लागू कर दिए जायेंगे। यूरोप के देशों में काफी समय से प्रशासनिक खर्चों और उन्हें घटाने के उपायों पर चर्चा होती रही है। अब मामला संसद के आकार में कटौती तक पहुंच गया है। भारत सहित कई दूसरी संसदों की तरह इटली के संसद के भी दो सदन हैं। निचले सदन या प्रतिनिधि सभा में 630 सदस्य हैं और ऊपरी सदन सीनेट में 315 सदस्य। इसके अलावा सारे पूर्व राष्ट्रपति सीनेट के सदस्य होते हैं और वे पांच गणमान्यों को आजीवन सीनेटर मनोनीत कर सकते हैं।

फाइव स्टार पार्टी की मांग

इटली की संसद के आकार को छोटा करने का फैसला (फाइल फोटो)

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इस समय इटली की मौजूदा गठबंधन सरकार में समाजवादी पार्टी ‘पीडी’और हाल ही में बनी पॉपुलिस्ट फाइव स्टार पार्टी शामिल हैं। फाइव स्टार पार्टी संसद को छोटा और प्रभावकारी बनाने की मांग कर रही है। फाइव स्टार पार्टी का कहना है कि अगले दस साल में संसद को छोटा करने से 1 अरब यूरो की बचत होगी। यानी हर साल करीब 10 करोड़ यूरो। प्रस्ताव के विरोधियों का मानना है कि बचत तो होगी लेकिन 10 करोड़ यूरो नहीं बल्कि अधिकतम 5 करोड़ यूरो। इससे पहले पीडी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2016 में संवैधानिक सुधारों का मसौदा पेश किया था।

इटली की फाइल स्टार पार्टी ने की मांग (फाइल फोटो)

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जिसमें संसद का आकार घटाने के साथ सीनेट के अधिकारों में कटौती का भी प्रावधान था। लेकिन एक जनमत संग्रह में 60 फीसदी मतदाताओं ने उसे नकार दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री मातेयो रेंसी को इस्तीफा देना पड़ा था। 2019 में पीडी और पांच सितारा पार्टी के गठबंधन ने सिर्फ संसद के आकार में एक तिहाई की कमी का प्रस्ताव दिया। यह प्रस्ताव कुछ दूसरी प्रमुख पार्टियों के समर्थन से पास हो गया। इस प्रस्ताव के जरिए प्रति 1,00,000 निवासियों पर सांसदों की संख्या 1.6 से घटाकर 1 कर दी गई। जर्मनी में ये अनुपात 0.9, फ्रांस में 1.4 और ब्रिटेन में 2.1 है। भारत में प्रति 16 लाख मतदाताओं पर एक संसद है।

जर्मनी में भी बहस

जर्मनी की संसद के आकार को छोटा करने की मांग (फाइल फोटो)

अब जर्मनी में भी संसद को छोटा करने पर बहस हो रही है। यहां 299 सदस्यों का चुनाव भारत की तरह चुनाव क्षेत्रों में सीधे मतदान से होता है। इतनी ही सीटें पार्टियों को मिलने वाले दूसरे वोट से तय होती हैं। लेकिन संसद की संरचना दूसरे वोट में पार्टियों को मिले प्रतिशत पर निर्भर करती है। चुनाव को प्रतिनिधित्व वाला बनाने के लिए यहां सीधे जीती गई सीटों के अलावा अतिरिक्त सीटें देने का प्रावधान है। लेकिन पिछले सालों में नई पार्टियों के आने से अतिरिक्त सीटों की संख्या बढ़ती गई है और इस समय जर्मन संसद में 598 के बदले 709 सीटें हैं।

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चुनाव की इस प्रक्रिया की दिक्कत ये है कि मतदान से पहले किसी को पता नहीं होता कि संसद के कुल कितने सदस्य होंगे। ये सब देश के हर प्रांत में भाग लेने वाली पार्टियों, उन्हें मिलने वाले वोटों और उस राज्य में सीधे जीतने वाले सीटों पर निर्भर करता है। यहां हर संसद के चुने जाने के साथ न सिर्फ खर्च बढ़ जाता है बल्कि नए सांसदों के लिए पूरी व्यवस्था करने का बोझ भी होता है। लेकिन यही अतिरिक्त सीटें कई बार ये तय करती हैं कि सरकार किस पार्टी की बनेगी, इसलिए राजनीतिक दलों का इसे बदलने पर सहमत होना आसान नहीं है।

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