Nepal News: संकट में फंसी प्रचंड सरकार, ओली ने वापस लिया समर्थन

Nepal News: राष्ट्रपति चुनाव बड़ी सियासी जंग का कारण बन गया है। देश में सत्तारूढ़ सात दलों के गठबंधन में दरार के बाद प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की सरकार गहरे संकट में फंसी हुई दिख रही है।

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2023-02-28 12:54 IST

PM Pushpa Kamal Dahal (Photo: Social Media)

Nepal News: नेपाल में राष्ट्रपति चुनाव बड़ी सियासी जंग का कारण बन गया है। देश में सत्तारूढ़ सात दलों के गठबंधन में दरार के बाद प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की सरकार गहरे संकट में फंसी हुई दिख रही है। इसी कारण प्रचंड ने तीन मार्च से प्रस्तावित अपना कतर का दौरा भी रद्द कर दिया है। दरअसल सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल सबसे बड़े दल केपी शर्मा ओली के सीपीएन-यूएमएल ने सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया है।

पिछले एक महीने के दौरान गठबंधन सरकार के तीन बड़े घटक दल सरकार से अलग हो चुके हैं। ऐसे में प्रचंड के पास अब सिर्फ 32 सदस्यों का समर्थन रह गया है जबकि विश्वासमत हासिल करने के लिए 138 सदस्यों का समर्थन जरूरी है। देश में मौजूदा सियासी संकट और राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पैदा हुआ है। ऐसे में अब सबकी निगाहें 9 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर टिकी हैं। राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन देने के बदले विपक्षी नेपाल कांग्रेस की ओर से प्रचंड को समर्थन दिया जा सकता है।

प्रचंड के इस कदम से नाराज हुए ओली

नेपाल में दो महीने पहले प्रचंड की अगुवाई में गठबंधन सरकार का गठन हुआ था। उस समय यह तय किया गया था कि ढाई साल सीपीएल-एमसी के नेता प्रचंड प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभालेंगे जबकि उसके बाद सीपीएन-यूएमएल के मुखिया केपी शर्मा ओली देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। पिछले दो महीने से प्रचंड की सरकार ठीक-ठाक तरीके से चल रही थी मगर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर गठबंधन में जंग छिड़ गई। दरअसल प्रचंड ने गठबंधन सरकार के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार समर्थन न देकर सबको हैरान कर दिया।

प्रचंड ने विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार रामचंद्र पौडयाल को समर्थन देने का ऐलान किया है। उनके इस ऐलान से सीपीएन-यूएमएल के मुखिया केपी शर्मा ओली नाराज हो गए और उन्होंने सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया। प्रचंड ने पौडवाल की जीत सुनिश्चित करने के लिए नेपाल कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के साथ गोपनीय बैठक भी की है। उनके इस कदम के बाद नेपाल में नया सियासी संकट पैदा होता दिख रहा है।

एक महीने से चल रही है उठापटक

नेपाल में पिछले एक महीने से सत्तारूढ़ गठबंधन में उठापटक चल रही है गठबंधन सरकार में शामिल तीसरे सबसे बड़े दल राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने गत 6 फरवरी को बाहर से समर्थन देने का ऐलान करते हुए सरकार छोड़ दी थी। इसके बाद 26 फरवरी को राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी ने भी सरकार से नाता तोड़ लिया था और अब सरकार में शामिल सबसे बड़े दल केपी शर्मा ओली के सीपीएन-यूएमएल ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है।

राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी के 14 और सीपीएन-यूएमएल के 79 सदस्यों के समर्थन वापस लेने के बाद प्रचंड सरकार अल्पमत में आ गई है। प्रचंड को 30 मार्च तक सदन में विश्वासमत हासिल करना है। वैसे इससे पहले सबकी निगाहें नेपाल में 9 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर लगी हुई हैं। प्रचंड भविष्य में नेपाल के प्रधानमंत्री बने रहेंगे या उन्हें इस्तीफा देना होगा, यह बहुत कुछ राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर निर्भर करता है। इसी कारण प्रचंड ने विपक्षी दल नेपाल कांग्रेस के उम्मीदवार को जिताने में पूरी ताकत लगा रखी है।

इस तरह प्रचंड को फिर मिल सकता है बहुमत

फिलहाल प्रचंड के पास सिर्फ 32 सदस्यों का समर्थन है जबकि बहुमत साबित करने के लिए प्रतिनिधि सभा में उन्हें 138 वोटों की जरूरत होगी। उनकी पार्टी के प्रतिनिधिसभा में सिर्फ 32 सदस्य हैं मगर राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन के बदले उन्हें विपक्षी नेपाल कांग्रेस के 89 सदस्यों का समर्थन हासिल हो सकता है। इसके साथ ही नागरिकता मामले में सदस्यता कमाने वाले टीवी पत्रकार रवि लमिछाने की राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने भी प्रचंड को आगे समर्थन देते रहने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में प्रचंड को 141 सदस्यों का समर्थन हासिल हो सकता है।

समीकरण में फंसा हुआ है बड़ा पेंच

वैसे इस समीकरण में एक पेंच भी फंसा हुआ है। नेपाल में नवंबर में चुनाव के समय प्रचंड नेपाल कांग्रेस के साथ गठबंधन में थे और वे इसी शर्त के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे कि चुनाव के बाद नेपाल कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बनेंगे। हालांकि चुनाव के बाद उनका रुख बदल गया। लिहाजा इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि नेपाल कांग्रेस के राष्ट्रपति उम्मीदवार की जीत मिलने के बाद नेपाल कांग्रेस भी खेल कर सकती है। प्रचंड ने प्री पील अलायंस तोड़कर नेपाल कांग्रेस को धोखा दिया था और ओली के साथ चले गए थे। अब उन्होंने ओली को धोखा देकर एक बार फिर नेपाल कांग्रेस से हाथ मिला लिया है। ऐसे में अब सबकी निगाहें राष्ट्रपति चुनाव के बाद नेपाल कांग्रेस के रुख पर टिकी हुई है।

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