Swami Narayan Temple: गुजरात के सबसे पहले स्वामी नारायण मंदिर का UP के इस जिले से है कनेक्शन, देखें Y-Factor

Y - Factor | गुजरात के सबसे पहले स्वामी नारायण मंदिर का UP के इस जिले से है कनेक्शन...

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2021-04-19 19:24 IST

Swami Narayan Temple: स्वामिनारायण या सहजानन्द स्वामी हिंदू धर्म के स्वामिनाथ संप्रदाय के संस्थापक हैं। भागवत पुराण, स्कंद पुराण व पद्म पुराण में स्वामिनारायण के अवतार का संकेत मौजूद है। शिक्षापत्री स्वामिनारायण संप्रदाय का मूल ग्रंथ है। इनका जन्म 2 अप्रैल, 1781 को हुआ था। 1 जून, 1830 को उनका निधन हुआ।

स्वामिनारायण सर्व अवतारों के अवतारी है। अयोध्या के पास गोण्डा जिले के छपिया ग्राम में उनका पृथ्वी पर अवतरण हुआ।यहाँ आज भी स्वामीनारायण मन्दिर है, जहाँ मेला लगता है। वर्तमान में यह गाँव स्वामीनारायण छपिया के नाम से जाना जाता है। जन्म के समय रामनवमी होने से सम्पूर्ण क्षेत्र में पर्व का माहौल था। पिता श्री हरिप्रसाद पांडेय व माता भक्तिदेवी ने उनका नाम घनश्याम पांडेय रखा। बालक के हाथ में पद्म और पैर में बज्र, ऊर्ध्वरेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि बालक लोगों के जीवन को सही दिशा देगा।

पांच वर्ष की अवस्था में बालक को अक्षरज्ञान दिया गया। आठ वर्ष का होने पर जनेऊ संस्कार हुआ। जब वह ग्यारह वर्ष के थे तभी माता व पिता का देहांत हो गया। लोगों के कल्याण के लिए उन्होंने घर छोड़ दिया। सात साल तक देश की परिक्रमा की।वह उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची, श्रीरंगपुर, रामेश्वरम् आदि तक गये। पंढरपुर व नासिक होते हुए वे गुजरात आ गये। लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे।

एक दिन वह मांगरोल के पास 'लोज' गांव पहुंचे। वहां उनका परिचय स्वामी मुक्तानंद से हुआ। वह स्वामी रामानंद के शिष्य थे। नीलकंठवर्णी स्वामी रामानंद का दर्शन चाहते थे। रामांनद जी भी प्रायः भक्तों से कहते थे कि असली नट तो अब आएगा। मैं तो आगमन से पूर्व डुगडुगी बजा रहा हूं। रामांनद जी ने उन्हें स्वामी मुक्तानंद के पास भेजा।

स्वामी मुक्तानंद कथा करते थे।जिसमें स्त्री तथा पुरुष दोनों आते थे। उन्होंने देखा कई श्रोताओं और साधुओं का ध्यान कथा की ओर न होकर महिलाओं की ओर होता है। अतः उन्होंने प्रयासपूर्वक महिला कथावाचकों को भी तैयार किया। कुछ समय बाद स्वामी रामानंद ने नीलकंठवर्णी को पीपलाणा गांव में दीक्षा देकर उनका नाम 'सहजानंद' रख दिया। एक साल बाद जेतपुर में उन्होंने सहजानंद को अपने सम्प्रदाय का आचार्य पद भी दिया। स्वामी सहजानंद ने गांव-गांव घूमकर सबको स्वामिनारायण मंत्र जपने को कहा।वह अपने शिष्यों को पांच व्रत लेने को कहते थे। इनमें मांस, मदिरा, चोरी, व्यभिचार का त्याग तथा स्वधर्म के पालन की बात होती थी।

उन्होंने यज्ञ में हिंसा, बलिप्रथा, सतीप्रथा, कन्या हत्या, भूत बाधा जैसी कुरीतियों को बंद कराया। उनका कार्यक्षेत्र गुजरात रहा। उन्होंने गोपालयोगी से अष्टांग योग सीखा। स्वामिनारायण जी ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, इनके निर्माण के समय वे स्वयं सबके साथ श्रमदान करते थे। स्वामिनारायण संप्रदाय का पहला मंदिर अहमदाबाद में 24 फरवरी, 1822 को बर्मी टीक की लकड़ी से बनाया गया। यह खूबसूरत नक्काशीदार मंदिर है। अंग्रेजों के शासन काल में इसे स्वामी आदिनाथ ने बनवाया था।

यहां पर धार्मिक ग्रंथों में उल्लितखित कई आकृतियां उकेर कर उनमें खूबसूरत रंग भरे गए हैं। स्वामिनारायण ने कई मूर्तियां अपने पूजाघर से लाकर इस मंदिर में स्थापित कीं। इस मंदिर में कई धर्मो का प्रदर्शन होता है, उनके भगवान यहां विराजमान हैं। मंदिर की खासियत यह है कि इसमें महिलाओं के लिए विशेष भाग है । जहां उनके लिए शिक्षा का प्रबंध है। जहां समारोह आयोजित किये जाते हैं। नर नारायण इस मंदिर के प्रमुख देवता हैं।स्वामिननारायण सम्प्रदाय पूर्व में उद्धव सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता था। इसे स्वामिनारायण ने स्थापित किया।

स्वामिनारायण सम्प्रदाय वेद के ऊपर स्थापित है। शिक्षापतरी और वचनामृत स्वामीनारायण सम्प्रदाय की मूल सीखें हैं। स्वामीनारायण ने छः मन्दिर बनाए थे। मृत्यु के पहले स्वामिनारायण ने स्वामिनारायण सम्प्रदाय के दो विभाग बनाए, पहला, नर-नारायण देव गाड़ी, जो अहमदावाद से चलाई जाती हैं। दूसरा, लक्ष्मी नारायण देव गाड़ी, जो वाड़ताल से चलाई जाती हैं। इन दोनों विभाग का प्रमुख, स्वामिनारायण ने अपने दो भांजों को एक पत्र, देश विभाग लेख की शक्ति से बनाया था। जिसे मुम्बई उच्च न्यायालय ने स्वामिनारायण की वसीयत माना है। इन दोनों की पीढ़ी इन दोनों विभागों के आचार्य के रूप में इस कार्य को आगे बढ़ा रही है।

कहते हैं अहमदाबाद का यह स्वामिनारायण संप्रदाय का पहला मंदिर जब बन रहा था तब अंग्रेज बहुत प्रभावित हुए । उन्होंने मंदिर का विस्तार करने के लिए और भूमि दी। तब स्वामिनारायण संप्रदाय के लोगों ने उनका आभार प्रकट करने के लिए मंदिर के वास्तुशिल्प में औपनिवेशिक शैली का प्रयोग किया। पूरी इमारत ईंटों से बनी है। हर मेहराब को चमकीले रंगों से रंगा गया है।

इस मंदिर में हनुमानजी और गणेशजी की विशाल व बहुत ही सुंदर मूर्तियां प्रवेश करते ही दायीं-बायीं ओर लगी हैं। इसके साथ ही यहां निकटवर्ती हवेली में, महिलाओं के लिए एक विशेष खंड है, एक ऐसा क्षेत्र है, जहां केवल महिलाओं के लिए समारोह और शिक्षण सत्र आयोजित किए जाते हैं। मंदिर में पांच बार पूजा होती है। पांच बार भगवान के वस्त्र बदले जाते हैं।आज उनके अनुयायी विश्व भर में फैले हैं। वे मंदिरों को सेवा व ज्ञान का केन्द्र बनाकर काम करते हैं।शिक्षापत्री, वचनामृतम्, सत्संगीजीवन व भक्तचिंतामणी (गुजराती) में लिखीं।

दिल्ली में बना स्वामिनारायण अक्षरधाम मन्दिर एक अनोखा सांस्कृतिक तीर्थ है। इसे ज्योतिर्धर भगवान स्वामिनारायण की पुण्य स्मृति में बनवाया गया है। यह परिसर 100 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। दुनिया का सबसे विशाल मंदिर परिसर होने के नाते 26 दिसम्बर, 2007 को यह गिनीज़ बुक ऑफ वर्ड रिकार्डस में शामिल किया गया।

दक्षिण भारत में वास्तु का नींव परंपरागत महान साधु मायन क़ौम जिम्मेदार माना जाता है। उत्तर भारत में विश्वकर्मा को जिम्मेदार माना जाता है।गिनीज व‌र्ल्ड रिकार्ड की मुख्य प्रबंध समिति के माइकल विटी ने बोछासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामी नारायण संस्थान को व्यक्ति विशेष द्वारा सर्वाधिक हिंदू मंदिरों के निर्माण तथा दुनिया का सर्वाधिक विशाल मंदिर परिसर की श्रेणी में दूसरी बार अपनी किताब में दर्ज किया।

प्रमाणपत्र में कहा गया है-प्रमुख स्वामी महाराज अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक नेता हैं। बीएपीएस स्वामिनीरीय। वह संस्थान के प्रमुख हैं। उन्होंने अप्रैल, 1971 से नवंबर, 2007 के बीच पांच महाद्वीपों में 713 मंदिरों का निर्माण करने का विश्व रिकार्ड बनाया। दिल्ली का बीएपीएस स्वामीनारायण अक्षरधाम मन्दिर दुनिया का विशालतम हिंदू मन्दिर परिसर है। अक्षरधाम की व्यापक वास्तुशिल्प योजना का अध्ययन तथा अन्य मन्दिर परिसरों से उसकी तुलना और निरीक्षण करने में गिनीज़ की टीम को तीन माह का समय लगा।

दिल्ली स्थित अक्षरधाम मंदिर 86342 वर्ग फुट में फैला है। यह 356 फुट लंबा 316 फुट चौड़ा तथा 141 फुट ऊंचा है। गुलाबी पत्थर और सफेद संगमरमर से बना, मुख्य मंदिर स्टील के उपयोग के बिना बनाया गया था। नक्काशीदार स्तंभों, गुंबदों और 20,000 मूर्तियों के साथ सजाया गया मन्दिर अत्यन्त दिव्य है।मंदिर में ऑडियो- एनिमेट्रॉनिक्स शो के द्वारा ज्ञान और सजीव जीवन का सच्चा अर्थ और सामंजस्य आदि के अभ्यास का संदेश दिया जाता है।

यहां कि विशाल फ़िल्म स्क्रीन पर छह से अधिक कहानियों पर बनी फिल्मों के माध्यम से नीलकंठ यात्रा को दिखाया जाता है। अक्षरधाम में नाव की सवारी करते हुए बारह मिनट में भारतीय विरासत के 10,000 वर्षों की जानकारी दी जाती है। आप इसमें वैदिक जीवन से तक्षशिला तक और प्राचीन खोजों के युग आदि सभी का अनुभव प्राप्त करेंगे। यहाँ का संगीतमय फव्वारा भगवान, मनुष्य और प्रकृति के बीच परस्पर निर्भरता प्रदर्शित करता है।यह एक निराला अनुभव है। पीतल की मूर्तियों के साथ सुसज्जित बगीचे और घास के मैदान इस पूरे परिसर को आकर्षक बनाते हैं। योगिहृदय कमल एक विशेष कमल है जो शुभ भावनाओं को दर्शाता है।अभिषेक मंडप में नीलकंठ वर्णी की मूर्ति का जलाभिषेक भजन व प्रार्थना के बीच किया जाता है ।

श्रद्धालु भी चाहें तो मूर्ति का अभिषेक कर सकते हैं। यहाँ सहज आनंद वाटर शो चलता तो केवल चौबीस मिनट ही है पर इसमें केना उपनिषद से संबंधित कहानियों को दिखाने के लिए मीडिया के विभिन्न माध्यमों का उपयोग किया जाता है। कई रंग के लेजर, पानी के नीचे की लपटें, चलचित्र सामग्री और पानी की तेज धारें इस शो को बहुत आकर्षक बनाती है।

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