हवाई जहाज से भी तेज दौड़ेगी ट्रेन, रफ़्तार होगी 4000 किमी प्रति घंटा

Update:2017-09-08 15:35 IST

बीजिंग: 30 अगस्त को चीन के हुपेई प्रांत के वुहान में तीसरा चीनी (अंतर्राष्ट्रीय) वाणिज्यिक एयरोस्पेस शिखर मंच आयोजित हुआ। इसमें चीन एयरोस्पेस विज्ञान और उद्योग निगम (सीएएसआईसी) ने बताया कि एक हाई-स्पीड फ्लाईंग ट्रेन अनुसंधान और प्रदर्शन चरण में प्रवेश कर चुकी है। इस ट्रेन की अधिकतम गति 4000 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच सकेगी। इस ट्रेन में सुपरसोनिक अंतरिक्ष यान संबंधी प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाएगा। साथ ही यह ट्रेन कम वैक्यूम वाले पाइप लाइनों में चलेगी। अगर इस फ्लाईंग ट्रेन के यातायात नेटवर्क को हकीकत में जमीनी स्तर पर लागू कर दिया जाता है, तो इनसानों की यात्रा के ढंग में भारी बदलाव आ जाएगा।

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जहां भारत की रेल व्यवस्था पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है और आए दिन एक्सीडेंट होते रहते हैं। वहीं, चीन ट्रेन नेटवर्क के अपने 100 साल के सफर में बहुत ही आगे निकल गया है। गति और सुरक्षा के मामले में भारत अभी बहुत पीछे है।

अब चीन का हाई स्पीड फ्लाइंग ट्रेन प्रोजेक्ट सफल हो गया तो इसकी स्पीड हवाई जहाज से भी तीन गुना ज्यादा हो जाएगी। इस प्रोजेक्ट के लिए चीन एयरोस्पेस विज्ञान और उद्योग निगम ने 200 से ज्यादा पेटेंट तैयार किए हैं। इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाले इंजीनियर्स का पहला लक्ष्य ट्यूब सिस्टम से ट्रेन की स्पीड 1000 किमी प्रति घंटा तक पहुंचाने का है।

चीन की हाई स्पीड फ्लाइंग ट्रेन भी एलोन मास्क के हाइपरलूप की तरह ही है, जो वैक्यूम ट्यूब में दौड़ेगी। मास्क के हाइपरलूप ट्रेन की स्पीड सिर्फ 1,200 किमी प्रति घंटा है लेकिन चीन की हाई स्पीड फ्लाइंग ट्रेन की स्पीड तीन गुना ज्यादा है। हाइपरलूप ट्रेनचुंबकीय शक्ति पर आधारित तकनीक है। जिसके अंतर्गत खंभों के ऊपर (एलीवेटेड) पारदर्शी ट्यूब बिछाई जाती है। इसके भीतर बुलेट जैसी शक्ल की लंबी सिंगल बोगी हवा में तैरते हुए दौड़ती है।

इस द्रुतगति ट्रेन को सिर्फ चीन तक ही सीमित नहीं रखा जाएगा बल्कि कॉन्ट्रेक्टर्स ने इसे आने वाले समय में दक्षिण एशिया और मिडल ईस्ट समेत यूरोप और अफ्रीका तक पहुंचाने का प्लान है। हालांकि, उन्होंने इसके लिए कोई टाइमलाइन नहीं दी है। चीन की हाई स्पीड फ्लाइंग ट्रेन दुनिया की बुलेट ट्रेन की स्पीड से 10 गुना ज्यादा होगी।

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स्वर्ग की राह के रखवाले

चीन में छिंगहाई-तिब्बत रेलगाड़ी से यात्रा करने वाले पर्यटक कभी-कभार रेल रास्ते के पास यूनिफॉर्म पहने हुए लोगों को सलाम ठोंकते हुए देखते थे। ये लोग सिपाही तो नहीं कहे जा सकते पर संरक्षक जरूर कहे जा सकते हैं। ये हैं रेलवे ट्रैक के तटीय रास्ते, पुल और सुरंग पर गश्त लगाने और सुरक्षा जांच करने वाले मार्ग संरक्षण मजदूर। यूं कहें कि इनका काम है जहां जहां से रेलवे लाइन गुजरती है उसकी हिफाजत करना। लोग उन्हें 'स्वर्ग की राह का संरक्षक कहकर पुकारते हैं। चालीस किलोमीटर के छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग का सबसे दुर्गम इलाका थांगुला पर्वत के उत्तर में समुद्र तल से 5 हजार मीटर पर स्थित है।

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यह क्षेत्र इस रेल मार्ग में सबसे कठिन जलवायु स्थिति वाला है। इसे तिब्बत का उत्तरी द्वार माना जाता है। इस खंड के संरक्षक दल में 139 सदस्य स्थानीय तिब्बती चरवाहे हैं। इनकी औसत आयु 20 साल की है। वर्ष 2006 में छिंगहाई-तिब्बत रेल मार्ग पर यातायात शुरू हुआ था, तबसे लेकर अब तक पिछले 11 सालों में इस दल के सदस्यों ने सुरक्षित यात्रा की गारंटी दी है।

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दुनिया को जोड़ता चीन का रेल नेटवर्क

रेल तकनीक के मामले में चीन दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा है और अब दुनिया में चीन के रेल नेटवर्क का बोलबाला है। एक जुलाई 2006 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक ट्रेन पहुंचाकर चीन ने दुनिया को हैरान कर दिया था। समुद्र से 5,027 मीटर की ऊंचाई पर बना यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे नेटवर्क है। यही नहीन, चीन ने यूरोप, ईरान तक अपना ट्रेन नेटवर्क फैला दिया है।

अक्टूबर 2013 में चीन की मालगाड़ी हार्बिन शहर से चल कर, ट्रांस साइबेरियन रूट का इस्तेमाल करते हुए 9,820 किलोमीटर का सफर कर जर्मनी के तटीय शहर हैम्बर्ग पहुंची। दिसंबर 2014 में चीन की 82 बोगियों वाली मालगाड़ी औद्योगिक शहर यिवु से चल कर 13,000 किलोमीटर का सफर तय कर 9 दिसंबर को स्पेन की राजधानी मैड्रिड पहुंची। अपने रास्ते में इस ट्रेन ने रूस, जर्मनी और फ्रांस समेत 8 देशों को पार किया। आज चीन और यूरोप के बीच नियमित रूप से मालगाडिय़ां आती जाती हैं।

2015 में चीन ने म्यामांर की राजधानी यांगून और कुनमिंग शहर को रेल सेवा से जोडऩे का काम शुरू किया। 1,920 किलोमीटर लंबे इस रास्ते पर 140 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से ट्रेनें चलेंगी। चीन अब नेपाल तक रेल नेटवर्क का विस्तार करना चाहता है। दोनों देशों के बीच इस मसले पर बातचीत भी हो रही है। चीन चाहता है कि वह काठमांडू होते हुए पोखरा और लुम्बिनी तक रेल पहुंचाये। चीन नेपाल को तिब्बत से भी जोडऩा चाहता है।

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