बेरुत: सीरिया का युद्ध अब अपने आखिरी और सबसे खतरनाक चरण में पहुंच गया है। दक्षिण पश्चिम सीरिया में हाल में विद्रोहियों पर सरकारी सेनाओं की जीत के बाद अब देश के अधिकांश भाग पर राष्ट्रपति बशर अल असद का फिर कंट्रोल हो गया है। अब असद के सामने किसी तरह का सैन्य या राजनयिक खतरा नहीं है। लेकिन सीरिया का एक तिहाई हिस्सा अब भी सरकार के नियंत्रण में नहीं आ पाया है। इन क्षेत्रों पर तुर्की व अमेरिकी सेनाओं का कब्जा है। तुर्की ने उत्तर पश्चिम के अलेप्पो और इदलिब के कुछ हिस्सों में अपने सैनिक तैनात कर रखे हैं। अब असद का आखिरी निशाना इन्हीं इलाकों पर है।
उधर उत्तर पूर्वी इलाके में अमेरिका की करीब दो हजार स्पेशल ऑपरेशन फोर्स कब्जा जमाए हुए है। ये फोर्स कुर्द लड़ाकों के साथ मिल कर इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ रही है। उधर ईरान ने अपनी सेनाएं सीरियायी सरकार के वफादार लड़ाकों के साथ सरकार के कब्जे वाले इलाकों में जमा कर रखी हुयी हैं। ईरान की इस मौजूदगी का इजरायल सख्त विरोध कर रहा है। डर ये है कि युद्ध के अंतिम चरण में पहुंचने से एक व्यापक संग्राम छिड़ सकता है क्योंकि कई देशों की सेनाएं आमने-सामने आ जाएंगी।
ऐसे में रूस पर जिम्मेदारी आ जाएगी कि वो सीरिया को इन संकट से बचा कर आगे ले जाए क्योंकि रूस ही ऐसा देश है जिसके उन सभी देशों से अच्छे संबंध हैं जो सीरिया के युद्ध के मैदान में मौजूद हैं। लेकिन एक आशंका ये भी है कि क्या रूस इस बार ऐसा कर पाएगा क्योंकि इजरायल और ईरान के मतभेद के मामले में उसकी डिप्लोमेसी फेल ही रही है। विश्लेषकों का कहना है कि ईरान ने सीरिया में बहुत निवेश कर रखा है और वो सब छोड़छाड़ कर जाने वाला नहीं है। ऐसे में ईरान द्वारा अपनी सेनाएं सीरिया से हटाने से इनकार करने और इजरायल द्वारा ईरान की विदाई पर अड़े रहने का नतीजा टकराव के रूप में ही सामने आएगा।
यह भी पढ़ें : अंतरिक्ष युद्ध की जद में दुनिया, अमेरिका जुटा नयी सेना बनाने में, नाम होगा स्पेस फोर्स
रूस की प्राथमिकता होगी कि सीरिया ने जिन इलाकों को फिर अपने कब्जे में ले लिया है वहां स्थितियां सामान्य की जाएं और देश छोड़ भाग गए ६० लाख शरणार्थियों को वापस लाया जाए। इसके अलावा सीरियायी सेना को फिर व्यवस्थित करने, बर्बाद हो गए देश में पुनर्निर्माण करने और असद सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने का काम भी रूस को ही करना हïोगा। रूस जानता है कि जिन इलाकों पर सरकारी सेनाओं ने फिर से कब्जा जमाया है वहां स्थितियां बेहद खतरनाक हैं और बड़े पैमाने पर बदले की कार्रवाई का अंदेशा बना हुआ है इसलिए पुनर्निर्माण का काम जल्दी से जल्दी शुरू होना है।
सीरियायी सरकार के लिए तात्कालिक प्राथमिकता बाकी बचे इलाकों को अपने नियंत्रण में लाना है और ये काम इदलिब प्रांत से शुरू होना है। सीरियायी सेना को दक्षिण से हटा कर अब इदलिब में जमा किया जा रहा है। वहीं तुर्की इस इलाके में रूस से समझौते के तहत बनायी गयी अपनी निगरानी चौकियों को मजबूत कर रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति इर्दोगन ने कहा है कि वो इदलिब को छुड़ाने के किसी भी प्रयास का मुकाबला करेंगे। ऐसा करके इर्दोगन सीरिया, रूस और ईरान के साथ टकराव का खतरा भी मोल ले रहे हैं।
भयंकर होगी लड़ाई
इदलिब की लड़ाई पिछली किसी भी लड़ाई से ज्यादा भयंकर होगी। सीरियायी सेनाओं ने जब अन्य इलाकों को अपने में कब्जे में लिया तो विद्रोही भाग कर इदलिब में जमा हो गए और अब इनकी तादाद ७० हजार बतायी जाती है। विपक्षी लड़ाकों का ये सबसे बड़ा जमावड़ा है। और इनमें से बड़ी संख्या अल कायदा के सहयोगी गुटों के लड़ाकों की है। इदलिब में करीब ३० लाख नागरिक भी हैं और इनमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो देश में अन्यत्र हो रही लड़ाई के कारण भाग कर यहां पहुंचे हैं। इदलिब पर हमले का एक नतीजा सीरिया में एक व्यापक मानवीय संकट के रूप में सामने आ सकता है। यानी लड़ाई के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में शरणार्थियों की नयी लहर तुर्की या यूरोप की ओर जा सकती है।