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विटामिन-डी की कमी से लोगों की जान ले रहा कोरोना, कई देशों में हुई स्टडी का नतीजा
चिकित्सा विशेषज्ञों की तमाम कोशिशों के बावजूद पूरी दुनिया में कोरोना से होने वाली मौतों का सिलसिला नहीं थम रहा। पूरी दुनिया में कोरोना से संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्या करीब 11 लाख पहुंच चुकी है।
अंशुमान तिवारी
लखनऊ। चिकित्सा विशेषज्ञों की तमाम कोशिशों के बावजूद पूरी दुनिया में कोरोना से होने वाली मौतों का सिलसिला नहीं थम रहा। पूरी दुनिया में कोरोना से संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्या करीब 11 लाख पहुंच चुकी है और इस किलर वायरस ने अब तक करीब साठ हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। इस बीच एक स्टडी में इस वायरस से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण विटामिन-डी की कमी को बताया गया है।
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भारत के लिए महत्वपूर्ण है यह स्टडी
स्टडी में यह भी बताया गया है कि शरीर में विटामिन-डी की कमी को दूर करके इस वायरस से खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है। यह स्टडी भारत के लिहाज से और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि देश की बहुत बड़ी आबादी विटामिन-डी की कमी से जूझ रही है।
तमाम देशों के मरीजों पर हुई स्टडी
इस अध्ययन में दुनिया के कई देशों के अस्पतालों में 12 फरवरी से 16 मार्च के बीच भर्ती हुए तमाम मरीजों की पड़ताल की गई। अध्ययनकर्ता लंदन के डॉक्टर ब्राउन और डॉक्टर सरकार ने खासतौर पर आईसीयू में भर्ती गंभीर मरीजों की जांच रिपोर्ट की बारीकी से पड़ताल की। इस पड़ताल के दौरान पता चला कि वायरस के हमले से मृत्यु का शिकार हुए मरीजों में विटामिन-डी की कमी मौत का प्रमुख कारण रही।
मृतकों में कम मिली विटामिन-डी की मात्रा
इस अध्ययन में अमेरिका, यूरोप के कई देशों और ईरान के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती मरीजों को शामिल किया गया। इस वायरस के हमले के कारण मृत्यु का शिकार हुए लोगों में 80 फ़ीसदी मरीज 65 वर्ष से अधिक आयु के थे।
मरीजों की पड़ताल में एक अहम बात यह भी पता चली कि इनमें 16 से 54.5 फ़ीसदी मृतकों में विटामिन-डी की मात्रा न्यूनतम से भी कम मिली। यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल में 24 मार्च को प्रकाशित हुआ है।
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विटामिन-डी का शरीर में मल्टीपल रोल
लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष सुब्रत चंद्रा का कहना है कि विटामिन-डी किसी भी इंसान के शरीर के लिए काफी महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि हड्डी और मांसपेशियों में दर्द विटामिन-डी की कमी का सिर्फ लक्षण मात्र है।
सही बात तो यह है कि यह इतना महत्वपूर्ण है कि शरीर में इसका मल्टीपल रोल है। उनका कहना है कि विटामिन-डी फेफड़े का फंक्शन दुरुस्त रखने में मददगार होता है और इससे कोई भी इंसान संक्रमण से बचने में कामयाब होता है।
कमी के कारण हमला करता है वायरस
डॉक्टर चंद्रा का कहना है कि शरीर की कोशिकाओं में रिसेप्टर की बॉन्डिंग होती है। विटामिन डी से इस बॉन्डिंग को मजबूती मिलती है। लंदन में हुई स्टडी में भी यह पाया गया कि विटामिन-डी की कमी से सेल्स में मौजूद रिसेप्टर की बॉन्डिंग में कमजोरी आ जाती है।
इस कमजोरी के कारण ही मौका पाकर वायरस सेल में दाखिल हो जाता है। फेफड़े तक उस वायरस की पैठ बन जाती है और वह फिर पूरे शरीर पर हमला करता है। इसी कारण स्टडी में यह नतीजा निकाला गया है कि यदि शरीर में विटामिन-डी ठीक है तो वायरस का मुकाबला आसानी से किया जा सकता है।
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45 फ़ीसदी आबादी में विटामिन-डी की कमी
डॉक्टर चंद्रा का कहना है कि दे देश में शरीर में मौजूद विटामिन डी की सामान्य वैल्यू 50-70 नैनो मोल प्रति लीटर निर्धारित की गई है। जब इसकी मात्रा 50 से कम हो जाती है तो इसे डिफिसिएंसी माना जाता है।
भारत में विटामिन -डी को लेकर तमाम अध्ययन किए गए हैं और इन अध्ययनों में पाया गया है कि 30 से 45 फ़ीसदी आबादी में विटामिन-डी की कमी है। इसलिए लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि विटामिन-डी की कमी को पूरा किया जाए।
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ऐसे दूर की जा सकती है कमी
धूप को विटामिन-डी का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत माना जाता है। रोज धूप में 30 मिनट तक बैठने से प्रचुर मात्रा में विटामिन-डी मिलती है मगर जिन लोगों में यह पहले से काफी कम है, उन्हें इस प्रक्रिया को पूरा करने में काफी समय लगेगा। इसके साथ ही विटामिन-डी का इंजेक्शन और सीरप भी बेहतर उपाय हो सकते हैं।
इसके लिए पहले 12 सप्ताह का कोर्स चलता है। इस कोर्स के तहत हर हफ्ते एक बार इंजेक्शन और सीरप की डोज दी जाती है। 12 हफ्ते का समय पूरा होने के बाद एक बार फिर परीक्षण किया जाता है और उसके बाद आगे का कोर्स तय किया जाता है। विटामिन-डी की कमी को पूरा करने के लिए इसकी टेबलेट और पाउडर भी बेहतर विकल्प है।
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