RCEP: चीन के और करीब गया बांग्लादेश, नई भागीदारी का एलान

भारत के चारों तरफ चीन ने अपना दबदबा बढ़ाते हुए अब बांग्लादेश को भी अपनी ओर खींच लिया है। अब बांग्लादेश ने बेहद महत्वपूर्ण कदम उठाया है। चीन के नेतृत्व वाले दुनिया के सबसे बड़े ट्रेडिंग गुट 'आरसीईपी' में शामिल होने का फैसला किया है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Ashiki
Update:2021-09-12 16:24 IST

शेख हसीना और शी जिनपिंग (Photo- Social Media)

RCEP Countries: भारत के चारों तरफ चीन (China) ने अपना शिकंजा कसते हुए अब बांग्लादेश (Bangladesh) को भी अपनी ओर खींच लिया है। अब बांग्लादेश ने बेहद महत्वपूर्ण कदम उठाया है। चीन के नेतृत्व वाले दुनिया के सबसे बड़े ट्रेडिंग गुट 'आरसीईपी' (Regional Comprehensive Economic Partnership) में शामिल होने का फैसला किया है।

बांग्लादेश अभी अविकसित देशों की श्रेणी में आता है, लेकिन 2026 तक वह विकासशील देशों की केटेगरी में आ जाएगा। अविकसित देश होने के नाते बांग्लादेश को अंतरराष्ट्रीय व्यापार सम्बन्धी बहुत सी सहूलियतें और छूट मिली हुई हैं। जब वह विकासशील देश की कटेगरी में आ जाएगा तो कई रियायतें खत्म हो जायेंगी। उसे दुनिया की एक तिहाई अर्थव्यवस्थाओं के बाजारों में ड्यूटी फ्री व्यापार की सहूलियतें मिलना जारी रहें, इसके लिए बांग्लादेश ने चीन की अगुवाई वाले 'आरसीईपी' गुट में शामिल होने की अर्जी लगा दी है। बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्रालय ने कहा है कि चीन स्थित आरसीईपी मुख्यालय से कह दिया गया है कि बांग्लादेश उसे ज्वाइन करना चाहता है।

क्या है आरसीईपी (Kya Hai RCEP)

यह एक प्रस्तावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट या व्यापारिक समझौता है। इसका मुख्य उद्देश्य एशियाई देशों के बीच निवेश बढ़ाने को समर्थन देकर और आयात करों में कमी कर इन देशों की अर्थव्यवस्था को साथ लाना है। लेकिन आरसीईपी में चीन की मौजूदगी के कारण ये क़यास लगाये जा रहे हैं कि समझौते में शामिल देशों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार करने के कारण चीन इस व्यापार व्यवस्था पर हावी हो सकता है। 15 नवम्बर, 2020 को चीन, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, ब्रूनेई, वियतनाम, लाओस, कम्बोडिया, थाईलैंड, म्यांमार, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और फिलिपीन्स ने दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड अग्रीमेंट स्थापित किया था। 15 देशों के इस गुट में 2.2 अरब की आबादी और 26.2 ट्रिलियन डालर की संयुक्त जीडीपी शामिल है।


आरसीईपी का विचार 2012 में पैदा हुआ था। जब 2017 में अमेरिका ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीटीपी) से अलग हट गया और अमेरिका – चीन के बीच व्यापार युद्ध छिड़ गया तो आरसीईपी ने रफ़्तार पकड़ ली। उस समय बांग्लादेश चुपचाप बैठा रहा। लेकिन बाद में जब उसे यह लगा कि चीन की अगुवाई वाले नए गुट से यदि वो बाहर रहता है तो उसे एफडीआई मिलने में दिक्कतें हो सकती हैं तथा ट्रेड सम्बन्धी अन्य परेशानियां भी हो सकती हैं। बांग्लादेश ने आरसीईपी को समझने के लिए पिछले साल एक्सपर्ट्स की एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने बाद में सुझाव दिया कि बांग्लादेश को व्यावसायिक हितों की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को आगे बढाने के लिए इस गुट में शामिल हो जाना चाहिए।

भारत शामिल नहीं

भारत इस गुट में शामिल नहीं है। इसकी वजह चीन से चल रही प्रतिद्वंदिता है। भारत वास्तव में विकसित देशों के साथ कारोबारी समझौते करना चाहता है जिनमें अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे बड़े बाजार शामिल हैं। भारत की कोशिश यह है कि इन बाजारों में भारत के उत्पाद और सेवाएं अन्य देशों की तुलना में प्रतियोगी कीमत जुटा सकते हैं, आसियान देशों में इसकी संभावना कम है। भारत को यह भी आशंका रही है कि कहीं चीन के सस्ते सामान भारतीय बाज़ारों में आसानी से हर जगह उपलब्ध न हो जाएँ जिससे भारतीय कारख़ानों और उद्योगों को समस्या हो।


अब क्या होगा

बांग्लादेश के आरसीईपी में शामिल होने से भारत को एक झटका माना जा सकता है क्योंकि आरसीईपी में चीन का दबदबा है। वह कम से कम भारत के अड़ोस-पड़ोस में apna प्रभाव डाल कर भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें कर सकता है। जिस तरह बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है ऐसे में भारत को वह मजबूत सहयोगी के रूप में मिल सकता है। बांग्लादेश में एमएसएमई सेक्टर बहुत मजबूत है। दुनिया भर के लिए बांग्लादेश एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनता जा रहा है। भारत की ही तमाम कम्पनियाँ बांग्लादेश में प्रोडक्शन करवाती हैं। अब अगर आरसीईपी में बांग्लादेश को अन्यत्र ज्यादा सहूलियतें मिलने लगीं तो वह उसी तरफ चला जाएगा।

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