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तबाही से मचा हाहाकार: 40 लाख आबादी हुई त्रस्त, हर तरह आफत ही आफत

असम में बाढ़ और कोरोना की दोहरी मार के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। लोगों को बुनियादी सुविधाओं के अलावा पेट भरने को खाना तक मयस्सर नहीं है।

Newstrack
Published on: 17 July 2020 10:09 AM GMT
तबाही से मचा हाहाकार: 40 लाख आबादी हुई त्रस्त, हर तरह आफत ही आफत
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असम। असम में बाढ़ और कोरोना की दोहरी मार के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। लोगों को बुनियादी सुविधाओं के अलावा पेट भरने को खाना तक मयस्सर नहीं है। ऐसे में कोरोना से बचने के लिए मुंह पर मास्क लगाना और दो गज़ की दूरी बनाना किसको याद रह सकता है।राज्य में बाढ़ की स्थिति काफी भयानक है जिसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के 33 में 27 ज़िले बाढ़ का प्रकोप झेल रहे हैं।

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सरकारी आंकड़ों की मानें तो 3218 गांव में पानी घुस चुका है जिससे करीब 40 लाख की आबादी प्रभावित हुई है। वहीं अब तक 71 से अधिक लोग इसमें डूबकर अपनी जान गंवा चुके हैं,करीब 26 लोग भूस्खलन में मारे गए हैं और ना जाने कितने लापता हैं।

गम्भीर है स्थिति-

असम राज्य आपदा प्रबंधन के अधिकारी बताते हैं कि वैसे तो असम में हर साल बाढ़ आती है पर इस साल बाढ़ का प्रकोप कुछ ज्यादा ही है। कुछ इलाकों में पानी का स्तर घटा है पर काफी क्षेत्रों में अब भी पानी खतरे के निशान से ऊपर है।

उनके मुताबिक जो गांव पानी में डूब गए हैं वहां के लोगों को राहत शिविरों में रखा गया है।उनकी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के साथ ही कोरोना की गाइडलाइन फालो करने की कोशिश भी की जा रही है।

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क्या हैं राहत के इंतज़ाम

असम आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक 23 ज़िलों में 748 राहत शिविर लगाए हैं ।वहीं राहत केंद्रों की संख्या करीब 300 है।इन शिविरों में लगभग 50 हज़ार लोगों को पनाह दी गई है।

हालांकि काफी लोग बाढ़ में फंसे होने और प्रशासन की तरफ से कोई राहत ना मिलने की शिकायत भी कर रहे हैं।कुछ लोगों की शिकायत है घरों में पानी भरने से बच्चे तक उसमें फंसे हुए हैं पर प्रशासन की तरफ से जो इंतज़ाम हैं वह ऊंट के मुंह में ज़ीरे की तरह हैं।

लोगों का कहना है कि प्राशासन ने सिर्फ एक बार हर व्यक्ति को एक किलो चावल और 200 ग्राम दाल के हिसाब से मदद की थी ।पर उसके बाद से प्रशासन ने अपनी आंखें मूंद ली हैं।

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असम की बाढ़ की सबसे बड़ी त्रासदी-

असम में हर साल बाढ़ आती है पर वहां की सरकारें बाढ़ खत्म होने के बाद उससे हुए नुक्सान का आंकलन करने की प्रक्रिया शुरु करती हैं।लेकिन जब तक यह आंकलन पूरा हो सके तब तक अगली बाढ़ आ जाती है ।

नागरिकों का आरोप है कि सुस्त रफ्तार से चल रही इस सरकारी प्रक्रिया के चलते ना तो उन्हें राहत मिल पाती है और ना ही बाढ़ से बचाव हो पाता है।

क्यों आती है हर साल बाढ़—

केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक जोरहाट,गुवाहाटी, तेजपुर, समेत कई इलाकों में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।

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बरपेटा ज़िले में बाढ़ की तबाही को एक और कारण ने ज्यादा तक बना दिया है। भूटान के कुरिचू हाइड्रो पावर प्लांट से बीते दस दिनों से लगातार पानी छोड़ा जा रहा है।जिस वजह से ने और विकराल रूप ले लिया है।

कहा जा रहा हि भूटान रोज़ाना 1000 से 1500 क्यूसेक पानी छोड़ रहा है।इतना ही नहीं ब्रह्मपुत्र नदी के खतरे के निशान से ऊपर बहने का एक कारण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग भी है। जानकारों की मानें तो ग्लोबल वार्मिंग से तिब्बत के पठारों पर जमी बर्फ पिघल रही है जिससे ब्रह्मपुत्र ,उसकी सहायक नदियों और उनपर बने बांधों में जलस्तर बढ़ जाता है।

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