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रहें सावधान! इन वजहों से बारिश और तबाही झेलने की बना लीजिए आदत

भारत में मूसलाधार बारिश की बढ़ती घटनाओं से विनाशकारी बाढ़ आ रही है इसमें बड़ी संख्या में मनुष्यों और जानवरों की मौत हो रही है। इस तरह की बढ़ती घटनाएं धीरे-धीरे भारतीय जनमानस की गर्मियों के मानसून से जुड़े रोमांस की यादों को बदल रहा है।

राम केवी
Published on: 21 Jun 2023 1:33 PM IST (Updated on: 21 Jun 2023 3:21 PM IST)
रहें सावधान! इन वजहों से बारिश और तबाही झेलने की बना लीजिए आदत
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पंडित रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ : ऐसा लगता है कि बरसात ने उत्तर भारत को अपना नया ठिकाना बना लिया है। बारिश के ताजा दौर में अब तक 50 से अधिक लोगों की मौतें हो चुकी हैं। लेकिन असल सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है। स्टडी से पता चलता है कि भारत में भारी बरसात को जमीन मिल गई है। एक अध्ययन में, शोधकर्ता भारत में चरम वर्षा की घटनाओं की परिभाषा को खारिज करने का प्रयास करते हैं।

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मूसलाधार बारिश की बढ़ती घटनाएं

भारत में मूसलाधार बारिश की बढ़ती घटनाओं से विनाशकारी बाढ़ आ रही है इसमें बड़ी संख्या में मनुष्यों और जानवरों की मौत हो रही है। इस तरह की बढ़ती घटनाएं धीरे-धीरे भारतीय जनमानस की गर्मियों के मानसून से जुड़े रोमांस की यादों को बदल रहा है।

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जिसमें बरसा रानी जरा जमके बरसो या भरी बरसात में दिल लगाया तुमसे, अपनी छतरी के नीचे बुला कर इश्क़ फ़रमाया तुमसे, 'बरसात में हम से मिले तुम सजन', आज रपट जाए, तो हमें न बुलैयो हो, रिमझिम-रिमझिम, रूमझुम-रूमझुम...भीगी भीगी रूत में तुम-हम, हम-तुम गाना.., बरसात में जब आएगा सावन का महीना, साजन को बना लूंगी अंगूठी का नगीना .., एक लड़की भीगी भागी-सी, सोती रातों में जागी सी आदि गानों से सजावट की जाती थी।

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इसके अलावा एक बात यह भी है कि भारत में चरम मौसम की घटनाएं मानसून के लिए नई नहीं हैं, भारत में जलवायु परिवर्तन और मानव निर्मित गतिविधियों के चलते मौसम का स्वरूप लगातार तीव्र घटनाओं के रूप में देखा जा रहा है जो साल दर साल बाढ़ के जोखिम को बढ़ाता जा रहा है।

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साल 2018 में, केरल में बाढ़ ने 483 से अधिक लोगों की जान ले ली थी और दस लाख से अधिक लोगों को विस्थापित किया था, जिससे 31,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

नीलगिरी पहाड़ों की नदी घाटी में हुआ हिमस्खलन

इस साल, 2019 में तो मानसून की विभीषिका और बढ़ गई। जून और जुलाई महीनों में अपर्याप्त बारिश हुई लेकिन इसके बाद अगस्त के शुरुआती हफ्तों में तीव्र बारिश हुई, जिससे केरल उत्तरी जिलों में बाढ़ और भूस्खलन हुआ। कर्नाटक के कोडागु और चिक्कमगुलुरु जिले, जो केरल जैसे पर्यावरण के हैं, इनमें बारिश का एक ही पैटर्न था।

तमिलनाडु में नीलगिरी पहाड़ों की नदी घाटी में हिमस्खलन हुआ। एक दिन में 900 मिमी से अधिक बारिश हुई। उत्तर-पूर्व में असम में भारी भू-स्खलन, हाल ही में आई बाढ़ जो 60 से अधिक लोगों की जान ले चुकी है।

2017 के एक अध्ययन के अनुसार भारत में भारी बारिश की घटनाएं तीन गुना अधिक व्यापक रूप ले चुकी हैं। अध्ययन में इन व्यापक और चरम रूप ले रहे मौसम की की भविष्यवाणी और उनके पूर्वानुमान को बेहतर बनाकर का फायदा उठाने का आह्वान करते हुए कहा गया कि समय से न चेतने के कारण अत्यधिक प्रतिकूल मौसम की घटनाओं से संबंधित आपदाओं के कारण भारत को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान हुआ।

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बदलती जलवायु

25 सितंबर, 2019 को जारी बदलती जलवायु में महासागर और क्रायोस्फीयर पर आईपीसीसी की विशेष रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अतिरिक्त वार्मिंग की किसी भी डिग्री के साथ, अतीत में कभी कभार होने वाली घटनाएं 2050 तक हर साल कई क्षेत्रों में घटित होने लगेंगी, जिससे नागरिक जीवन के लिए जोखिम बढ़ जाएगा। खासकर कई निचले इलाकों के तटीय शहरों और छोटे द्वीपों के लिए ये समुद्र में समा सकते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु के अरिंदम चक्रवर्ती ने कहा, "अत्यधिक बारिश की परिभाषा से निष्कर्ष निकाला जाता है और जिस तरह से हम पूर्वानुमान लगाते हैं और बाढ़ का प्रबंधन करते हैं, वह मानव जीवन को प्रभावित करता है।"

अपने हाल ही में जारी अध्ययन में, वे पाते हैं कि, पिछले छह दशकों में, भारत के बड़े हिस्सों में 1980 के बाद से भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। यह वृद्धि अनिवार्य रूप से उनके आकार में विस्तार है, जिसका अर्थ है कि बारिश के तीव्रता प्राप्त करने वाले क्षेत्र में वृद्धि। हालांकि इससे यह जरूरी नहीं कि घटनाओं की संख्या में वृद्धि हो।

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चक्रवर्ती का कहना है कि हमने देखा कि 1980 के दशक के बाद मध्य भारत में बारिश की चरम सीमा में वृद्धि चरम वर्षा से आच्छादित औसत क्षेत्र की संख्या में वृद्धि के कारण हुई है। इसका मतलब है कि 1980 के दशक के बाद, पड़ोसी क्षेत्रों में एक ही समय में अत्यधिक वर्षा होने की संभावना बढ़ गई है जो कि पिछला रिकार्ड भी ध्वस्त कर सकती है।

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जलवायु परिवर्तनशीलता

चक्रवर्ती ने कहा कि अगर हम अत्यधिक वर्षा का अनुभव करने वाले क्षेत्रों को वर्ग किलोमीटर में जोड़ दें, तो हम देख सकते हैं कि क्षेत्र का विस्तार हुआ है। उन्होंने कहा कि मध्य भारत में बड़े पैमाने पर होने वाली घटनाओं को मुख्य रूप से 1980 के बाद मनाया जाता है, जो बड़े पैमाने पर मानसून के कमजोर पड़ने और हिंद महासागर के तेजी से गर्म होने के साथ मेल खाती है।

इस मामले में एक अन्य जलवायु परिवर्तनशीलता शोधकर्ता विमल मिश्र का कहना है कि वर्तमान अध्ययन के निष्कर्ष पिछले अध्ययनों के साथ हुए हैं जो भारत में व्यापक प्रसार वाली चरम वर्षा की घटनाओं में वृद्धि दर्शा रहे हैं। हालांकि श्री मिश्र इस अध्ययन से नहीं जुड़े थे।

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उन्होंने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि इन घटनाओं की आवृत्ति में बदलाव नहीं हुआ, जबकि स्थानिक सीमा (क्षेत्र को कवर) बढ़ रहा है। आईआईटी-गांधीनगर के वाटर एंड क्लाइमेट लैब के मिश्रा बताते हैं कि गर्म जलवायु के साथ चरम वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि की उम्मीद है।

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मिश्रा ने कहा कि घटनाओं की अवधि में भी फैक्टर होने की जरूरत है। जबकि एक ही दिन में होने वाली अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो सकती है, वार्मिंग जलवायु में बहु-दिन चरम वर्षा की घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है।

कुल मिलाकर बारिश की सभी घटनाओं में एक बात लागू हो रही है कि कम दबाव का सिस्टम कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश करवा रहा है और भारत में इस तरह की घटनाएं और बढ़ेंगी।

राम केवी

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