धरती की तरफ आ रहा भयंकर सौर तूफान, बंद हो सकते हैं मोबाइल-GPS सिग्नल

सूरज की सतह से उठा भयंकर तूफान 16 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है। इससे सभी सैटेलाईट बंद हो सकतती हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update: 2021-07-12 11:54 GMT

सौर तूफान (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Solar Storm: सूरज के वायुमंडल से उत्पन्न एक जबरदस्त तूफान का पृथ्वी पर भारी असर पड़ने की आशंका है। इस तूफ़ान से पैदा ऊर्जा से सभी सैटेलाईट (Satellite) बंद हो सकती हैं जिसके कारण मोबाइल, जीपीएस और बिजली ग्रिड बैठ सकते हैं। सूरज की सतह से उठा ये भयंकर तूफान 16 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है।

स्पेसवेदर डॉट कॉम के मुताबिक, ये तूफ़ान धरती के चुंबकीय क्षेत्र पर गहरा असर डाल सकता है जिससे रात में आसमान असमान्य रोशनी से जगमगा उठेगा लेकिन ये नजारा सिर्फ उत्तर या दक्षिणी ध्रुव पर दिखेगा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) का अनुमान है कि इस तूफान की रफ्तार और अधिक बढ़ सकती है और इस तूफ़ान से सैटेलाइट सिग्नल (Satellite Signal) बाधित हो सकते हैं।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पृथ्वी पर सौर तूफान का प्रभाव

सौर तूफान (Solar Storm) के कारण पृथ्वी का बाहरी वातावरण गर्म हो सकता है, जिसका सीधा असर उपग्रहों पर पड़ सकता है। यह जीपीएस नेविगेशन, मोबाइल फोन सिग्नल और सैटेलाइट टीवी को प्रभावित कर सकता है। यही नहीं, सौर तूफान के कारण बिजली लाइनों में करंट ज्यादा पैदा हो सकता है, जिससे ट्रांसफार्मर भी उड़ सकते हैं।

सबसे पहला सौर तूफान 1859 (1859 Solar Storm) में रिकॉर्ड किया गया था। 1972 में एक बड़े तूफान ने अमेरिका के मध्य पश्चिमी राज्यों में टेलीफोन लाइनों को अस्त व्यस्त कर दिया। 1989 में इसी तरह के तूफान से बिजली की लाइनें खराब हो गईं और कनाडा के क्यूबेक इलाके में परेशानी हुई।

दरसल, सूरज के केंद्र में हाइड्रोजन कणों के बीच न्यूक्लियर रिएक्शन (Nuclear Reaction) होता है जिससे वे हीलियम (Helium) बन जाते हैं और सूरज में रोशनी इसी तरह पैदा होती है। सोलर मिनिमम में सूरज काफी स्थिर रहता है और उसकी सतह पर तूफान नहीं आते। इसके बिल्कुल उलट मैक्सिमम के दौरान सूरज की सतह पर काले दाग बन जाते हैं जिसकी वजह से उसके चुंबकीय क्षेत्रों में भारी बदलाव आता है। नतीजतन सौर तूफान पैदा होते हैं।

1859 में ब्रिटिश खगोलविज्ञानी रिचर्ड कैरिंगटन ने एक सौर तूफान की खोज की थी। माना जाता है कि उस वक्त सूरज से जो ऊर्जा निकली, वह हिरोशिमा के 10 अरब एटम बमों के फटने के बराबर थी। उस वक्त इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा क्योंकि धरती पर इतनी टेलीफोन लाइनें नहीं थीं। लेकिन आज स्थिति अलग हो सकती है क्योंकि लंबे वक्त तक बिजली न होने से काफी दिक्कत आ सकती है।

सौर तूफान (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सौर तूफान क्या है?

सूर्य की सतह पर अचानक बेहद चमकदार प्रकाश दिखने की घटना को सन फ्लेयर (Sun flare) कहा जाता है। धरती से ऐसा हर रोज नहीं दिखाई पड़ता। कभी कभार होने वाली इस घटना के दौरान सूर्य के कुछ हिस्से असीम ऊर्जा छोड़ते हैं। इस ऊर्जा से एक खास चमक पैदा होती है जो आग की लपटों जैसी नजर आती है। अगर यह असीम ऊर्जा लगातार कई दिनों तक निकलती रहे तो इसके साथ सूर्य से अति सूक्ष्म नाभिकीय कण भी निकलते हैं। यह ऊर्जा और कण ब्रह्मांड में फैल जाते हैं। असल में यह बहुत जबरदस्त नाभिकीय विकीरण है, जिसे सौर तूफान भी कहा जाता है।

सौर तूफान राह में आने वाली हर चीज पर असर डालता है। अगस्त 2014 के अंत में शुरू हुए सौर तूफान की दिशा फिलहाल पृथ्वी की तरफ नहीं है।लेकिन नासा ने चेतावनी दी है कि इस साल के अंत में एक सौर तूफान पृथ्वी की तरफ आएगा।

सन फ्लेयर वैज्ञानिकों को सूर्य को समझने का मौका भी देता है। अब तक यह पता चला है कि सौर तूफान की वजह से ब्रह्मांड में मौजूद कण इतने गर्म हो जाते हैं कि वे भी प्रकाश की गति से यात्रा करने लगते हैं।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक सूर्य को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। कोर में नाभिकीय क्रियाएं होती है। इन क्रियाओं से पैदा हुई विकीरण ऊर्जा को रैडिएटिव जोन बाहर फेंकता है। कनवेक्शन विकिरण ऊर्जा को सतह तक लाता है।

सूर्य से लगातार आते आवेशित यानी चार्ज कणों से धरती को पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बचाता है। धरती के गर्भ से निकलने वाली चुंबकीय शक्तियां वायुमंडल के आस पास कवच का काम करती हैं। ये आवेशित कणों का रुख मोड़ देती हैं। लेकिन सौर तूफान के वक्त कई आवेशित कण चुंबकीय कवच को भेद देते हैं। जुलाई 2013 में एक बहुत ही बड़ा सौर तूफान धरती के करीब से गुजरा था. अगर सौर तूफान धरती से टकराता तो भारी मुश्किल पैदा हो सकती थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक सौर तूफान एक झटके में सारी सैटेलाइटों को खराब कर सकता है।

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