तुर्की में नई आफत, प्रेसिडेंट एर्दोगन की जिद से देश की मुद्रा का हुआ बंटाधार

Turkey News: तुर्की में महंगाई आसमां छू रही है। यहां सब कुछ महंगा हो गया है। देश की करेंसी यानी लीरा बहुत तेजी से नीचे गिर रही है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Chitra Singh
Update:2021-11-30 14:01 IST

 प्रेसिडेंट एर्दोगन (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Turkey News: मुद्रास्फीति या महंगाई (Inflation) से अचानक दुनिया के तमाम देश घिर गए हैं। भारत में पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान पर हैं, यूरोप में बिजली बिल से लोग त्रस्त हैं, अमेरिका में खाने की चीजें बहुत महंगी हो गयी हैं। लेकिन तुर्की ऐसा देश है जहाँ सब कुछ महंगा हो गया है और जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। देश की करेंसी यानी लीरा (Turkey Currency Lira) बहुत तेजी से नीचे गिर रही है और बीते एक साल में इसकी वैल्यू (turkish lira currency rate) चालीस फीसदी घट गयी है। अब आलम ये है कि शायद लीरा को दुनिया की सबसे बेकार करेंसी का तमगा मिल जाए। लीरा के ये हालत किसी अन्य वजह से नहीं बल्कि तुर्की के प्रेसिडेंट रेसेप तय्यिप एर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) की जिद्दी नीतियों की वजह से हुई है।

एर्दोगन का मानना है कि ब्याज दरें नीचे रहें। उनकी नीति है कि व्यवसाइयों को सस्ती दरों पर लोन मिले ताकि उनको अपना बिजनेस बढ़ाने में मदद मिले। ये तर्क तो सही है लेकिन जब करेंसी पाहे से ही कमजोर हो तो मामला गड़बड़ हो जाता है। और यही हो रहा है। कम ब्याज दर ने मुद्रा का फ्लो बहुत बढ़ा दिया है और बाजार में नकदी का ओवरफ्लो हो गया है। इसके नतीजे में निवेशक अपना हाथ खींच रहे हैं और जो भी नकदी उनके पास है उसे वह डंप करे में लग गए हैं। इन सबका नतीजा लीरा की बेतहाशा घटती वैल्यू के रूप में सामने आये।

किसी भी चीज की अधिकता अच्छी नहीं होती, ये बात सब जगह लागू होती है। यही बात करेंसी के मामले में है, अगर बाकी चीजें समान रहें तो मुद्रा की वैल्यू अपनी चमक खो देती है और ऐसा होने पर मुद्रास्फीति शुरू हो जाती है। अर्थशास्त्री ऐसी स्थिति में जरुरत से ज्यादा सप्लाई को समेटने की सलाह देते हैं ताकि करेंसी को स्थायित्व दिया जा सके। इसके लिए ब्याज दरें बढ़ा दी जाती हैं और लोन लेना कठिन बना दिया जाता है। पहले यही तरकीब तुर्की और अन्य देशों में मुद्रास्फीति को कंट्रोल करने के लिए आजमाई जा चुकी है।

रेसेप तय्यिप एर्दोगन (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

लेकिन एर्दोगन का दिमाग दूसरी तरह से चल रहा है। वे ऊंची ब्याज दरों के कट्टर विरोधी रहे हैं और अब भी उनका मानना है कि मुद्रास्फीति को कंट्रोल करने का उपाय ब्याज दर घटाते जाना है। एर्दोगन का कहना है कि नीची ब्याज दर से होने वाली आर्थिक ग्रोथ के चलते तुर्की हर तरह का प्रोडक्शन बढ़ा लेगा और इससे अंततः मुद्रास्फीति कम हो जायेगी। ये एर्दोगन का निजी अर्थशास्त्र है औरए उनके देश की मुद्रा को चौपट किये हुए है। देश के केंद्रीय बैंक के तीन गवर्नरों को एर्दोगन ने सिर्फ इसीलिए बर्खास्त कर दिया है क्योंकि वे ब्याज दर बढाने की कोशिश कर रहे थे। एर्दोगन की नीतियों पर सवाल उठाने वाले अधिकारियों को भी तत्काल हटा दिया जाता है।

खाना-पीना हुआ मुहाल

एर्दोगन की जिद का नतीजा ये है कि तुर्की के कामकाजी लोग रोजमर्रा की जरूरत की चीजें तक खरीद नहीं पा रहे हैं। युवा प्रोफेशनल्स देश छोड़ कर भाग रहे हैं। मासिक न्यूनतम मजदूरी 380 डॉलर से घट कर 220 डॉलर रह गयी है। लेकिन सरकारी प्रचार तंत्र एर्दोगन की नीतियों के फायदे गिना रहा है। टीवी पर बताया जाता है कि न्यूनतम वेतन घट जाने से विदेशी कम्पनियाँ तुर्की में प्रोडक्शन करने लगेंगी, एर्दोगन के एपर्टी के एक संसद ने तो कहा है कि लोगों को अब कम खाना चाहिए।

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