पकिस्तान खतरे में: शांति वार्ता रद्द होने से अब होगा ये हाल
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अमेरिका और तालिबान के बीच रद्द हुए इस बातचीत को लेकर भारत पहले से ही सहज नहीं था । क्योंकि भारत को लगता है कि इस बातचीत के सफल होने से क्षेत्र में शांति और स्थायित्व की उम्मीदें ख़त्म हो जाती । लेकिन पाकिस्तान और चीन अब बहुत परेशान हैं ।
नई दिल्ली: अमेरिका और तालिबान के बीच ये बातचीत कई दौर की सीक्रेट मीटिंग के बाद अमेरिका के कैंप डेविड में होने वाली थी लेकिन बीते दिन तालिबान द्वारा काबुल में एक आतंकी हमले में अमेरिका के एक सैनिक के साथ 11 आम नागरिकों की मौत हो जाने के कारण अमेरिका और तालिबान के बीच होने वाली शांति वार्ता अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रद्द कर दिया था । अब इस फैसले के बाद तालिबान का भी बयान आया है । तालिबान ने धमकी भरे लहजे के साथ कहा है कि इससे अमेरिका को बड़ा नुकसान होगा और अब ज्यादा अमेरिकियों की जान जाएगी।
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बातचीत के टूटने के बाद इस क्षेत्र में शांति और स्थायित्व की उम्मीदें बढ़ेंगी
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अमेरिका और तालिबान के बीच रद्द हुए इस बातचीत को लेकर भारत पहले से ही सहज नहीं था । क्योंकि भारत को लगता है कि इस बातचीत के सफल होने से क्षेत्र में शांति और स्थायित्व की उम्मीदें ख़त्म हो जाती । लेकिन पाकिस्तान और चीन अब बहुत परेशान हैं । वह लगातार इस आतंकी संगठन से बातचीत करने का पक्षधर था । लेकिन अब अमेरिका ने खुद ही इस बातचीत को रद्द कर दिया है । राष्ट्रपति ट्रंप इस बात पर सहमत थे कि अमेरिकी सैनिक जल्द ही अफगानिस्तान छोड़ देंगे । लेकिन से पाकिस्तान के मंसूबे पर तुषारापात हुआ है ।
भारत इसलिए नहीं चाहता तालिबान के साथ बातचीत
भारत इसलिए भी तालिबान के साथ इस बातचीत का पक्षधर नहीं है, क्योंकि इस बातचीत में अमेरिका इस बात पर सहमत था कि वह अपने सैनिक अफगानिस्तान से हटा लेगा । अगर ऐसा होता तो तालिबान फिर से अफगानिस्तान में मजबूत होता । इस समय भारत ने अफगानिस्तान में बहुत बड़ा निवेश किया हुआ है ।
अमेरिका के हटने से संभव है भारत को अपने कदम अफगानिस्तान में पीछे खींचने पड़ते । इसके अलावा तालिबान के मजबूत होने से पाकिस्तान के आतंकी संगठन भी मजबूत होते और ये सब जम्मू कश्मीर में अशांति फैलाने की पूरी कोशिश करते ।
भारत के साथ अफगानिस्तान भी बातचीत के विरोध में
तालिबान के साथ बातचीत न करने के पक्ष में भारत के साथ साथ अफगानिस्तान भी रहा है । हालांकि अमेरिका के कारण अब तक की बातचीत में वह शामिल था । बातचीत रद्द होने के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी का कहना है, इस क्षेत्र में सही मायनों में तभी शांति आएगी, जब तालिबान इस तरह हमलों को अंजाम देना बंद करेगा और अफगानिस्तान की सरकार से सीधे बातचीत करेगा ।
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खुद तालिबान अपने ही देश की सरकार को कठपुतली सरकार कहता है
अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान में अमेरिकी अभियान को खत्म करने पर जोर दिया था। राष्ट्रपति बनने के बाद वह लगातार अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या कम करने पर जोर देते रहे । लेकिन अफगानिस्तान के साथ साथ कई अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकला तो ये देश एक गहरे संकट में फंस जाएगा । इस समय तालिबान का अफगानिस्तान के कई हिस्सों पर कब्जा है ।
भारत की किसी भी सरकार ने नहीं की तालिबान से बात
तालिबान को लेकर भारत की नीति हमेशा से स्पष्ट रही है । 2001 से लेकर अब तक भारत की किसी भी सरकार ने तालिबान से बातचीत की पहल नहीं की । भारत हमेशा से तालिबान जैसे पक्षों को दक्षिण एशियाई क्षेत्र की शांति के लिए खतरा मानता रहा है । अमेरिका के इस फैसले से पाकिस्तान और चीन को तगड़ा झटका लगा है ।
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पाकिस्तान लगातार कर रहा तालिबान का समर्थन
अमेरिका की अफगानिस्तान के साथ बातचीत से सबसे ज्यादा खुश पाकिस्तान ही था । इस बातचीत से उसके यहां मौजूद आतंकी नेटवर्क और ज्यादा मजबूत होने वाला था । इस्लामाबाद ने तालिबान के को-फाउंडर मुल्ला बारादर को जेल से रिहा कर दिया था । पाकिस्तान ही था जो अमेरिका से कह रहा था कि काबुल की राजनीति में तालिबान जरूरी है ।
मंसूबे पर पर फिरा पानी
ट्रंप की बातचीत रद्द करने की घोषणा के बाद पाकिस्तान ने केवल अपने जिहादी मोर्चे पर भी मात खाया है बल्कि वॉशिंगटन से उसे मिल रही तरजीह भी खत्म हो गई है ।