मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के लिए बेहद पवित्र है अल अक्सा
इस प्राचीन मस्जिद को मुस्लिम अल हरम अल शरीफ या पवित्र शरणस्थली कहते हैं, जबकि यहूदी इसे टेम्पल माउंट कहते हैं।
लखनऊ: इन दिनों युद्ध का मैदान बना इजरायल स्थित "अल अक्सा" (Al-Aqsa Mosque) परिसर एक बेहद अनोखी जगह है जो तीन धर्मों के लिए पवित्र स्थल है। मुस्लिम, यहूदी और ईसाई, तीनों के लिए अल अक्सा बेहद महत्वपूर्ण है।
यरुशलम के पुराने इलाके में 35 एकड़ के विशाल कंपाउंड में फैला हुआ है अल अक्सा। यहां सुनहरे गुम्बद वाली एक प्राचीन मस्जिद है जिसे मुस्लिम लोग अल हरम अल शरीफ या पवित्र शरणस्थली कहते हैं जबकि यहूदी इसे टेम्पल माउंट (Temple Mount) कहते हैं।
मक्का-मदीना के बाद सबसे पवित्र स्थल
अल-अक्सा मस्जिद को मक्का और मदीना के बाद मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। यरुशलम 640 ईस्वी के दशक में मुस्लिमों के नियन्त्रण में आया था, जिसके बाद ये एक मुस्लिम शहर बन गया और अल-अक्सा मस्जिद मुस्लिम साम्राज्य में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक बन गई।
इस्लामिक मान्यता के मुताबिक 620 में पैगम्बर मोहम्मद ने इस्रा और मिराज का अनुभव किया था। उनकी एक चमत्कारिक रात्रि की लंबी यात्रा देवदूत जिब्राइल के साथ हुई थी और इस यात्रा के दौरान वो अल-अक्सा मस्जिद पहुंचे थे। मुसलमान पहले इसी मस्जिद की ओर मुंह करके नमाज पढ़ते थे लेकिन बाद में पैगम्बर मोहम्मद को अल्लाह से मिले आदेश के बाद मक्का के काबा की ओर मुंह करके नमाज पढ़ी जाने लगी।
इसी जगह पर यहूदियों का टेम्पल माउंट भी स्थित है। यहूदी मान्यताओं के मुताबिक टेंपल माउंट पर पहले मंदिर का निर्माण किंग डेविड के पुत्र किंग सोलोमन ने 957 ईसा पूर्व करवाया था। इसे 586 ईसा पूर्व में शुरुआती बेबीलोन साम्राज्य के शासकों ने तोड़ दिया था। इसके बाद दूसरे मंदिर का निर्माण जेरुबेबल ने 516 ईसा पूर्व में कराया जिसे रोमन साम्राज्य ने 72 ईसा पूर्व में तोड़ दिया। कुछ यहूदी इस स्थान को इतना पवित्र मानते हैं कि उसके ऊपर पैर भी नहीं रखते क्योंकि उन्हें लगता है कि कई महान लोगों के पैर यहां पड़े हैं।
यहूदी परंपरा में माना जाता है कि जब मसीहा आएंगे तब तीसरे मंदिर का भी निर्माण होगा। रोमन साम्राज्य के हमले के बाद मंदिर की एक दीवार (वेस्टर्न वॉल) बची थी जो आज भी यहूदियों के लिए पवित्र तीर्थ मानी जाती है।
ईसाइयों की पवित्र जगह भी यहीं पर है। माना जाता है कि इसी जगह पर ईसा मसीह को सूली पर टांगा गया था।
1967 का युद्ध
1967 के युद्ध में इजरायल द्वारा पूर्व यरुशलम, पश्चिमी तट और गाज़ा पट्टी पर कब्जा कर लेने के बाद से फलस्तीन के साथ लगातार विवाद और तनाव बना हुआ है। वैसे, अल अक्सा परिसर पर विवाद इजरायल की स्थापना से पहले से ही है।
इजरायल ने पुराने शहर समेत पूर्वी येरूशलम पर 1967 के युद्ध के बाद ही इजरायल ने पूरे यरुशलम को अपनी राजधानी घोषित किया था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे मंजूरी नहीं मिल सकी थी। पुराने यरुशलम में ही अल अक्सा मस्जिद (Al-Aqsa Mosque) है, इसलिए उस पर एक तरह से इजरायल का ही नियंत्रण है। लेकिन जॉर्डन व अन्य देशों के साथ आपसी सहमति से इसका प्रशासन वक्फ के पास है। जिसकी फंडिंग और कंट्रोलिंग जॉर्डन करता है।
इस संबंध में 1994 में एक समझौता भी जॉर्डन के साथ इजरायल ने किया था। जॉर्डन इसमें महत्वपूर्ण इसलिए है कि वहां के शासक पैगम्बर के वंश के माने जाते हैं। जॉर्डन के वर्तमान शासक किंग अब्दुल्ला द्वितीय, पैगम्बर मोहम्मद साहब के 43 वें डायरेक्ट वंशज माने जाते हैं।
ताजा विवाद
पिछले कुछ दिनों में यहूदियों और फलीस्तीनियों के बीच अल-अक्सा मस्जिद के निकट विवाद हुआ था। इजराइली प्रशासन द्वारा पूर्वी यरुशलम के शेख जर्राह इलाके से फलस्तीनी परिवारों को बेदखल करने और लोगों के दमिश्क गेट प्लाजा तक जाने पर रोक लगाने पर तनाव पैदा हुआ था।
इसके बाद 6 मई को हजारों इजराइली अति राष्ट्रवादियों द्वारा येरुशलम में एक मार्च निकाला और पूर्वी यरुशलम पर इजरायल के कब्जे की वर्षगांठ मनाई गई। इस बात से चिढ़कर फिलिस्तीनी प्रशासन पर काबिज हमास ने गाजा पट्टी से इजरायल की ओर तीन रॉकेट दाग दिए।
इसके बाद 7 मई को स्थिति तब बिगड़ गई जब इजराइली सुरक्षा बलों ने अल अक्सा मस्जिद में जमा हुए श्रद्धालुओं पर आंसू गैस, रबर बुलेट और भयंकर आवाज करने वाले ग्रेनेड चलाये। तबसे इजरायली सेना और फिलिस्तीन आतंकी संगठन हमास आमने सामने हैं। दोनों एक दूसरे पर रॉकेट से हमला कर रहे हैं जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित 60 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।