जांच कहती है- इराक युद्ध में जाने का टोनी ब्लेयर का फैसला गलत था

Update:2016-07-07 05:52 IST

लंदनः साल 2003 में तानाशाह सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हुए हमले में ब्रिटेन का शामिल होना ठीक नहीं था। ये बात एक जांच कमीशन ने कही है। कमीशन के मुताबिक ये फैसला गलत खुफिया जानकारी पर आधारित था। इससे तत्कालीन ब्रिटिश पीएम टोनी ब्लेयर घेरे में आ गए हैं। ब्लेयर पर पहले भी इसी तरह का आरोप लग चुका है कि उन्होंने गलत जानकारी देकर ब्रिटेन को इराक युद्ध में धकेला। ब्लेयर ने हालांकि दावा किया कि बुधवार को जारी रिपोर्ट उन्हें झूठ या छल-कपट से बरी करती है।

साल 2009 में शुरू की गई आधिकारिक जांच कमीशन के अध्यक्ष जॉन शिलकॉट ने कहा है कि ब्रिटेन ने इराक पर हमले में शामिल होने से पहले सभी शांतिपूर्ण विकल्पों को नहीं तलाशा। उन्होंने कहा कि हमने निष्कर्ष निकाला है कि निरस्त्रीकरण के लिए शांतिपूर्ण विकल्प तलाशने से पहले ब्रिटेन ने इराक पर हमले में शामिल होने का फैसला किया। उस समय सैन्य कार्रवाई अंतिम उपाय नहीं था। उन्होंने ये भी कहा कि जनसंहार के हथियारों के बारे में फैसले जिस तरह पेश किए गए, वे न्यायोचित नहीं थे।

इराक युद्ध पर शिलकॉट की 12 खंड, 26 लाख शब्दों की रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन की ओर से जांच का आदेश दिए जाने के सात साल बाद आई है। बता दें कि इराक युद्ध में 2003 से 2009 के बीच करीब 180 ब्रिटिश सैनिक मारे गए थे। सद्दाम हुसैन को इराक के राष्ट्रपति पद से हटाने के लिए अमेरिका के साथ जंग में शामिल होने के ब्रिटेन के फैसले के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले ब्लेयर पर शिलकॉट ने अपनी रिपोर्ट में सख्त बात कही है।

जांच रिपोर्ट में ब्लेयर की ओर से 28 जुलाई 2002 को उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को भेजे गए एक नोट का उल्लेख है। इससे संकेत मिलता है कि जंग छेड़ने के फैसले पर कितनी जल्दी काम शुरू हो गया। यह नोट इराक पर हमले से कुछ महीने पहले भेजा गया। ब्लेयर ने लिखा था कि जो भी हो, मैं आपके साथ रहूंगा, लेकिन यह कठिनाइयों को साफतौर पर आंकने का समय है। इस पर योजना और रणनीति आखिरकार कठोर होनी चाहिए।

बुधवार को रिपोर्ट जारी होने के बाद मौजूदा ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन ने संसद में कहा कि 2002 में इराक पर हमले के अमेरिका के फैसले में शामिल होने के ब्लेयर के निर्णय से सबक सीखे जाने चाहिए, ताकि सुनिश्चित हो कि जंग हमेशा अंतिम उपाय नहीं होता है। देश को जंग में झोंकना हमेशा अंतिम उपाय होना चाहिए और तभी ऐसा किया जाना चाहिए जब सभी विश्वसनीय विकल्पों को तलाश लिया गया हो।

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