NATO: फिनलैंड के नाटो के समर्थन के बाद फिर छिड़ी बहस, क्या फ़िनलैंड-स्वीडेन पर भी आक्रमण करेगा रूस
NATO: फिनलैंड ने NATO ज्वाइन करने की बात का समर्थन किया है। फिनलैंड के राष्ट्राध्यक्षों ने कहा है, कि उनका देश नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन देने का समर्थन करता है।
NATO: फिनलैंड ने NATO ज्वाइन करने की बात का समर्थन किया है। फिनलैंड (Finland) के राष्ट्राध्यक्षों ने कहा है, कि उनका देश उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization) या नाटो (NATO) में शामिल होने के लिए आवेदन देने का समर्थन करता है। देश के राष्ट्रपति सौली नीनिस्टो (Sauli Niinistö) और प्रधानमंत्री सना मरीन (Sana Marine) की इस घोषणा का अर्थ यही निकलता है कि फिनलैंड नाटो की सदस्यता स्वीकारने का मन बना चुका है। संभव है कि, फिनलैंड का पड़ोसी देश स्वीडन (Sweden) भी आने वाले समय में नाटो की सदस्यता पर फैसला कर सकता है।
फिनलैंड का कहना है कि, नाटो के सदस्य के तौर पर, फिनलैंड पूरे रक्षा गठबंधन को मजबूत करेगा। फिनलैंड को बिना किसी विलंब नाटो की सदस्यता हासिल करने के लिए आवेदन देना चाहिए। साथ ही वह उम्मीद जाता रहा है कि इस फैसले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए आवश्यक कदम आने वाले दिनों में जल्द से जल्द उठाए जाएंगे।
यूक्रेन हमले के पीछे भी NATO वजह
पिछले कुछ महीनों से दुनिया रूस और यूक्रेन के बीच लगातार जारी युद्ध को देख रही है। इसके पीछे की वजह भी नाटो (NATO) ही था। दरअसल, यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता था, मगर रूस ऐसा होने को अपने खिलाफ देख रहा था। रणनीतिक तौर पर भी देखें तो यूक्रेन के नाटो की सदस्यता लेने के बाद उत्तर अटलांटिक संधि संगठन की पहुंच आसानी से रूस के दरवाजे तक हो जाती। बस, इसी बात से रूस बिफर गया। यूक्रेन भी पीछे हटने को तैयार नहीं था, तो हालात युद्ध के बने। जिसकी विभीषिका सामने है।
अब फिनलैंड और स्वीडन को रूस की धमकी
अब एक बार फिर दुनिया के दो देशों का झुकाव नाटो की तरफ दिख रहा है। और, एक बार फिर रूस आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है। रूस ने फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने के झुकाव को देखते हुए कहा, कि 'यदि इस तरह का कोई फैसला लिया गया तो ये यूरोप के लिए अच्छा नहीं होगा। इससे यूरोप संघर्ष की राह पर बढ़ सकता है। साथ ही, यूरोप में अस्थिरता बढ़ सकती है।' यूरोपियन देश इसे खुले तौर पर इसे रूस की धमकी मान रहे हैं।
तो अब 'तटस्थ' नहीं रहेंगे दोनों देश
जानकारी के लिए आपको बता दें कि, फिनलैंड और स्वीडन के साथ रूस ने पहले ही एक समझौता (Agreement) किया हुआ है। जिसके तहत, वो 'तटस्थ' (Neutral) बना रहेगा। ये दोनों देश भी अब तक इस नीति का पालन करते रहे हैं। मगर, अब यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है। स्वीडन तो यहां है की अगर फिनलैंड नाटो में शामिल होने का फैसला लेता है, तो वो भी नाटो की सदस्यता लेगा।'
जून में होगा NATO सम्मेलन
अब आपके जेहन में एक सवाल जरूर कौंध रहा होगा कि आखिर ये पूरा बवाल अभी क्यों हो रहा है? जबकि, एक तरफ यूक्रेन की हालत सबको पता है। तो यहां आपको बता दें, कि अगले महीने यानी जून में नाटो का सम्मेलन मैड्रिड में होने वाला है। इस सम्मेलन से पहले ही नाटो प्रमुख स्टोल्टेनबर्ग ने कहा, कि 'यदि ये दोनों देश नाटो में शामिल होना चाहते हैं तो ऐसा संभव हो सकता है। उनके अनुसार, यदि वो ऐसा चाहते हैं तो इसकी प्रक्रिया को भी जल्द ही पूरा किया जा सकता है।' इसके बाद ही ये कयास लगने लगे थे कि फिनलैंड और स्वीडन जल्द ही कोई फैसला ले सकते हैं। दरअसल, नाटो प्रमुख के बयान ने ही राजनीतिक और रणनीतिक पारा चढ़ाया है।
'रिश्ते पहले जैसे होंगे, इसकी उम्मीद नहीं'
शीत युद्ध के बाद से फिनलैंड और स्वीडन अपनी तटस्थता नीति पर कायम हैं। दोनों ही देश साल 1995 में यूरोपियन यूनियन (European Union) में शामिल हुए थे। नाटो के बारे में फिनलैंड के प्रधानमंत्री के उस बयान को बेहद खास माना जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था, कि 'रूस उनकी सोच से अलग है। बदलते समय में रूस के साथ भी रिश्ते बदल रहे हैं। ये रिश्ते पहले जैसे होंगे इसकी उम्मीद नहीं है।' फिनलैंड के प्रधानमंत्री ने भविष्य में अपने देश की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की। इसी दौरान उन्होंने फिनलैंड की संप्रभुता कायम रखते हुए नाटो से जुड़ने का भी ऐलान किया था।
बदलते दौर में बदली नीति
यहां आपको बता दें कि आज का फिनलैंड कभी स्वीडन का ही हिस्सा हुआ करता था। इतिहास में जाएं तो आप पाएंगे कि रूस और फिनलैंड के बीच बाल्टिक सागर (Baltic Sea) के अधिकार को लेकर वर्ष 1808-09 में 'फिनिश युद्ध' भी हो चुका है। इस लड़ाई का अंत एक समझौते के तहत हुआ था। इसके बाद स्वीडन का करीब एक तिहाई हिस्सा उसके हाथ से निकल गया था। इस समझौते को स्वीडन के इतिहास का सबसे खराब समझौता माना जाता है। साल 1917 में फिनलैंड रूस से आजाद हुआ। इसी तरह, नाटो की बात करें तो यदि फिनलैंड इसकी सदस्यता स्वीकार करता है तो स्वीडन भी उसी राह पर आगे बढ़ेगा। इन दोनों देशों ने इतिहास और वर्तमान तथा यूक्रेन पर हालिया संकट के मद्देनजर अपना नजरिया बदला है। ये मानते हैं कि, नाटो सदस्य न होने की वजह से यूक्रेन मौजूदा समय में अकेला पड़ गया है।
क्या है NATO?
नाटो (NATO) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन (International Organization) है। यह राजनीतिक और सैन्य साधनों के जरिए अपने सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में नाटो का गठन हुआ था।
नाटो के 30 देश हैं सदस्य
वर्तमान में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी NATO उत्तरी अमेरिका (North America) और यूरोपीय देशों (European countries) का एक सैन्य संगठन (Military Organization) है। नाटो का उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य माध्यमों के जरिये अपने सदस्य राष्ट्र की स्वतंत्रता और सुरक्षा (Freedom And Security) की गारंटी प्रदान करना है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बने इस संगठन का उस वक्त मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के बढ़ते दायरे को सीमित रखना था। नाटो का जब गठन हुआ तो अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, इटली, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल इसके 12 संस्थापक सदस्य राष्ट्र थे। लेकिन, वर्तमान में इसके सदस्यों (NATO Countries) की संख्या बढ़कर 30 हो गई है। नॉर्थ मेसेडोनिया 2020 में शामिल होने वाला इसका सबसे नया सदस्य था।
कौन बन सकता है NATO का सदस्य?
नाटो का सदस्य बनने के लिए यूरोपीय देश होना आवश्यक है। हालांकि, अपनी पहुंच बढ़ाने के मकसद से नाटो ने कई अन्य देशों से भी अपने संपर्क किए हैं। अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को तथा ट्यूनिशिया भी नाटो के सहयोगी राष्ट्र हैं। इसी तरह, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी नाटो की भूमिका अहम रही है।
फिनलैंड-स्वीडन क्यों चाहते हैं NATO में शामिल होना?
नाटो के गठन और उसके उद्देश्य से आप समझ चुके हैं कि वह किस तरह काम करता है। दरअसल, फिनलैंड और स्वीडन जैसे छोटे राष्ट्र यूक्रेन की वर्तमान हालात से सीख लेते हुए अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं। नाटो में शामिल होने के बाद अगर इन दोनों देशों पर कोई अन्य राष्ट्र हमला करता है तो वह नाटो पर हमला माना जाएगा। और सभी सदस्य राष्ट्र उसके समर्थन में युद्ध के मैदान में उतर जाएंगे। यूक्रेन के मौजूदा हालात को देखते हुए फिनलैंड अपने कदम नाटो की तरफ बढ़ा रहा है। बस, अब उसके अगले कदम का इंतजार है।
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