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LAC पर सैनिकों की झड़प: कब-कब हुआ सीमा पर विवाद, जानें क्या हुआ समझौता

भारत और चीन संबंधों के इतिहास में साल 2020 का ज़िक्र भी अब 1962, 1967 और 1975 की तरह ही होगा। वजह साफ़ है भारत-चीन सीमा विवाद में 45 साल बाद इतनी संख्या में सैनिकों की जान गई है।

SK Gautam
Published on: 11 Feb 2021 9:32 AM GMT
LAC पर सैनिकों की झड़प: कब-कब हुआ सीमा पर विवाद, जानें क्या हुआ समझौता
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LAC पर सैनिकों की झड़प: कब-कब हुआ सीमा पर विवाद, जानें क्या हुआ समझौता

नई दिल्ली: भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को संसद में बयान दिया। उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच समझौता हुआ है जिसके अनुसार पैंगोंग लेक से सैनिकों की वापसी होगी। भारत ने स्पष्ट किया है कि एलएसी (LAC) में बदलाव ना हो और दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी जगह पहुंच जाएं। हम अपनी एक इंच जगह पर भी किसी को कब्जा नहीं करने देंगे। इस बीच यहां हम आपको बताते हैं कि कब-कब भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़पें हुईं और इसका क्या नतीजा निकला।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में किया ऐलान

सदन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऐलान किया कि पैंगोंग के उत्तर और दक्षिण बैंक को लेकर दोनों देशों में समझौता हुआ है और सेनाएं पीछे हटने का काम करेंगी। चीन पैंगोंग के फिंगर 8 के बाद ही अपनी सेनाओं को रखेगा। आगे रक्षा मंत्री ने कहा कि दोनों देशों ने तय किया है कि अप्रैल 2020 से पहले ही स्थिति को लागू किया जाएगा, जो निर्माण अभी तक किया गया उसे हटाने का कार्य किया जाएगा।

सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू

उन्होंने कहा कि पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण में सैनिकों की वापसी पर सहमति बन चुकी है। कल से सीमा पर सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। रक्षा मंत्री ने कहा कि सीमा पर उपजे तनाव का असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ रहा है। यही वजह है कि दोनों देशों के सैनिकों का पीछे हटना बेहद जरूरी है।

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चीन की तरफ से घुसपैठ का प्रयास

राजनाथ सिंह ने कहा कि एलएसी पर चीन की तरफ से घुसपैठ का प्रयास किया गया था। देश की रक्षा के लिए हमारे जवानों ने बलिदान दिया। देश उन शहीद जवानों की शहादत कभी नहीं भूल पाएगा। चीन के साथ तनाव पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि दोनों पक्षों में सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है।

समझौते की स्थिति में पहुंचे

रक्षा मंत्री ने कहा कि फ्रिक्शन क्षेत्रों में डिसइंगेजमेंट के लिए भारत का यह मत है कि 2020 की फॉरवर्ड डिप्लॉयमेंट जो एक-दूसरे के बहुत नजदीक हैं वे दूर हो जाएं और दोनों सेनाएं वापस अपनी-अपनी स्थाई एवं मान्य चौकियों पर लौट जाएं। सिंह ने कहा कि बातचीत के लिए हमारी रणनीति तथा दृष्टिकोण प्रधानमंत्री जी के इस दिशा निर्देश पर आधारित है कि हम अपनी एक इंच ज़मीन भी किसी और को नहीं लेने देंगे। हमारे दृढ़ संकल्प का ही यह फल है कि हम समझौते की स्थिति पर पहुंच गए हैं।

भारत ने चीन की आक्रामता का दिया जवाब

उन्होंने सदन में ईस्टर्न लद्दाख को लेकर दिए गए अपने पिछले भाषण का जिक्र किया। उन्होंने चीन की तरफ से एलएसी के पास भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती के साथ गोला-बारूद एकत्रित किए जाने की बात बताई। उन्होंने कहा कि चीन ने एलएसी के पास कई बार आक्रामकता दिखाने की कोशिश की। इसका भारतीय सैन्य बलों की तरफ से उपयुक्त जवाब दिया गया।

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अभी तक 9 राउंड की हो चुकी है बातचीत

भारत के रक्षामंत्री ने कहा कि सितंबर, 2020 से लगातार सैन्य और राजनयिक स्तर पर दोनों पक्षों में कई बार बातचीत हुई है। इसमें इस डिसइंगेजमेंट का परस्पर स्वीकार्य करने का तरीका निकाला जाए। अभी तक वरिष्ठ कमांडर के स्तर पर 9 राउंड की बातचीत हो चुकी है।

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भारत और चीन इससे पहले कब-कब आपस में भीड़?

भारत और चीन संबंधों के इतिहास में साल 2020 का ज़िक्र भी अब 1962, 1967 और 1975 की तरह ही होगा। वजह साफ़ है भारत-चीन सीमा विवाद में 45 साल बाद इतनी संख्या में सैनिकों की जान गई है।

1962 -भारत-चीन युद्ध, ये लड़ाई क़रीब एक महीने चली थी और इसका क्षेत्र लद्दाख़ से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ था। इसमें चीन की जीत हुई थी और भारत की हार। जवाहर लाल नेहरू ने भी ख़ुद संसद में खेदपूर्वक कहा था, "हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे और हम एक बनावटी माहौल में रह रहे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था।"

इस तरह उन्होंने इस बात को लगभग स्वीकार कर लिया था कि उन्होंने ये भरोसा करने में बड़ी ग़लती की कि चीन सीमा पर झड़पों, गश्ती दल के स्तर पर मुठभेड़ और तू-तू मैं-मैं से ज़्यादा कुछ नहीं करेगा। 1962 की लड़ाई के बाद भारत और चीन दोनों ने एक दूसरे के यहाँ से अपने राजदूत वापस बुला लिए थे। दोनों राजधानियों में एक छोटा मिशन ज़रूर काम कर रहा था।

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साल 1967 - नाथु ला में चीन और भारत के बीच झड़प हुई थी

नाथु ला में चीन और भारत के बीच झड़प हुई थी। दोनों देशों के कई सैनिक मारे गए थे। संख्या के बारे में दोनों देश अलग-अलग दावे करते हैं। ये झड़पें तीन दिन तक चली। नाथु ला में तैनात मेजर जनरल शेरू थपलियाल ने 'इंडियन डिफ़ेस रिव्यू' के 22 सितंबर, 2014 के अंक में इन झड़पों के बारे में विस्तार से लिखा है। उनके मुताबिक नाथु ला में दोनों सेनाओं का दिन कथित सीमा पर गश्त के साथ शुरू होता था और इस दौरान दोनों देशों के फ़ौजियों के बीच कुछ न कुछ तू-तू मैं-मैं शुरू हो जाती थी।

छह सितंबर, 1967 को भारतीय सैनिकों ने चीन के राजनीतिक कमिसार को धक्का देकर गिरा दिया, जिससे उसका चश्मा टूट गया। इलाके में तनाव कम करने के लिए भारतीय सैनिक अधिकारियों ने तय किया कि वो नाथु ला से सेबु ला तक भारत चीन सीमा को डिमार्केट करने के लिए तार की एक बाड़ लगाएंगे।

जैसे ही कुछ दिनों बाद, बाड़ लगाने का काम शुरू हुआ चीन के राजनीतिक कमिसार अपने कुछ सैनिकों के साथ उस जगह पर पहुंच गए और तार बिछाना बंद करने की बात कही। भारतीय सैनिकों ने उनका अनुरोध स्वीकार नहीं किया, तभी अचानक चीनियों ने मशीन गन फ़ायरिंग शुरू कर दी।

साल 1975 - भारतीय सेना के गश्ती दल पर हुआ था हमला

भारतीय सेना के गश्ती दल पर अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर चीनी सेना ने हमला किया था। ऐसा नहीं है कि दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव कोई नई बात हो, लेकिन दोनों देशों ने आपसी सहमति से सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशों के बीच राजनीतिक रिश्ते बनाए रखते हुए व्यापार और निवेश को लंबे समय तक चलते रहने दिया है।

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गलवान में 15-16 जून 2020 की रात क्या हुआ?

15-16 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में एलएसी पर हुई इस झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 सैनिकों की मौत हुई थी। भारत का दावा है कि चीनी सैनिकों का भी नुक़सान हुआ है लेकिन इसके बारे में चीन की तरफ़ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। चीन ने अपनी सेना को किसी भी तरह का कोई नुक़सान होने की बात नहीं मानी है। इसके बाद दोनों देशों में पहले से मौजूद तनाव और बढ़ चुका है। दोनों ही देश एक-दूसरे पर अपने इलाक़ों के अतिक्रमण करने का आरोप लगा रहे हैं।

गलवान घाटी में भारत-चीन लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर दोनों सेनाओं के बीच हुई झड़प में हथियार के तौर पर लोहे की रॉड का इस्तेमाल हुआ जिस पर कीलें लगी हुई थी। भारत-चीन सीमा पर मौजूद भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी बीबीसी को ये तस्वीर भेजी है और कहा है कि इसी हथियार से चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया था।

पाकिस्तान ने चीन को दी PoK की जमीन

चीन सेना के ग्राउंड सिचुएशन की जानकारी देते हुए राजनाथ ने कहा कि1962 के संघर्ष में चीन ने अनधिकृत तरीके से लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश की करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि कब्जाई है। इसके अलावा पाकिस्तान ने अनधिकृत तरीके से पाक अधिकृत कश्मीर में भारत की 5180 वर्ग किलोमीटर भूमि को चीन को दे दिया है। इस तरह चीन का 43 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक भारत की जमीन पर अवैध कब्जा है। चीन पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश में करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि को अपना बताया है। भारत ने इस अवैध कब्जे को कभी भी स्वीकार नहीं किया है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है, 18 बार दोनों देशों के बीच हो चुकी मुलाक़ातें

बता दें कि बीते छह सालों में जब से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है, 18 बार दोनों देशों के बीच मुलाक़ातें और बातचीत हुई है। इन सब कोशिशों को दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने के पहल की तरह से ही देखा गया। इसलिए बीते दो दिनों में सीमा पर हिंसक झड़पों के बाद हर कोई सवाल पूछ रहा है कि आख़िर अचानक ऐसा क्या हुआ? भारत और चीन के बीच बात इतनी क्यों बिगड़ गई कि नौबत हिंसक संघर्ष तक पहुँच गई।

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