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तबाही की घंटी: हिमाचल में झीलें मचाएंगी कहर, पहले भी हुआ है ऐसा हाल
हिमाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्रों में कृत्रिम झीलों से भारी तबाही होने के आसार हैं। हर साल ग्लेशियरों के पिघलने से तमाम छोटी प्राकृतिक झीलें (Natural lakes) बन रही हैं।
शिमला: हिमाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्रों में कृत्रिम झीलों से भारी तबाही होने के आसार हैं। हर साल ग्लेशियरों के पिघलने से तमाम छोटी प्राकृतिक झीलें (Natural lakes) बन रही हैं। साथ ही इनका आकार भी बढ़ता जा रहा है। केवल दो साल के अंदर ही रावी, सतलुज, चिनाब और ब्यास बेसिन पर 100 से ज्यादा नई प्राकृतिक झीलें बन चुकी हैं। इस बात का खुलासा विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज की एक स्टडी रिपोर्ट में हुआ है।
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बीते दो सालों में बनी 100 से ज्यादा प्राकृतिक झीलें
जानकारी के मुताबिक, रावी में 50, ब्यास में 100, चिनाब में 120 और सतलुज बेसिन पर सबसे ज्यादा 500 झीलें बन चुकी हैं। हालांकि साल 2014 में इन क्षेत्रों में काफी कम झीलें हुआ करती थीं। लेकिन बीते दो सालों में 100 से ज्यादा नई प्राकृतिक झीलें बन चुकी हैं। साल 2014 में सतलुज बेसिन पर 391 झीलें थीं, जो अब बढ़कर 500 तक पहुंच गई हैं। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी नए झीलों का आंकड़ा बढ़ा है।
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झीलों में पानी का स्तर बढ़ने से बढ़ सकता है खतरा
विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिकों की पारच्छु झील पर भी नजर है। क्योंकि इन झीलों में पानी की मात्रा बढ़ने से खतरा पैदा हो सकता है। दरअसल, इस झील में पिछले साल यानी 2019 में पानी नहीं बढ़ा था, लेकिन इस साल जिस तरह बार ज्यादा बर्फ़बारी और जलवायु परिवर्तन हुआ है, उससे इन झीलों में पानी बढ़ने का खतरा है। बता दें कि साल 2005 में तिब्बत में मौजूद पारच्छु झील में भूस्खलन की वजह से ही सतलुज में बाढ़ आई थी।
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क्या है वैज्ञानिकों का कहना?
वैज्ञानिक एसएस रंधावा का कहना है कि सभी झीलों पर सेटेलाइट के जरिए नजर रखी जा रही है। कुछ नई झीलें भी दिखाई पड़ी हैं। बीते कुछ सालों में झीलों की संख्या बढ़ी है। हालांकि अभी इन झीलों में कोई खतरा नहीं है। विभाग साल 2014 से ही सतलुज, रावी, चिनाब, रावी बेसीन में झीलों की निगरानी (Monitoring) कर रहा है। हालांकि स्थिति अभी सामान्य है। साइंटिस्ट रंधावा ने कहा कि वैश्विक तापमान (Global warming) और जलवायु परिवर्तन (Climate change) के चलते ग्लेशियर (Glacier) पिघल रहे हैं और साथ ही चीन-तिब्बत के साथ हिमालयन क्षेत्रों में झीलों के आकार में भी बढ़ोत्तरी हो रही है।
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वैश्विक तापमान की वजह से तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
वैश्विक तापमान (Global warming) के कारण लगातार तापमान में वृद्धि हो रही है, जिसके चलते दुनियाभर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इनके पिघलने से नई झीलें बन रही हैं। साल 2005 में तिब्बत में मौजूद पारच्छु झील भी राज्य में भारी तबाही मचा चुकी है। उस समय जानमाल की हानि के अलावा 800 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था। ऐसे में अब ये नई झीलें भी आने वाले समय में भारी तबाही मचा सकती हैं।
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