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बिहार चुनाव के नतीजे: देंगे बड़ा सियासी संदेश, इन दो राज्यों पर पड़ेगा सीधा असर

बिहार में पहले चरण के मतदान की तारीफ अब नजदीक आने लगी है। 28 अक्टूबर को पहले चरण का मतदान होना है। पहले चरण के मतदान वाली सीटों पर चुनाव प्रचार अंतिम दौर में पहुंचता दिख रहा है।

Shivani
Published on: 22 Oct 2020 5:00 AM GMT
बिहार चुनाव के नतीजे: देंगे बड़ा सियासी संदेश, इन दो राज्यों पर पड़ेगा सीधा असर
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव की बाजी जीतने के लिए सभी सियासी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। वैसे तो चुनाव मैदान में कई गठबंधन जीतने की कोशिश में जुटे हुए हैं मगर मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है। जदयू भाजपा गठबंधन के साथ राजद और कांग्रेस ने भी इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है।

सियासी जानकारों का कहना है कि बिहार चुनाव के नतीजे काफी दूरगामी संदेश देने वाले साबित होंगे। अगले साल पश्चिम बंगाल और असम में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी इन नतीजों का असर पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

बिहार में चुनाव प्रचार ने पकड़ा जोर

बिहार में पहले चरण के मतदान की तारीफ अब नजदीक आने लगी है। 28 अक्टूबर को पहले चरण का मतदान होना है। पहले चरण के मतदान वाली सीटों पर चुनाव प्रचार अंतिम दौर में पहुंचता दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शुक्रवार से चुनावी रैलियों के जरिए मतदाताओं से रूबरू होंगे। यह तय माना जा रहा है कि पीएम मोदी के प्रचार में उतरने के साथ ही चुनाव अपने पूरे शबाब पर होगा।

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सभी दलों के बड़े नेता मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। चुनावी घोषणा पत्र में बड़े-बड़े वादे किए जा रहे हैं ताकि चुनावी बाजी को अपने पक्ष में किया जा सके।

पश्चिम बंगाल और असम पर पड़ेगा असर

कोरोना संकटकाल में हो रहे बिहार विधानसभा चुनावों पर सबकी नजर टिकी हुई है। इसका कारण यह माना जा रहा है कि बिहार से निकला सियासी संदेश काफी असर डालने वाला साबित होगा।

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अगले साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे निश्चित रूप से पश्चिम बंगाल और असम पर काफी असर डालने वाले साबित होंगे।

ममता की नजर भी चुनावी नतीजों पर टिकी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नजर भी बिहार चुनाव पर टिकी हुई है। हालांकि उनकी पार्टी बिहार में दावेदार नहीं है मगर वे राजद, कांग्रेस और वाम दलों के गठबंधन का प्रदर्शन जरूर देखना चाहती हैं।

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पश्चिम बंगाल में भाजपा से ममता बनर्जी को कड़ी चुनौती मिल रही है। दूसरी और असम में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुख्य मुकाबला होना है। यही कारण है कि भाजपा ने बिहार में पूरी ताकत झोंक दी है।

बिहार में सभी दलों ने झोंकी पूरी ताकत

बिहार में हालांकि इस बार लोजपा ने एनडीए से अलग रास्ता अख्तियार कर लिया है मगर भाजपा और जदयू ने हम और वीआईपी को गठबंधन में शामिल करके लोजपा की कमी पूरा करने की कोशिश की है।

Bihar_election

नीतीश कुमार ताबड़तोड़ रैलियां करके चुनावी माहौल को एनडीए के पक्ष में करने की कोशिश में जुटे हुए हैं तो दूसरी ओर महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव भी जोरदार बैटिंग कर रहे हैं। तेजस्वी की जनसभाओं में उमड़ रही भीड़ दूसरे दलों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।

लोकसभा चुनाव के बाद सिर्फ हरियाणा में जीत

पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जोरदार जीत दर्ज करने वाली भाजपा उसके बाद सिर्फ किसी तरह हरियाणा की सत्ता हासिल करने में ही कामयाब हो चुकी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव लोग से आपके हाथों को हार का सामना करना पड़ा।

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ऐसे में अगर बिहार की सत्ता एनडीए के हाथों से निकली तो निश्चित रूप से इसका असर पश्चिम बंगाल पर भी पड़ेगा। ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी भी भाजपा के खिलाफ जोरदार बैटिंग में जुट जाएंगी मगर यदि एनडीए चुनावी बाजी जीतने में कामयाब रहा तो निश्चित रूप से ममता के लिए भाजपा की चुनौतियां काफी बढ़ जाएंगी।

PM MODI

हिंदी भाषी मतदाताओं पर पकड़ बनाने की कोशिश

पश्चिम बंगाल में हिंदी भाषियों ने ममता की चुनौती पहले ही बढ़ा रखी है। राज्य में हिंदी भाषियों की तादाद करीब 13 फ़ीसदी मानी जाती है और इनमें भी अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले हैं। इनकी संख्या करीब 8 फ़ीसदी है। हिंदी भाषी मतदाता आमतौर पर क्षेत्री दलों की जगह राष्ट्रीय पार्टियों को मत देना ज्यादा पसंद करते रहे हैं।

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पश्चिम बंगाल में जब तक कांग्रेस मजबूत थी तो उसे इन हिंदी भाषियों का समर्थन मिलता रहा है मगर कांग्रेस के कमजोर होने के कारण यह वर्ग अब भाजपा की ओर खिसक चुका है।

ममता बनर्जी का सियासी दांव

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंदी भाषा मतदाताओं और खासकर बिहारी लोगों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में जुटी हुई हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने पार्टी में हिंदी सेल बनाने के साथ ही छठ पूजा का आयोजन करने का भी फैसला किया है।

सूत्रों के मुताबिक यही कारण है कि तृणमूल कांग्रेस के लोगों को उम्मीद है कि इस बार पार्टी हिंदी भाषी मतदाताओं का भी समर्थन पाने में कामयाब होगी। सियासी जानकारों के अनुसार ऐसी स्थिति में यदि भाजपा को बिहार में जीत हासिल होती है तो ममता की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

असम में भी दिखेगा चुनाव नतीजों का असर

पश्चिम बंगाल के साथ ही असम विधानसभा चुनावों पर भी बिहार के चुनावी नतीजों का असर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। असम विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला होना है।

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बिहार में जदयू और भाजपा को मिली जीत असम में भाजपा को हौसला बढ़ाने वाली साबित होगी। बिहार में राजद और कांग्रेस के गठबंधन को बढ़त हासिल होने पर कांग्रेस निश्चित रूप से असम में भाजपा को घेरने में कामयाब होगी।

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