Sher Bahadur Deuba: शेर बहादुर देउबा का जीवन परिचय, नए नेपाली पीएम देउबा का भारत से नाता
Sher Bahadur Deuba : नेपाल में राजशाही रहने के दौरान देउबा की राजनीति में दबदबे का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पार्टी ने उन्हें तब तीन बार प्रधानमंत्री बनवाया था।
Sher Bahadur Deuba: नेपाली कांग्रेस (Nepal Congress President) के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा पाँचवीं बार नेपाल के प्रधानमंत्री (Nepal PM) बने हैं। देउबा नेपाल के वरिष्ठ पॉलिटीशियन हैं। वे अब तक नेपाल की प्रमुख विपक्षी नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष थे। देउबा इससे पहले चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री बन चुके हैं, सो उनके पास सरकार चलाने का बहुत अनुभव है।
शेर बहादुर देउबा का जीवन परिचय (Sher Bahadur Deuba Ka Jeevan Parichay)
लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से पढ़ाई करने वाले देउबा भारत के करीबी नेता भी हैं। नेपाल में राजशाही रहने के दौरान देउबा की राजनीति में दबदबे का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पार्टी ने उन्हें तब तीन बार प्रधानमंत्री बनवाया था।
वे पहली बार सितंबर 1995 से मार्च 1997, दूसरी बार जुलाई 2001 से अक्तूबर 2002, तीसरी बार जून 2004 से फ़रवरी 2005 और चौथी बार जून 2017 से फ़रवरी 2018 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे।
देउबा का भारत से नाता (Deuba Ka Bharat Se Nata)
भारत से भी देउबा का पुराना वास्ता रहा है। जून 2017 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा में, देउबा ने अगस्त 2017 में भारत का दौरा किया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता की थी। देउबा इससे पहले 1996, 2004 और 2005 में भी प्रधानमंत्री के रूप में भारत के तीन दौरे कर चुके हैं।
देउबा और उनकी पार्टी भारत के साथ घनिष्ठ संबंध रखने की पक्षधर है। ओली का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा था, जबकि देउबा हर देश के साथ बराबर संबंध रखने वाले नेता हैं। गिरिजा प्रसाद कोइराला को अपना राजनीतिक गुरू मानने वाले देउबा भारत के साथ संबंधों को सुधारकर देश को तरक्की के रास्ते पर चलाने की कोशिश करेंगे।
केपी ओली ने पिछले कुछ सालों में भारत को लेकर जो फैसले लिए थे, उनसे नेपाल और भारत के रिश्तों में एक दरार आ गई थी। लेकिन देउबा का आना इस दरार को भरने का काम कर सकता है. खासतौर पर उत्तर-पूर्वी सीमा पर चीन के आक्रामक रवैया के बीच नेपाल में हुआ ये बदलाव भारत के लिए राहत भरा हो सकता है। पिछले पीएम केपी ओली के नेतृत्व में नेपाल लगातार चीन के करीब गया है।
छात्र नेता रहे हैं देउबा
पश्चिमी नेपाल के दादेलधुरा ज़िले के एक सुदूर गाँव में 13 जून 1946 को जन्मे शेर बहादुर देउबा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक छात्र नेता के रूप में की थी। वे 1971 से 1980 तक नेपाली कांग्रेस की छात्र राजनीतिक शाखा, नेपाल छात्र संघ के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष थे।
देउबा 1986 से 2005 के बीच अलग-अलग समय पर जेल जा चुके हैं। 2005 में नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र शाह ने उन्हें कथित तौर पर 'अक्षमता' के लिए पीएम पद से हटा दिया था। देउबा की शादी डॉ. अजरू राणा देउबा से हुई है, जो नेपाली कांग्रेस पार्टी की सक्रिय सदस्य हैं।
देउबा की शिक्षा (Sher Bahadur Deuba Education)
देउबा ने क़ानून में स्नातक और राजनीति विज्ञान में परास्नातक किया है। उन्हें लोकतंत्र को मज़बूत करने में उनके योगदान के लिए नवंबर 2016 में नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था।
देउबा का तात्कालिक काम नेपाल में राजनीतिक स्थिरता लाना होगा। देउबा की गठबंधन सरकार में नेपाली कांग्रेस समेत माओवादी नेता पुष्प कमल दाहाल की प्रचंड पार्टी और जनता समाजवादी पार्टी शामिल हैं। जनता समाजवादी पार्टी पूर्व माओवादियों और मधेसी नेताओं की पार्टी है।
देउबा ने मंगलवार को एक छोटी कैबिनेट के साथ शपथ ली है। उनकी सरकार में ज्ञानेंद्र कार्की को क़ानून मंत्री और बाल कृष्ण खंड को गृह मंत्री बनाया गया है। वहीं जनार्दन शर्मा को वित्त मंत्रालय और पंफ़ा भूसल को ऊर्जा और सिचाई मंत्रालय की कमान सौंपी गई है। भूसल को जो मंत्रालय सौंपे गये हैं, उनका नेपाल में बहुत महत्व माना जाता है।
पूर्व पीएम केपी ओली नाराज
बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किये जाने के बाद, केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा तो दे दिया, मगर वे बहुत नाखुश हैं। इस्तीफ़ा देने से पहले ओली ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होने के बावजूद, वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से अपने पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं। ओली ने कहा कि "खिलाड़ियों का कर्तव्य होता है कि वो खेलें। रेफ़री को देखना होता है कि खेल ठीक से हो, ना कि वो किसी एक टीम को जीतने में मदद करे।" ओली ने कहा कि कोर्ट के फ़ैसले का देश की संसदीय व्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा। फ़ैसले मे जो भाषा इस्तेमाल की गई वो उन लोगों को डराने वाली है जो बहुदलीय व्यवस्था में भरोसा रखते हैं। ये बस एक अस्थायी खुशी है जिसका दूरगामी असर होगा।