Duniya Ki Ajab Gajab Ghatnayen: दुनिया की कुछ अलौकिक और अविश्वसनीय घटनाएं, जो आपको हैरान कर देंगी
Duniya Ki Ajab Gajab Ghatnayen: आज हम दुनिया की ऐसी ही कुछ घटनाओं के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे।;
Duniya Ki Ajab Gajab Ghatnayen: यह दुनिया रहस्यों (Secrets ) से भरी हुई है। हमारे चारों ओर ऐसी अनगिनत घटनाएँ और स्थान मौजूद हैं, जो अपने आप में एक गहरा रहस्य समेटे हुए हैं। इतिहास के पन्नों में कई ऐसी विचित्र और अद्भुत घटनाओं का उल्लेख मिलता है, जो वैज्ञानिक खोजों और तर्कों के बावजूद आज भी अनसुलझी हैं। कुछ घटनाएँ प्राकृतिक चमत्कार की तरह प्रतीत होती हैं, तो कुछ में अलौकिक या आध्यात्मिक पहलुओं की झलक मिलती है।
यह अनसुलझे रहस्य केवल हमारी जिज्ञासा को नहीं बढ़ाते, बल्कि हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हमारी समझ और ज्ञान की सीमाएँ अब भी प्रकृति और ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों के आगे बहुत छोटी हैं।आज हम दुनिया की ऐसी ही कुछ घटनाओं के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे।
ग्रेट एमु वॉर (The Great Emu War)
ग्रेट एमु वॉर (The Great Emu War) भूतकाल में घटी एक अनोखी और हास्यास्पद घटना है।नवंबर, 1932 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में एक युद्ध लड़ा गया, जिसे आज ‘द ग्रेट एमु वॉर’ (The Great Emu War) के नाम से जाना जाता है | यह युद्ध इतिहास में शायद सबसे अनोखे युद्धों में से एक माना जाता है । क्योंकि यह मनुष्यों और पक्षियों के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध तब हुआ जब ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने एमु पक्षियों (जो उड़ नहीं सकते और शुतुरमुर्ग जैसे दिखते हैं) की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए सेना का उपयोग किया।
विश्व मंदी (The Great Depression) के दौरान, 1930 के दशक में ऑस्ट्रेलिया के किसान गेहूं की खेती करते थे।लेकिन एमु पक्षियों की भारी संख्या ने किसानों की फसलों को बर्बाद करना शुरू कर दिया। एमु पक्षी हर साल अपनी प्रवास यात्रा (migration) के दौरान खेतों में रुकते और वहां की फसलों को खा जाते थे।
किसानों की शिकायतों पर, सरकार ने एमु पक्षियों को नियंत्रित करने के लिए सेना को बुलाने का फैसला किया। एमु तेज दौड़ने वाले और चालाक पक्षी थे। जब सैनिक गोलीबारी करते, तो पक्षी समूह में अलग-अलग दिशाओं में भाग जाते। यह सिलसिला कुछ दिनों तक लगातार चला।बहुत सारे गोलाबारूद का उपयोग किया गया। लेकिन केवल कुछ ही एमु पक्षी मारे गए।
अंत में इस युद्ध में एमु पक्षियों की जीत हुई और ऑस्ट्रलियाई सैनिको को खाली हाथ लौटना पड़ा। यह घटना ऑस्ट्रेलियाई इतिहास में एक विचित्र और मज़ाकिया घटना के रूप में दर्ज है।
डांसिंग प्लेग (Dancing Plague)
हमने अक्सर मृत्यु के विभिन्न कारणों के बारे में सुना है, जैसे बीमारियां, दुर्घटनाएं, या अन्य प्राकृतिक आपदाएं। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कोई इंसान नाचते-नाचते मौत के मुंह में चला गया हो?
लेकिन इतिहास में एक ऐसी घटना दर्ज है, जिसे ‘डांसिंग प्लेग’ (Dancing plague) के नाम से जाना जाता है। यह घटना 1518 में फ्रांस के स्ट्रासबर्ग शहर में हुई थी। इस रहस्यमय बीमारी में लोग अचानक नाचने लगते थे और तब तक नाचते रहते थे, जब तक उनकी मृत्यु न हो जाए । यह नाचने का सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता था और लोग थकावट, दिल का दौरा या अन्य कारणों से दम तोड़ देते थे।इस विचित्र और रहस्यमय बीमारी ने 400 से अधिक लोगो की मृत्यु हो गई थी।
इस अजीब और रहस्यमय घटना ने न केवल स्थानीय लोगों को बल्कि इतिहासकारों और वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया था। हालांकि ‘डांसिंग प्लेग’ ( Dancing plague) आज भी एक रहस्य, शोध और चर्चा का विषय बना हुआ है |
पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या (Mass Bird Suicide)
जटिंगा, असम में पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या(Mass Bird Suicide in Jatinga) एक ऐसी अनोखी और रहस्यमय घटना है, जो हर साल दुनिया भर के वैज्ञानिकों और पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। असम के दिमा हसाओ जिले में स्थित एक छोटा सा गांव जटिंगा आज ‘पक्षियों की सामूहिक आत्महत्या’ के कारण विश्व प्रसिद्ध है।
हर साल सितंबर से अक्टूबर के बीच कई प्रजातियों के प्रवासी और स्थानीय पक्षी जैसे टाइगेरिनस, किंगफिशर, और पाइपिट यहां आकर अपनी जान गंवाते हैं। जिसमे पक्षी अचनाक इमारतों, पेड़ों या जमीन पर गिर जाते हैं और मर जाते हैं। खासकर शाम के 7 बजे से 10 बजे के बीच, यह घटना चरम पर होती है।
इस घटना को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है, जटिंगा एक घाटी में स्थित एक छोटासा गांव है, जहां ठंडी और तेज़ हवाएं चलती हैं। इस वजह से यहाँ की भौगोलिक स्थिति पक्षियों को और अधिक भ्रमित करती है। इसलिए बारिश और कोहरे के कारण पक्षी भ्रमित हो जाते हैं और रोशनी की ओर तेजी से उड़ते हैं, जिससे वे टकराकर मर जाते हैं। हालांकि स्थानीय लोगों के मत वैज्ञानिकों से भिन्न है, जहा उनका कहना है कि यह घटना अलौकिक शक्तियों या आत्माओं की वजह से होती है।
बरहाल, जटिंगा में पक्षियों की सामूहिक मौतें वैज्ञानिकों के लिए विज्ञान और स्थानीय लोगों के लिए रहस्यमयता का विषय हैं। जिसपर अभी भी शोध जारी है।
‘स्केलेटन लेक’ (Skeleton Lake)
रूपकुंड झील(Skeleton Lake), जिसे ‘कंकालों की झील’ के नाम से भी जाना जाता है| यह एक रहस्यमय और ऐतिहासिक झील है। उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में, त्रिशूल पर्वत के पास, समुद्र तल से लगभग 5,029 मीटर (16,500 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। छोटी और गोलाकार आकर वाली इस झील की गहराई लगभग 2 मीटर है। जो किनारे और तल पर पाए जाने वाले सैकड़ों मानव कंकालों के कारण प्रसिद्ध है। इस झील में मानव कंकाल पाए गए इसीलिए यह झील ‘स्केलेटन लेखक’ ( Skeleton Lake) के नाम से प्रसिद्ध है। ये कंकाल गर्मियों के दौरान झील की बर्फ पिघलने पर दिखाई देते हैं।
इस झील की पहली बार खोज 1942 में एक ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड ने की थी। उन्होंने झील के किनारे और तल में सैकड़ों कंकाल देखे। कंकालों के डीएनए परिक्षण से पता चला कि ये कंकाल 850 ईस्वी के आसपास के हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इनकी मौत बड़े आकार के ओले (hailstones) से हुई क्योकि कंकालों के सिरों पर गहरी चोट के निशान पाए गए।
2004 और 2019 में किए गए अध्ययनों के अनुसार ये कंकाल भारतीय और भूमध्यसागरीय (Mediterranean) मूल के थे। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, यह समूह राजा जसधवल और उनकी रानी का था, जो नंदा देवी मंदिर की तीर्थयात्रा पर थे। माना जाता है कि उन्होंने यात्रा के दौरान देवी का अपमान किया, जिससे देवी नंदा ने क्रोधित होकर उन्हें दंडित किया। वो इस घटना को देवताओं के कोप का परिणाम मानते है।
कंकालों की इस झील ने वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को हैरान किया है और यह झील आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है।
कोडिन्ही गांव (Kodinhi Village)
भारत के केरल राज्य में स्थित एक छोटे से गांव कोडिन्ही को ‘जुड़वां बच्चों के गांव’ के नाम से जाना जाता है। यह गांव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है क्योंकि यहां सामान्य से कई गुना अधिक जुड़वां बच्चे पैदा होते हैं। यह घटना वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए एक बड़ा रहस्य बनी हुई है।
इस गांव में लगभग 2,000 परिवार रहते हैं। जिनमें में लगभग 400 जुड़वां बच्चो के जोड़े हैं। यहां प्रति 1,000 जन्मों पर लगभग 45 जुड़वां बच्चे जन्म लेते हैं, जो कि वैश्विक औसत से बहुत अधिक है।
वैज्ञानिकों के अनुसार गांव के निवासियों की विशिष्ट आनुवंशिक संरचना इसका कारण हो सकती है। तो वही गांव के लोगों को इस पर गर्व है और उन्होंने एक क्लब भी बनाया है जिसे ‘द ट्विन्स एंड किन्न्स क्लब’ कहा जाता है।
लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Temple)
भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कर्नूल जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर,एक अद्वितीय और अनोखी घटना की वजह से चर्चा में है। इस मंदिर का एक स्तंभ विशेष रूप से अपने लटकने और गुरुत्वाकर्षण के नियमों को चुनौती देने के कारण प्रसिद्ध है। मंदिर में स्थित यह एकमात्र स्तंभ गुरुत्वाकर्षण के नियमों के खिलाफ लटकता है। इस कारण इस स्तंभ को हैंगिंग पिलर (Hanging Pillar) भी कहा जाता है।
इस मंदिर का निर्माण राजा अलिया रामा राया (Aliya Rama Raya) ने 16वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य के दौरान किया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा इसे वीरभद्र स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
यह स्तंभ आज भी एक रहस्य बना हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह डिज़ाइन इतनी सटीक और परिष्कृत थी कि गुरुत्वाकर्षण के नियमों को चुनौती दी जा सकती है। लोककथाओं के अनुसार, इस स्तंभ को दिव्य शक्ति द्वारा बनवाया गया है।तो वही एक अन्य मान्यता के अनुसार, मंदिर के निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों ने इसे जानबूझकर इस प्रकार डिजाइन किया ताकि राजा या शासक इसकी अनूठाई और रहस्य से मंत्रमुग्ध हो जाए।
हालांकि लेपाक्षी का गुरुत्वाकर्षण-विरोधी लटका हुआ यह स्तंभ चर्चा का विषय बना हुआ है |
शनि शिंगणापुर मंदिर (Shani Shingnapur Temple)
महाराष्ट्र का शनि शिंगणापुर भी अपनी एक अविश्वसनीय घटना के लिए प्रसिद्ध है।यह गांव अपनी अनूठी परंपरा के कारण लोकप्रिय है। यहाँ के घरो दरवाजे नहीं होते। कहा जाता है इस गांव में आज-तक चोरी नहीं हुई है। इस कारण शिंगणापुर गांव आज तक चर्चा का विषय बना हुआ है ।
शिंगणापुर गांव, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है। इस गांव में घर, दुकानें और यहां तक कि बैंक तक बिना दरवाजे के हैं। यहां के लोग यह मानते हैं कि भगवान शनि देव की कृपा और सुरक्षा के कारण यहां कभी चोरी नहीं होती। यहाँ दरवाजे के तौर पर हल्की पट्टियां या परदों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बावजूद लोग रात में भी बिना किसी डर के सोते हैं।
2011 में, यूनाइटेड कमर्शियल बैंक (UCO Bank) ने यहां अपनी शाखा खोली। यह शाखा भी बिना दरवाजों के है, जो गांव की परंपरा का सम्मान करती है।
ऐसा माना जाता है कि शिंगणापुर में चोरी की घटनाएं बहुत दुर्लभ हैं। और अगर कोई चोरी करता भी है, तो उसे उसे दैवीय सजा का सामना करना पड़ता है, जैसे बीमार पड़ना या उसका सामान लौट जाना। बरहाल, अब इसे दैवीय शक्ति कहो या और कुछ लेकिन यह अविश्वसनीय घटना सबकी समझ से परे है जिसका सहस्य आज भी बना हुआ है |