काबुल, पेशावर और बीजिंग अब जुड़ेंगे एक हाईवे से, चीन की 62 अरब डॉलर की योजना में शामिल होगा अफगानिस्तान
अमरीकी सेनाओं की झटपट वापसी के बाद अफगानिस्तान एक खुला मैदान रह गया है जिस पर चीन अब अपना ठिकाना बनाने वाला है।;
चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग, फोटो क्रेडिट : सोशल मीडिया
नई दिल्ली। अमरीकी सेनाओं की झटपट वापसी के बाद अफगानिस्तान एक खुला मैदान रह गया है जिस पर चीन अब अपना ठिकाना बनाने वाला है। चूंकि अफगानिस्तान अब तालिबान के नियंत्रण में है और तालिबानी चाहते हैं कि चीन उनके देश को खुशहाल बनाये। चीन ने भी इस स्थिति के लिए पहले से जमीन तैयार कर रखी है।
चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के साथ अफगानिस्तान में एक्सक्लूसिव एंट्री के लिए तैयार है। तालिबान जिस चीन को गले लगाने जा रहा है वो रूस का दोस्त है, वही रूस जिसके खिलाफ अफगान लोग लम्बी लड़ाई लड़ चुके हैं।
चीन - पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) प्रोजेक्ट पर चीन 62 अरब डॉलर यानी 46 खरब रुपए का निवेश कर रहा है और अब ये प्रोजेक्ट अफगानिस्तान में विस्तार ले लेगा। सीपीईसी दरअसल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के अंतर्गत आता है जिसमें पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका जुड़े हुए हैं।
चीन अब इसी प्रोजेक्ट के तहत अफगानिस्तान में हाईवे, रेलवे लाइन,तेल पाइप लाइन बनाएगा जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन को आपस में जोड़ेंगी।
काबुल - बीजिंग हाईवे
चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट होगा अफगानिस्तान से पाकिस्तान में पेशावर तक के हाईवे का। पेशावर पहले से ही सीपीईसी रूट से जुड़ा हुआ है, यानी अब काबुल से पेशावर तक हाई वे का मतलब होगा कि अफगानिस्तान औपचारिक रूप से सीपीईसी से जुड़ गया है।
दस साल से लगा हुआ था चीन
चीन बहुत पहले से अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विस्तार अफगानिस्तान तक करना चाहता था। दस साल से चीन इस बारे में अफगानिस्तान के साथ लगा हुआ था लेकिन अमेरिका की मौजूदगी की वजह से बात बन नहीं पा रही थी। अब अमेरिका ने अफगानिस्तान को छोड़ दिया है, प्रेसिडेंट जो बिडेन भी कह चुके हैं कि अफगानिस्तान से अब उनका कोई लेनादेना नहीं है, ऐसे में अफगान प्रेसिडेंट अशरफ गनी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए चीन को गले लगाने का इरादा रखते हैं।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव
चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत एशिया, अफ्रीका और यूरोप को सड़क, रेलवे और समुद्री नेटवर्क के जरिये जोड़ना चाहता है। ये नेटवर्क 60 देशों में फैला होगा। इसमें 4 ट्रिलियन डॉलर खर्च होंगे और इससे न केवल कनेक्टिविटी बढ़ेगी बल्कि चीन पूरी दुनिया में अपना प्रभुत्व बना लेगा। अफगानिस्तान के बदलते हालात भारत के लिए चिंता की बात है।