जानिए क्या है वन बेल्ट एंड वन रोड योजना, इसके पीछे क्या है चीन की मंशा?

चीन ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ने के लिए 'वन बेल्ट, वन रोड' के तहत सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड परियोजना शुरू की है। इसके तहत छह गलियारे बनाए जाने की योजना है।

Update:2019-04-26 15:01 IST

नई दिल्ली: प्राचीनकाल में समुद्र मार्ग द्वारा ही एक देश से दुसरे देश द्वारा व्यापार होता था जैसे मालवाहक पोत, जहाज द्वारा एक देश से दुसरे देश तक सामान ले जाया जाता था, परन्तु आधुनिकता के दौर में रेल मार्ग और सड़क मार्ग का ज्यादा उपयोग होता है इसी को लेकर चीन ने अपनी दूरदर्शिता दिखाई है । और अपनी आर्थिक मंदी से उबरने, बेरोजगारी से निपटने और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए ओबोर OBOR 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना को पेश किया है।

चीन ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ने के लिए 'वन बेल्ट, वन रोड' के तहत सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड परियोजना शुरू की है। इसके तहत छह गलियारे बनाए जाने की योजना है।

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पीओके (POK) से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जिसका भारत कड़ा विरोध कर रहा है

हम आपको ये भी बता दें कि इसमें से कई गलियारों पर काम भी शुरू हो चुका है। इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी शामिल है, जिसका भारत कड़ा विरोध कर रहा है। भारत का कहना है कि पीओके में उसकी इजाजत के बिना किसी तरह का निर्माण संप्रभुता का उल्लंघन है। कुछ दिन पहले ही चीन ने भारत को शामिल करने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का नाम बदलने पर भी राजी हो गया था, लेकिन बाद में इससे पलटी मार गया।

इन गलियारों से जाल बिछाएगा चीन

न्यू सिल्क रोड के नाम से जानी जाने वाली 'वन बेल्ट, वन रोड' OBOR परियोजना के तहत छह आर्थिक गलियारे बन रहे हैं। चीन इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा है।

1.चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा

2. न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज

3. चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा

4. चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा

5. बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा

6. चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा

दुनिया की 60 फीसदी लोगों पर राज करेगा चीन

चीन अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के जरिए दुनिया की 60 फीसदी आबादी यानी 4.4 अरब लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा है। वह इन पर एकछत्र राज करना चाहता है। वह इनको रोजगार देने का लालच दे रहा है। उसने इस परियोजना को लेकर अपनी नीतियां भी स्पष्ट नहीं की है।

वह कभी-भी अपने वादे से मुकर सकता है और इन देशों की प्राकृतिक संपदा का दोहन करके आर्थिक लाभ कमा सकता है। ऐसे में इसके भावी परिणाम बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं। इन देशों के लोग भविष्य में चीन के गुलाम बन कर रहे जाएंगे। चीन का रिकॉर्ड रहा है कि वह बिना स्वार्थ के कोई काम नहीं उठाता है। खासकर विदेशी निवेश को लेकर उसका रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है।

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दुनिया के 65 देशों की सरकार को भी लालच

चीन ने वन बेल्ट वन रोडपरियोजना को अंजाम देने के लिए न सिर्फ 65 देशों की जनता को बरगला रहा है, बल्कि वह इन देशों की सरकारों को भी लालच दे रहा है। चीनी मीडिया का कहना है कि इस परियोजना के इन देशों की सरकारों को 1.1 अरब डॉलर टैक्स मिलेगा। इससे इनकी आय में इजाफा होगा। साथ ही बेरोजगारी कम होगी।

फिलहाल भारत के सभी पड़ोसी देश इसमें फंसते नजर आ रहे हैं। खासकर नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार इस चीनी जाल में फंसते नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान ने तो पहले ही इसकी मंजूरी दे चुका है। भविष्य में चीन इन देशों में आर्थिक नियंत्रण करने के बाद सत्ता में भी दखल बढ़ाने में कामयाब हो सकेगा।

अलग-थलग पड़े PAK के लिए राहत

चीन और पाकिस्तान एक-दूसरे को अपने सबसे करीबी दोस्त मानते हैं। चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है। चाहे फिर आतंकवाद का मसला हो या फिर कूटनीतिक। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल कराने की भारत की कोशिश पर चीन का अड़ंगा इस बात का उदाहरण हैं। ऐसे में यह परियोजना पाकिस्तान के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। दुनिया में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान अब चीन के रहमोकरम पर खुद को आगे बढ़ा पाएगा, जो भारत के लिए घातक है।

अमेरिका ने भी लिया यू-टर्न

अमेरिकी फैसले से भारत पर भी इसमें शामिल होने का दबाव बढ़ गया है। चीन ने भारत पर दबाव बनाने के लिए ही अमेरिका को इसमें शामिल होने के लिए राजी किया है।

'वन बेल्ट, वन रूट' परियोजना शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार करने वाले अमेरिका ने भी यू-टर्न ले लिया है। इसी संदर्भ में चीन ने बीजिंग में 14-15 मई 2017 दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन में 29 देशों के नेताओं समेत संयुक्त राष्ट्र जनरल सेक्रेटरी, विश्व बैंक के प्रेसिडेंट इत्यादि लोगों ने शिरकत की। भारत इस सम्मेलन का हिस्सा नहीं बना लेकिन भारत के पड़ोसियों को चीन एक मंच पर लाने में सफल रहा। इस सम्मेलन में नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव, म्यांमार और बांग्लादेश सम्मिलित हुए थे।फिलहाल देखना यह है कि भारत इसके लिए क्या कदम उठाता है?

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उन्होंने यह भी कहा कि सिल्क रूट अपने पुराने स्वरूप में विकसित नहीं होगा बल्कि वह विश्व में सभी देशों की भागीदारी वाला होगा जिसमें अफ्रीका और अमेरिका भी शामिल होंगे। ब्रिटेन और पाकिस्तान ने वन बेल्ट वन रोड की सराहना की। ज्ञात हो कि चीन और पाकिस्तान इस परियोजना को केवल आर्थिक प्रयोजन हेतु बताने में लगे हैं लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होता है क्योंकि यह केवल आर्थिक प्रयोजन है तो चीन और पाकिस्तान दक्षिण एशिया में भारत के खिलाफ मोर्चा बनाने की तैयारी में क्यों जुटे हैं। इस सम्मेलन में रूस और अमेरिका ने भी शिरकत की।

सिल्क रोड परियोजना में कई यूरोपीय देशों ने भी शिरकत की लेकिन जल्दबाजी में कोई समझौता करने से इंकार कर दिया। चीन की वन बेल्ट वन रोड की परियोजना पर अगला सम्मेलन 2019 में प्रस्तावित है।

 

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