मदर टेरेसा को मिली संत की उपाधि, वेटिकन में पोप फ्रांसिस ने किया ऐलान

Update:2016-09-04 01:15 IST

वेटिकन सिटीः मिशनरीज ऑफ चैरिटी की संस्थापक रहीं मदर टेरेसा को रविवार को संत घोषित किया गया। पोप फ्रांसिस ने वेटिकन सिटी में एक खास समारोह में उन्हें संत की मान्यता दी। बता दें कि मदर टेरेसा के दो चमत्कारों को वेटिकन ने सही बताया। दुनियाभर से आए लाखों लोग इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बने।

गौरतलब है कि टेरेसा विदेश में जन्मी पहली कैथोलिक हैं जिन्हें भारतीय मानकर संत का दर्जा दिया गया है। रोमन कैथोलिक समुदाय में 1600 ई. से संत घोषित करने का लिखित इतिहास है। तब से अब तक पोप के अलावा पहली बार किसी को मृत्यु के महज 19 साल बाद संत घोषित किया गया है।

पहला चमत्कार सही पाए जाने पर तत्कालीन पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें धन्य (बीटीफाइड) घोषित किया था। साल 2015 में पोप फ्रांसिस ने कहा था कि मदर टेरेसा से जुड़ा दूसरा चमत्कार भी सही है। इसके बाद उन्हें संत घोषित करने का फैसला किया गया।

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भारत से कौन-कौन पहुंचा?

भारत से इस समारोह में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल समेत कई गणमान्य लोगों ने शिरकत की। इसके अलावा मिशनरीज ऑफ चैरिटी से भी कई लोग इस समारोह में शामिल होने वेटिकन सिटी पहुंचे। दुनियाभर से कैथलिक ईसाइयों के धर्मगुरुओं को भी समारोह में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया है।

कौन थीं मदर टेरेसा?

26 अगस्त 1910 को मदर टेरेसा का जन्म एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम एग्नेस गोंकशे बोजाशियु था। अल्बानिया अब मैसेडोनिया की राजधानी। मदर टेरेसा 16 साल की उम्र में नन बन गईं। इसके दो साल बाद उन्हें 'सिस्टर टेरेसा' का नाम दिया गया था।

1929 में कोलकाता आईं

1929 में वह कोलकाता आईं। तब उन्हें वहां एक शिक्षक के रूप में जाना जाता था। कोलकाता के एक स्कूल में 15 सालों तक उन्होंने प्रधानाध्यापिका की भूमिका में काम किया। मदर ने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। लगातार 45 साल तक गरीबों और अनाथों की सेवा में वह लगी रहीं। उनको 1979 में नोबल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत रत्न सम्मान मिला था। 5 सितंबर 1997 को निधन होने तक उन्होंने 123 देशों में मिशनरीज ऑफ चैरिटी के 610 केंद्र खोल दिए थे।

समिति ऐसे करता है काम...

मदर टेरेसा के लिए बदले नियम

चर्च सबसे पहले समिति बनाती है, जो संबंधित व्यक्ति के जीवन और कार्यों की समीक्षा करती है। व्यक्ति के बारे में दस्तावेज जमा किए जाते हैं। यह प्रक्रिया किसी व्यक्ति के शरीर त्यागने के 5 साल बाद ही शुरू की जा सकती है। मदर टेरेसा मामले में यह नियम तोड़ा गया। उनके निधन के 3 साल बाद ही प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी।

जॉन पॉल-2 ने दी 'धन्य' की उपाधि

निधन के पांच साल बीतने के बाद स्थानीय बिशप संबंधित व्यक्ति को 'धन्य' घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह करते हैं। व्यक्ति के पवित्र होने के पर्याप्त सबूत होने पर पहले 'धन्य' घोषित किया जाता है। पोप जॉन पॉल-2 ने एक चमत्कार को मानकर टेरेसा को निधन के 6 साल बाद ही 'धन्य' घोषित कर दिया था।

ये थे दो चमत्कार :-

-साल 2002 में वेटिकन ने यह दावा मान लिया कि पश्चिम बंगाल की मोनिका बेसरा के पेट का कैंसर ट्यूमर मदर टेरेसा की तस्वीर वाला लाॅकेट फेरने और प्रार्थना से ठीक हुआ। पोप जान पाल-2 ने इसे मान्यता दी।

-ब्राजील के इंजीनियर मार्सिलियो को ब्रेन ट्यूमर था।17 दिसंबर 2015 को चर्च ने ये मान लिया कि मदर टेरेसा की प्रार्थना करने से उस व्यक्ति का ट्यूमर ठीक हो गया। इसे मौजूदा पोप फ्रांसिस ने मान्यता दी है।

चमत्कारों के सबूत खोजे जाते हैं

इसके बाद संबंधित व्यक्ति द्वारा किए गए दो चमत्कारों के सबूत खोजे जाते हैं। अगर मिल जाते हैं तो पोप उन्हें 'संत' घोषित करते हैं। 'धन्य' से संत घोषित करने के बीच कम से कम 50 साल का अंतर रखते हैं। 1590 के बाद मृत्यु व संत हाेनेे के बीच औसतन 181 साल का अंतर रहा। टेरेसा 19 साल बाद ही संत हो गईं।

 

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