G-20 Summit: जी20 बैठक में नहीं हुई क्लाइमेट चेंज पर कोई ठोस बात
G-20 Summit: जी 20 शिखर सम्मेलन में क्लाइमेट चेंज पर बात तो हुई लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। न कोई वादा किया गया और न कोई रोडमैप पेश किया गया।
G-20 Summit: इटली (Italy) की राजधानी रोम (Rome) में हुए जी 20 शिखर सम्मेलन में क्लाइमेट चेंज (Climate Change) पर बात तो हुई लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। न कोई वादा किया गया और न कोई रोडमैप (Climate Change Par Roadmap) पेश किया गया। जी 20 नेताओं (G20 Leaders) से कुछ ठोस समाधान की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) का 80 प्रतिशत यही देश करते हैं। चीन (China) सबसे बड़ा उत्सर्जक है, वहीं उसके बाद अमेरिका (America) और भारत (India) का नंबर आता है।
बैठक में जमा हुए नेताओं में सिर्फ एक बात पर सहमति बनी कि सदी के अंत तक वैश्विक तापमान (Global Temperature) को पूर्व-औद्योगिक स्तर से डेढ़ डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखा जाएगा। लेकिन ये कैसे होगा, इसका जवाब नदारद है क्योंकि कोई ठोस रोडमैप पेश नहीं किया गया है। जी 20 के बयान से साफ है कि स्कॉटलैंड (Scotland) के ग्लासगो में होने वाले जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (Glasgow Mein Jalvayu Parivartan Sammelan) में भी कोई नतीजा शायद ही निकले।
जी-20 नेताओं का साझा बयान
31 अक्टूबर को जारी जी-20 नेताओं के साझा बयान में कहा गया है - हम मानते हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस पर जलवायु परिवर्तन (Jalvayu Parivartan) के प्रभाव 2 डिग्री सेल्सियस के मुकाबले काफी कम होंगे। 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सभी देशों के सार्थक और प्रभावी कदम और प्रतिबद्धता जरूरी है। देशों को जरूरत पड़ने पर अपनी कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को बढ़ाना चाहिए।
जी 20 नेताओं के इस बयान में तापमान कटौती का लक्ष्य 2016 के पेरिस समझौते से थोड़ा बेहतर है। इस समझौते में वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक रखने का लक्ष्य बना था और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करने को कहा गया था।
डेढ़ डिग्री का लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों का कहना है कि सूखे, तूफान और बाढ़ जैसी भयंकर मौसमी घटनाओं से बचने और मानवता के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए वैश्विक तापमान को इस सदी के अंत तक पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित करना जरूरी है। इससे अधिक तापमान के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इसके लिए उन्होंने 2050 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने को कहा है। औद्योगिक युग की शुरुआत होने के बाद से पृथ्वी का तापमान बढ़ता गया है जिसके विनाशकारी प्रभाव अब खुलकर और तेजी से सामने आ रहे हैं।
वैज्ञानिक पिछले काफी सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि मानव गतिविधियां ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रही हैं और इससे जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा और मानवता खतरे में पड़ जाएगी। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है। ग्लोबल तापमान घटाने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग बंद करने पर जोर दिया जा रहा है। ये कहा जा रहा है कि कार्बन का उत्सर्जन बंद करने से ही स्थिति संभल सकती है।
हालांकि भारत, चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों और समूहों ने अभी तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य नहीं रखा है। जीरो कार्बन उत्सर्जन का मतलब है कि कोई देश उतनी ही ग्रीनहाउस गैस पर्यावरण में छोड़ेगा, जितनी पेड़ और टेक्नोलॉजी आदि सोख सकेंगे। कार्बन के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन ने इसके लिए 2060 का लक्ष्य रखा है।
दोस्तों देश और दुनिया की खबरों को तेजी से जानने के लिए बने रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।