नेपाल में राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर हजारों लोगों ने किया प्रदर्शन
चीन का नेपाल की सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी पर खासा प्रभाव है, चीन की ये हमेशा से कोशिश रही है कि इस पार्टी के भीतर फूट न पड़े। हालांकि, इसके बावजूद पार्टी एक बार विभाजित होने के मुहाने पर आकर खड़ी हो गई है।
काठमांडू: नेपाल में राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी (आरपीपी) ने संवैधानिक राजशाही तथा हिंदू राष्ट्र की बहाली के लिए प्रदर्शन किया। इस दौरान काठमांडू की सड़कों पर हजारों लोग प्रदर्शन में शामिल हुए।
पार्टी के सैकड़ों समर्थकों ने भृकुटि मंडप से मार्च निकाला और रत्नापार्क के खुले मैदान में बैठक की। इस दौरान नेताओं ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा संसद भंग किए जाने पर अपना गुस्सा जाहिर किया।
आरपीपी के अध्यक्ष कमल थापा तथा पशुपति शमशेर राणा ने नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने तथा देश में संवैधानिक राजशाही बहाल करने की बात कही।
उन्होंने कहा कि देश में लोकतंत्र की रक्षा तथा राजनीतिक स्थिरता के लिए संवैधानिक राजशाही तथा हिंदू राष्ट्र की बहाली के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है।
नेपाल में 2006 में जन आंदोलन के बाद राजशाही खत्म कर दी गई थी
प्राप्त जानकारी के अनुसार नेपाल में वर्ष 2006 में जन आंदोलन के बाद राजशाही खत्म कर दी गई थी और 2008 में नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था।
वर्ष 2018 में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी ने मिलकर एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी। चीन ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी।
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चीन का नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रभाव
चीन का नेपाल की सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी पर खासा प्रभाव है, चीन की ये हमेशा से कोशिश रही है कि इस पार्टी के भीतर फूट न पड़े। हालांकि, इसके बावजूद पार्टी एक बार विभाजित होने के मुहाने पर आकर खड़ी हो गई है।
पार्टी में एक धड़ा प्रधानमंत्री ओली का है और दूसरा पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड का है। दोनों एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। वे एक दूसरे पर हमला बोलने का कोई भी मौक़ा नहीं गंवाते हैं। दोनों के बीच कई बार जुबानी जंग देखने को मिल चुकी है।
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