PM Modi Egypt Visit: अल-हाकिम मस्जिद का भारत कनेक्शन, जाएंगे PM मोदी, जानिए पहले किन देशों की मस्जिदों में जा चुके हैं
PM Modi Egypt Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की मिस्र यात्रा पर हैं। मिस्र में पीएम नरेंद्र मोदी वहां की ऐतिहासिक अल-हाकिम मस्जिद भी जाएंगे। पीएम मोदी अपनी अमेरिका यात्रा के बाद दो दिन की मिस्र यात्रा पर हैं। मिस्र के जिस मस्जिद को पीएम मोदी देखने जाएंगे आखिर उसका भारत से कनेक्शन क्या है?
PM Modi Egypt Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन की मिस्र यात्रा पर हैं। मिस्र में पीएम नरेंद्र मोदी वहां की ऐतिहासिक अल-हाकिम मस्जिद भी जाएंगे। पीएम मोदी अपनी अमेरिका यात्रा के बाद दो दिन की मिस्र यात्रा पर हैं। मिस्र के जिस मस्जिद को पीएम मोदी देखने जाएंगे आखिर उसका भारत से कनेक्शन क्या है? और पीएम मोदी का यहां जाने का मकसद क्या है। मोदी की मिस्र यात्रा काफी खास है। यह पहली बार नहीं है कि पीएम मोदी अपने विदेश दौरे पर किसी मस्जिद में जाएंगे। इससे पहले भी पीएम कई मस्जिदों में जा चुके हैं।
...तो इसलिए मोदी जाएंगे इस मस्जिद में-
1970 के दशक के अंत में एक बार फिर अल-हाकिम मस्जिद का पुनर्निर्माण कार्य शुरू हुआ था और इसकी जिम्मेदारी ली थी दाऊदी बोहरा समुदाय के 52वें धर्मगुरु मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने। मोहम्मद बुरहानुद्दीन का भारत से गहरा संबंध था और सामाजिक क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से नवाजा भी था। यह मस्जिद अपनी अलग ही पहचान रहता है इसका इतिहास भी काफी रोचक है।
वहीं विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने पीएम मोदी के मिस्र के अल-हाकिम मस्जिद के दौरे के बारे में जानकारी देते हुए बताया, ‘‘मिस्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 जून को अल-हाकिम मस्जिद का दौरा करेंगे, जिसे 11वीं शताब्दी में बनाया गया था और दाऊदी बोहरा समुदाय ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।‘‘
मस्जिद को ऐतिहासिक काहिरा के हिस्से के रूप में 1979 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया था। पीएम मोदी की यह पहली मिस्र यात्रा है और साल 1997 के बाद किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की मिस्र की पहली अधिकारिक यात्रा है।
जानिए क्या है अल-हाकिम मस्जिद का इतिहास-
मिस्र की राजधानी काहिरा दुनियाभर में इस्लामी वास्तुकला के लिए फेमस है। यहां इस्लाम से जुड़ीं इमारतें और अलग-अलग कालखंड की मस्जिदें मौजूद हैं। जो अपनी वास्तुकला के लिए जानी जाती हैं। इन्हीं में से एक है अल-हाकिम मस्जिद। इस मस्जिद के बारे में जानकारी देते हुए प्रोफेसर डोरिस बेहरेंस अबुसैफ अपनी किताब ‘इस्लामिक आर्किटेक्चर इन काइरोः एन इंट्रोडक्शन‘ में लिखती हैं कि जिन परिस्थितियों में अल-हकीम मस्जिद का निर्माण किया गया वह असामान्य हैं।
...तो इसलिए पड़ा इसका नाम अल-हाकिम मस्जिद-
मस्जिद का निर्माण फातिमिद राजवंश के पांचवें खलीफा अल-अजीज ने दसवीं शताब्दी (990 ईस्वी) के आखिर में शुरू करवाया था। फातिमिद राजवंश अरब मूल का एक इस्माइली शिया राजवंश था। निर्माण शुरू होने के एक साल बाद मस्जिद में पहली बार नमाज पढ़ी गई, हालांकि इमारत तब भी पूरी तरह से नहीं बनी थी। इतिहासकारों का मानना है कि तब तक मस्जिद में केवल नमाज वाला कमरा ही बना था।
अमेरिकी इतिहासकार जोनाथन एम. ब्लूम की किताब ‘द मोस्क ऑफ अल-हाकिम इन काइरो‘ के मुताबिक, इस अधूरी बनी मस्जिद में करीब 12 साल तक नमाज अदा करने का सिलसिला चलता रहा और साल 1002-03 में अल-अजीज के बेटे और फातिमिद राजवंश के छठवें खलीफा अल-हाकिम ने मस्जिद का पुनर्निर्माण शुरू कराया और इन्हीं अल-हाकिम के नाम पर इस मस्जिद का नाम अल-हाकिम रखा गया है। दस साल बाद 1013 में मस्जिद पूरी तरह से बनकर तैयार हुई। इस समय मस्जिद की लंबाई 120 मीटर और चैड़ाई 113 मीटर थी। यह आकार में मशहूर अल-अजहर मस्जिद से दोगुनी थी और इसके निर्माण की कुल लागत 45 हजार दिनार थी।
तब मस्जिद मूल रूप से काहिरा शहर की दीवारों के बाहर थी लेकिन साल 1087 में मस्जिद शहर के अंदर पहुंच गई। इस काम को फातिमिद राजवंश के आठवें खलीफा अल-मुस्तानसिर के वजीर बद्र अल-जमाली ने अंजाम दिया था। बद्र अल-जमाली ने काहिरा शहर की दीवारों को उत्तर दिशा में मस्जिद तक बढ़ा दिया था।
जब मस्जिद क्षतिग्रस्त हुई
13वीं सदी के मध्य में मिस्र में ममलूक सल्तनत का राज स्थापित हो चुका था। 1303 में मिस्र में भूकंप आया और इसके चलते गीजा पिरामिड से लेकर कई मस्जिदों को नुकसान पहुंचा था। क्षतिग्रस्त हुई मस्जिदों में अल-हाकिम भी शामिल थी। इसके बाद ममलूक सुल्तान अबु-अल-फतह ने इसे ठीक कराया। इस समय तक मस्जिद का इस्तेमाल इस्लामी शिक्षा के लिए भी किया जा रहा था। आधुनिक ढांचे से पहले कई शताब्दियों में मस्जिद का आंतरिक भाग खंडहर हो चुका था और मस्जिद के रूप में इसका उपयोग कभी-कभी ही किया था।
अलग-अलग कालखंडों में परिसर का इस्तेमाल अलग-अलग ढंग से किया गया-
लेखक कैरोलीन विलियम्स ने अपनी किताब ‘इस्लामिक मोनूमेंट्स इन काइरोः अ प्रैक्टिकल गाइड‘ में बताया है कि अलग-अलग कालखंडों में मस्जिद परिसर का इस्तेमाल अलग-अलग ढंग से किया गया था। ईसाई धर्मयुद्ध के दौरान मस्जिद का इस्तेमाल जेल के रूप में, अय्यूबी राजवंश के सलाउदीन द्वारा अस्तबल के रूप में, नेपोलियन द्वारा एक किले के रूप में, 1890 में एक इस्लामी कला संग्रहालय और फिर 20वीं सदी में लड़कों के स्कूल के रूप में किया गया था।
मस्जिद को मिला दाऊदी बोहरा समुदाय का साथ
1970 के दशक के अंत में एक बार फिर मस्जिद का पुनर्निर्माण कार्य शुरू हुआ और इसकी जिम्मेदारी दाऊदी बोहरा समुदाय के 52वें धर्मगुरु मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने ली थी। मोहम्मद बुरहानुद्दीन का भारत से संबंध था और सामाजिक क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया था। -अल-हाकिम मस्जिद के जीर्णोद्धार में सफेद संगमरमर और सोने की सजावट का प्रयोग किया गया और इसमें 27 महीनों का समय लगा था।
-24 नवंबर 1980 को आधिकारिक तौर पर मस्जिद को खोला गया। उद्घाटन के लिए भव्य समारोह का आयोजन किया गया था। समारोह में मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात, धर्मगुरु मोहम्मद बुरहानुद्दीन, सरकार के उच्च अधिकारियों और अल-अजहर यूनिवर्सिटी से जुड़े धार्मिक लोग शामिल हुए थे।
-करीब चार दशक बाद 2017 में दाऊदी बोहरा समुदाय और मिस्र के पर्यटन एवं पुरावशेष मंत्रालय ने मस्जिद को लेकर एक साझा पहल शुरू की थी।
-2017 से शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट 2023 तक चला और छह सालों के दौरान इसमें 20 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो गए।
-फिर इसी साल फरवरी के महीने में मिस्र की चैथी सबसे पुरानी और दूसरी सबसे बड़ी अल-हाकिम मस्जिद को पर्यटकों के लिए खोला गया था।
दाऊदी बोहरा समुदाय के लोगों के लिए खास है-
एक न्यूज वेवसाइड के अनुसार मुंबई के एक कॉलेज में पढ़ाने वाले डॉ. तालिब यूसुफ की मानें तोये दाऊदी बोहरा समुदाय के साथ पूरे हिन्दुस्तान के लिए गर्व का पल होगा। वे कहते हैं, ‘‘दाऊदी बोहरा हिन्दुस्तान की एक छोटी सी कम्युनिटी है और ये हमारी लिए बड़ी खुशी की बात है कि पीएम मोदी अल-हाकिम मस्जिद जा रहे हैं। इस कदम से दुनियाभर में देश की एकता और अखंडता का संदेश जाएगा।‘‘
अल-हाकिम मस्जिद पर डॉ. तालिब ने कहा, ‘‘मिस्र की अल-हाकिम मस्जिद दुनिया भर में बसे दाऊदी बोहरा समुदाय के लोगों के लिए खास और ऐतिहासिक है। इसमें मुस्लिम धर्म को मानने वाले सारे समुदाय के लोग जाते हैं और नमाज पढ़ते हैं।‘‘
देखते ही बनती है मस्जिद की बनावट-
-अल-हाकिम मस्जिद काहिरा में फातिमिद वास्तुकला और इतिहास का एक नायाब उदाहरण है।
-यह आयताकार मस्जिद 13 हजार 560 वर्ग मीटर के क्षेत्र को कवर करती है, जिसके बीच में पांच हजार वर्ग मीटर का बड़ा सा आंगन है।
-आंगन के चारों तरफ बड़े-बड़े हॉल बने हुए हैं।
-इस मस्जिद की सबसे खास बात है इसके दोनों छोर पर बनीं मीनारें, जिनका निर्माण मस्जिद के शुरुआती दिनों में करवाया गया था। इन मीनारों का बाहरी हिस्सा और आधार ममलूक शैली में बना है जबकि अंदरूनी मूल भाग फातिमिद शैली में।
-मस्जिद का मुख्य भाग और मीनारें पत्थर से बनी हैं, जबकि बाकी संरचना में ईंट का इस्तेमाल किया गया है।
-मस्जिद में कुल तेरह दरवाजे हैं और आंगन के बीचों-बीच पानी का स्रोत मौजूद है।
यह पहली बार नहीं है जब पीएम जा रहे हैं किसी मस्जिद में-
यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी किसी विदेश दौरे पर गए हैं और इस बीच मस्जिद जा रहे हैं। इससे पहले पीएम मोदी ओमान से लेकर संयुक्त अरब अमीरात के दौरों पर मस्जिद में जा चुके हैं।
शेख जायद मस्जिद-
अगस्त 2015 में पीएम मोदी संयुक्त अरब अमीरात के दो दिवसीय दौरे पर गए थे। अपनी इस यात्रा के पहले दिन मोदी ऐतहासिक शेख जायद मस्जिद भी गए थे। उस समय मोदी के साथ यूएई के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री शेख हमदान बिन मुबारक अल नाहयान भी मौजूद थे।
सुल्तान कबूस मस्जिद-
पीएम मोदी फरवरी 2018 में पश्चिमी एशिया के चार देशों जॉर्डन, फलस्तीन, यूएई और ओमान के दौरे पर गए थे। इस दौरान पीएम मोदी ओमान की राजधानी मस्कट में मौजूद सुल्तान कबूस मस्जिद भी गए थे। ये मस्जिद ओमान की सबसे बड़ी मस्जिद है, जिसे भारतीय बालू पत्थर से बनाया गया है।
चूलिया मस्जिद
पीएम मोदी ने 2018 के मई-जून में तीन देशों इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर का दौरा किया था। पीएम मोदी सिंगापुर की यात्रा के दौरान पहले श्री मरियम्मां मंदिर पहुंचे थे और फिर चूलिया मस्जिद गए थे। इस मस्जिद का निर्माण चूलिया मुस्लिम समुदाय ने करवाया था जो तमिल मुसलमानों का एक समुदाय है।
इस्तिकलाल मस्जिद-
ये मस्जिद इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। पीएम नरेंद्र मोदी मई 2018 में इस मस्जिद में पहुंचे थे और उनके साथ इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति जोको विडोडो मौजूद थे।