Nepal Plane Crash: खतरनाक उड़ानों के लिए कुख्यात है नेपाल, पुरानी टेक्नोलॉजी और थके विमान, 10 सालों में ये बड़े हादसे
Nepal Plane Crash: नेपाल में एक के बाद एक दुर्घटनाएं सुर्खियां बटोर रही हैं। देश की घरेलू एयरलाइंस पुराने और जीर्ण-शीर्ण विमानों का उपयोग करती हैं।
Nepal Plane Crash: ऐसे युग में जहां हवाई यात्रा बहुत अधिक सुरक्षित हो गई है, नेपाल में एक के बाद एक दुर्घटनाएं सुर्खियां बटोर रही हैं। देश की घरेलू एयरलाइंस पुराने और जीर्ण-शीर्ण विमानों का उपयोग करती हैं। स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय विमानन मानकों और प्रशिक्षण पूरी तरह अपर्याप्त हैं। यही वजह है कि नेपाल को उड़ान भरने के लिए दुनिया के सबसे जोखिम वाले स्थानों में से एक के रूप में जाना जाता है।
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दस साल में 20 विमान क्रैश
नेपाल के पोखरा में एक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से इस देश में हवाई यात्रा के भयानक खतरे फिर उजागर हो गए हैं। एविएशन सेफ्टी नेटवर्क डेटाबेस के अनुसार, बीते 10 वर्षों में नेपाल में 20 से ज्यादा और इसी अवधि के दौरान 11 घातक विमान हादसे हुए हैं। हवाई यात्रा के लिए नेपाल वाकई में कुख्यात और खतरनाक जगह है। बहुत ही चुनौतीपूर्ण इलाके और अप्रत्याशित मौसम वाले इस देश में इस बात की बहुत कम उम्मीद है कि त्रासदियों की यह श्रृंखला जल्द समाप्त हो जाएगी। नेपाल में विमान दुर्घटनाओं का लेखा जोखा 1996 से रखना शुरू हुआ है। तबसे लेकर अब तक 19 हेलीकॉप्टर क्रैश होने का आंकड़ा है।
यूरोपीय संघ ने किया ब्लैकलिस्ट
यूरोपीय संघ ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए 2013 में नेपाल स्थित सभी एयरलाइनों को अपने हवाई क्षेत्र में उड़ान भरने से प्रतिबंधित कर दिया था। नेपाल सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर पाई सो यूरोपीय संघ की विमानन ब्लैकलिस्ट यथावत बनी हुई है।
हादसे की ये बड़ी वजहें
नेपाल में हवाई दुर्घटनाएं ज्यादातर देश के ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाकों, पुराने विमानों, गुजरे जमाने की टेक्नोलॉजी, बुनियादी ढांचे में निवेश की कमी और ढीले नियमों के कारण होती हैं। इसके अलावा, हवाई पट्टियां पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित हैं और मौसम अचानक बदल जाता है।
थके विमान, पुरानी टेक्नोलॉजी
नेपाल की एयरलाइन्स के पास ज्यादातर छोटे विमान हैं। इनकी क्षमता 19 से 25 यात्री की होती है। छोटे विमान इसलिए इस्तेमाल किये जाते हैं क्योंकि हवाई अड्डे या एयरस्ट्रिप पहाड़ों, घाटियों या पहाड़ों के किनारों पर स्थित हैं जहां बड़े जेट उतर नहीं सकते। जो छोटे विमान हैं भी उनमें बीते जमाने की टेक्नोलॉजी लगी हुई हैं। पुराने विमानों में आधुनिक मौसम रडार नहीं होते हैं। मिसाल के तौर पर, मई 2022 में तारा एयरलाइन का विमान मुस्तांग जिले में क्रैश कर गया था और सभी 22 लोग मारे गए थे। इस विमान में जीपीएस सिस्टम तक नहीं था। विमान में कोई तकनीक नहीं थी कि पायलट को मौसम की जानकारी मिल सके। तारा के विमान ने 1979 में अपनी पहली उड़ान भरी थी यानी वह कम से कम 42 साल पुराना था। ट्विन ओटर जैसे टर्बोप्रॉप इंजन वाले छोटे विमान यहां उतर सकते हैं, लेकिन बड़े जेटलाइनर नहीं। लेकिन ये छोटे विमान नेपाल में खराब मौसम की स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। तेज हवा में ये डुबकी लगा सकते हैं।
पायलटों का दर्द
एक्सपर्ट्स साफ कहते हैं कि पायलट 43 साल पुराने विमान उड़ाते नहीं रह सकते। नेपाल में लगभग सभी हादसे फिक्स्ड-विंग विमानों के होते हैं। ऐसे विमान शॉर्ट टेकऑफ़ और लैंडिंग (स्टोल) करते हैं। ऐसे ही विमान जोमसोम या लुकला जैसे दूरस्थ स्थानों के लिए उड़ान भरते हैं, जो माउंट एवरेस्ट पर जाने वालों के लिए लोकप्रिय शुरुआती केंद्र हैं। तकनीक के अभाव में स्टोल विमान का नेपाल जैसी जगह पर उड़ना खतरनाक है।
इंफ्रास्ट्रक्चर नदारद
नेपाल में पायलटों के पास उड़ान से पहले और उड़ान के दौरान गलतियों से बचने के लिए आवश्यक जानकारी और तकनीक का अभाव है। नेपाल का मौसम विभाग मानता है कि वह 10,000 फीट से कम ऊंचाई पर चलने वाले घरेलू उड़ान मार्गों के लिए आवश्यक परिचालन मौसम सेवा प्रदान करने में असमर्थ है।
घरेलू सेवाओं पर निवेश नहीं
नेपाल के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए मौसम संबंधी अवलोकन और पूर्वानुमान में महत्वपूर्ण निवेश किया गया है। दूसरी ओर, घरेलू सेवाएं पिछड़ गई हैं क्योंकि वहां इंफ्रास्ट्रक्चर है ही नहीं। ऐसे में पायलट अक्सर हवाईअड्डे के मौसम केंद्रों की टिप्पणियों पर भरोसा करने को मजबूर हैं।हवाई अड्डे के निर्माण के अलावा, सरकार को विमानन मौसम संबंधी संस्थागत विकास और सेवा वितरण पर अधिक खर्च करना चाहिए लेकिन ऐसा हुआ नहीं है।
आदिम रडार प्रणाली
देश में आदिम रडार प्रणाली है। कोई इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में पायलट आम तौर पर विजिबिलिटी पर निर्भर करते हैं और जब मौसम अचानक बदल जाता है, तो वे एक बड़ी समस्या में फंस जाते हैं। इसमें पायलट की भी गलती नहीं होती है। जब वे उड़ान के लिए योजना बना रहे होते हैं, तो विजिबिलिटी अलग होती है और जब वे उड़ान भरने पर आकाश में आते हैं, तो मौसम मिनटों के भीतर बदल जाता है। बारिश और घना कोहरा कब आ जाये, कुछ पता नहीं होता।
कठिन इलाका
नेपाल का ज्यादातर इलाका कठिन है। अधिकांश पायलट इस बात से सहमत हैं कि हिमालय में ऊंची और संकरी लैंडिंग पट्टियां हैं। नेविगेट करना और भी मुश्किल है। कुल मिलाकर पहाड़, हवाई पट्टियां और भौगोलिक स्थिति ऐसी ही रहेगी। मौसम भी यूं ही रहेगा। बस बदल सकने योग्य चीज है विमान और टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर। इसमें जब तक निवेश नहीं होगा, तबतक यूं ही हादसे होते रहेंगे। फिलहाल, इसमें भी कोई बदलाव निकट भविष्य में नजर नहीं आता।