Bangladesh Quota Protest: क्या है आरक्षण आंदोलन, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री शेख हसीना को देना पड़ा इस्तीफा
Bangladesh Quota Protest: बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30 फीसदी आरक्षण दिया गया था। इसी के विरोध में देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के 21 जुलाई के फैसले के बाद माना जा रहा था कि विरोध प्रदर्शन खत्म हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
Bangladesh Quota Protest: बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर शुरू हुआ आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। छात्रों के इस आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। वहीं विपक्षी पार्टियां भी इस आंदोलन में शामिल हो गईं। यह हिंसक आंदोलन दिन प्रतिदिन और उग्र होता गया और इसका नजीता यह रहा कि सोमवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ गया और देश भी छोड़ना पड़ गया। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा जमा लिया है। वहीं शेख हसीना ने बांग्लादेश छोड़ दिया और भारत आ गईं। यहां से वह लंदन जाएंगी। वहीं देश के हालात पर सेना प्रमुख ने बयान जारी करते हुए प्रदर्शनकारियों से संयम बरतने की अपील की है।
इससे पहले रविवार को सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन एक बार फिर उग्र रूप ले लिया। इस हिंसक आंदोलन में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। हिंसा को रोकने के लिए देश में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई, पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया। सरकार ने तीन दिन की सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी। इन सब के बावजूद भी हालात काबू में नहीं आ सके। देश में जारी हिंसा के चलते भारत, अमेरिका समेत कई देशों ने अपने नागरिकों के लिए नई एडवाइजरी जारी कर दी। उधर संयुक्त राष्ट्र संगठन ने भी हिंसा पर चिंता जताते हुए इसे तत्काल रोकने की अपील की है।
लेकिन एक बार फिर भड़क उठी हिंसा की आग
पिछले महीने देश की सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण की अधिकांश व्यवस्था को खत्म कर दिया था। शीर्ष अदालत के आदेश के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि बांग्लादेश में अब विरोध प्रदर्शन खत्म हो जाएंगे, लेकिन एक बार फिर हिंसा की आग फैल गई और स्थिति बिगड़ती चली गई।
आइये यहां जानते हैं कि आखिर दोबारा बांग्लादेश में क्यों भड़क उठा आरक्षण आंदोलन? कब और कैसे शुरू हुआ यह आंदोलन? क्या है देश की आरक्षण व्यवस्था जिसका हो रहा है विरोध? अब तक इस प्रदर्शन में क्या-क्या हुआ? और क्या है प्रदर्शनकारियों की मांग?
सबसे पहले बांग्लादेश में अभी हो क्या रहा है?
देश में जारी हिंसा के बीच सोमवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी बहन के साथ ढाका छोड़कर चली गईं। उनके देश छोड़ने के बाद पद से इस्तीफे की अटकलें लग रही हैं। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा जमा लिया है।इससे पहले रविवार यानी 4 अगस्त 2024 को देश भर में हुई हिंसा में करीब 100 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए। पुलिस ने हजारों प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाईं, जिसके चलते ये मौतें हुईं। रविवार को हुई मौतों में कम से कम 14 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।
यह आंकड़ा देश के हाल के इतिहास में किसी भी विरोध प्रदर्शन में एक दिन में सबसे अधिक है। इससे पहले 19 जुलाई को 67 लोगों की मौत हुई थी। उत्तर-पश्चिमी शहर सिराजगंज के इनायतपुर थाने पर हुए हमले में 13 पुलिसकर्मी मारे गये। बताया गया कि रविवार की दोपहर कुछ लोगों ने थाने हमला कर दिया। कुछ जगहों पर सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच झड़प भी हुई है। कुछ जगहों पर अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और नेताओं की मौत भी हुई है।उसके बाद रविवार शाम से पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया, रेलवे ने अपनी सेवाएं निलंबित कर दीं और देश का वस्त्र उद्योग बंद कर दिया गया। सरकार ने रविवार को शाम छह बजे से अनिश्चितकालीन राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू की घोषणा की और सोमवार से तीन दिन की सार्वजनिक छुट्टी की भी घोषणा की।
इंटरनेट भी किया बंद
मोबाइल ऑपरेटरों ने बताया कि हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान यह दूसरी बार है जब सरकार ने हाई-स्पीड इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक और व्हाट्सएप भी ब्रॉडबैंड कनेक्शन के जरिए उपलब्ध नहीं हैं। जुलाई में छात्र समूहों द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू करने के बाद हुई हिंसा में 300 से ज्यादा लोग मारे गए और हजारों घायल हुए हैं।
कैसे शुरू हुई थी हिंसा?
आज जो हिंसा हो रही है उसकी कहानी 1971 से शुरू होती है। ये वो साल था जब मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली। एक साल बाद 1972 में बांग्लादेश की सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण दे दिया। इस समय इसी आरक्षण के विरोध में बांग्लादेश में प्रदर्शन हो रहे हैं।
यह विरोध-प्रदर्शन जून के अंत में शुरू हुआ था तब यह हिंसक नहीं था। हालांकि, मामला तब बढ़ गया जब इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग सड़क पर उतर आए। 15 जुलाई को ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से तीखी झड़प हो गई। इस घटना में कम से कम 100 लोग घायल हो गए।
अगले दिन भी हिंसा जारी रही और कम से कम छह लोग मारे गए। 16 और 17 जुलाई को और झड़पें हुईं और प्रमुख शहरों की सड़कों पर गश्त करने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया। 18 जुलाई को कम से कम 19 और लोगों की मौत हो गई जबकि 19 जुलाई को 67 लोगों की जान चली गई। इस तरह से इस हिंसक आंदोलन के चलते अब तक 300 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है।
आरक्षण 1972 में दिया गया तो आंदोलन अभी क्यों?
सरकार ने 1972 से जारी इस आरक्षण व्यवस्था को 2018 में समाप्त कर दिया था। जून में उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया। कोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के फैसले को भी गैर कानूनी बताया। कोर्ट के आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
हालांकि, शेख हसीना सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार की अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित कर दिया और मामले की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर दी।
हसीना ने नहीं मानी बात और तूल पकड़ता गया मामला
इस मामले ने तूल और तब पकड़ लिया जब प्रधानमंत्री हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया। सरकार के इस कदम के चलते छात्रों ने अपना विरोध-प्रदर्शन और तेज कर दिया। प्रधानमंत्री ने प्रदर्शनकारियों को रजाकार की संज्ञा दी। दरअसल, बांग्लादेश के संदर्भ में रजाकार उन्हें कहा जाता है जिन पर 1971 में देश के साथ विश्वासघात करके पाकिस्तानी सेना का साथ देने के आरोप लगा था।
क्या है आरक्षण व्यवस्था जिस पर बवाल हो रहा है?
इस विरोध-प्रदर्शनों के केंद्र में बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था है। इस व्यवस्था के तहत स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। 1972 में शुरू की गई बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था में तब से कई बदलाव हो चुके हैं। 2018 में जब इसे खत्म किया गया, तो अलग-अलग वर्गों के लिए 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियों में आरक्षण था। समय-समय पर हुए बदलावों के जरिए महिलाओं और पिछड़े जिलों के लोगों को 10-10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसी तरह पांच फीसदी आरक्षण धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए और एक फीसदी दिव्यांग कोटा दिया गया। हालांकि, हिंसक आंदोलन के बीच 21 जुलाई को बांग्लादेश के शीर्ष न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में अधिकतर आरक्षण खत्म कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या सुनाया फैसला?
21 जुलाई को देश की सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया, जिसके तहत सभी सिविल सेवा नौकरियों के लिए दोबारा आरक्षण लागू कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय में, यह निर्धारित किया गया कि अब केवल पांच फीसदी नौकरियां स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित होंगी। इसके अलावा दो फीसदी नौकरियां अल्पसंख्यकों या दिव्यांगों के लिए आरक्षित होंगी। वहीं बाकी बचे पदों के लिए कोर्ट ने कहा कि…